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लेखक की द्रष्टि में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
लेखक की दृष्टि में दो शब्द 'सभ्यता और संस्कृति' की सही समझ अभी भी नहीं हो पाई है, क्योंकि इनका उपयोग बहुत अधिक होता है, और वो भी किसी एक अर्थ में नहीं होता है। इनके साथ अनेक विशेषण लग जाते हैं, जैसे - भौतिक-सभ्यता और आध्यात्मिक-सभ्यता इन विशेषणों के कारण शब्दों का अर्थ बदलता रहता है। इससे यह समझ में नहीं आता कि यह एक ही चीज है अथवा दो? यदि दो हैं तो दोनों में क्या अंतर है? इसी कारण लेखक इस विषय पर अपनी कोई स्थायी सोच नहीं बना पा रहे हैं।
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
आग की खोज मानव की सबसे बड़ी आवश्कता की पूर्ति करती है। आग की खोज के पीछे अनेकों कारण हो सकते हैं, सम्भवत: आग की खोज का मुख्य कारण रोशनी की ज़रुरत, पेट की ज्वाला, ठण्ड या जानवरों से बचाव की रही होगी। अंधेरे में जब मनुष्य कुछ नहीं देख पा रहा था या ठण्ड से उसका बुरा हाल था, तब उसे आग की ज़रुरत महसूस हुई होगी। कच्चे माँस का स्वाद अच्छा न लगने के कारण उसे पकाकर खाने की इच्छा से या खूँखार जानवरों को भगाने के लिए आग का आविष्कार हुआ हो।
वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकता है?
वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ उसे कहा जा सकता है, जिसमें अपनी बुद्धि तथा योग्यता के बल पर कुछ नया करने की क्षमता हो। जिस व्यक्ति में ऐसी बुद्धि तथा योग्यता जितनी अधिक मात्रा में होगी, वह व्यक्ति उतना ही अधिक संस्कृत होगा। जैसे-न्यूटन, न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया। वह संस्कृत मानव था। आज भौतिक विज्ञान के विद्यार्थियों को इस विषय पर न्यूटन से अधिक सभ्य कह सकते हैं, परन्तु संस्कृत नहीं कह सकते।
न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतो एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
न्यूटन ने अपनी बुद्धि -शक्ति से गुरुत्वाकर्षण के रहस्य की खोज की इसलिए उसे संस्कृत मानव कह सकते हैं। आज मनुष्य के पास भले ही इस विषय पर अधिक जानकारी होगी पर उसमें वो बुद्धि शक्ति नहीं है, जो न्यूटन के पास थी, वह केवल न्यूटन द्वारा दी गई जानकारी को बढ़ा रहे हैं। इसलिए वह न्यूटन से अधिक सभ्य हैं, संस्कृत नहीं।
किन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?
कुछ महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के किए सुई धागे का आविष्कार हुआ होगा –
(1) सुई-धागे का आविष्कार शरीर को ढ़कने तथा सर्दियों में ठंड से बचने के उद्देश्य से हुआ होगा।
(2) आवश्यकतानुसार शरीर को सजाने की जरूरत महसूस हुई होगी, इसलिए कपड़े के दो टुकडों को एक करके जोड़ने के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा।
मानव संस्कृत एक अविभाज्य वस्तु है। किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब –
मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गई?
1. धर्म के नाम पर भी मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की जाती हैं, जिसका परिणाम हम हिंदुस्तान तथा पाकिस्तान नामक दो देश के रूप में देखते हैं।
2. वर्ण व्यवस्था के नाम पर मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की जाती हैं।
मानव संस्कृत एक अविभाज्य वस्तु है। किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब –
जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया?
1. संसार के मजदूरों को सुखी देखने के लिए कार्ल मार्क्स ने अपना सारा जीवन दुख में बिता दिया।
2. सिद्धार्थ ने अपना घर केवल मानव कल्याण के लिए छोड़ दिया।
मानव हमेशा से ही अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित रहा है, इसलिए उसने मानवहित और आत्महित की दृष्टि से अनेकों आविष्कार किए हैं। यह आविष्कार जब मानव कल्याण की भावना से जुड़ जाते हैं, तो हम उसे संस्कृति कहते हैं। जब मानव की आविष्कार करने की योग्यता, भावना, प्रेरणा और प्रवृत्ति का उपयोग विनाश करने के लिए किया जाता है, तब यह असंस्कृति बन जाती है। ऐसी भावनाओं को हम संस्कृति कदापि नहीं कह सकते।
सभ्यता और संस्कृति एक दूसरे से अति सूक्ष्म रूप से जुड़े हैं, एक के अभाव में दूसरे को स्पष्ट करना कठिन हैं, जहाँ हम ये कह सकते हैं कि संस्कृति एक विचार है, तो वहीँ सभ्यता जीवन जीने की कला है।
संस्कृति जीवन का चिंतन और कलात्मक सृजन है, जो जीवन को समृद्ध बनाती है, तथा मनुष्य के रहन-सहन का तरीका सभ्यता के अंतर्गत आता है।
गलत-सलत आत्म-विनाश
महामानव पददलित
हिन्दू-मुसलिम यथोचित
सप्तर्षि सुलोचना
1. गलत-सलत – गलत और सलत (द्वंद समास)
2. महामानव – महान है जो मानव (कर्म धारय समास)
3. हिंदू-मुसलिम – हिंदू और मुसलिम (द्वंद समास)
4. सप्तर्षि – सात ऋषियों का समूह (द्विगु समास)
5. आत्म-विनाश – आत्मा का विनाश (तत्पुरुष समास)
6. पददलित – पद से दलित (तत्पुरुष समास)
7. यथोचित – जो उचित हो (अव्ययीभाव समास)
8. सुलोचना – सुंदर लोचन है जिसके (कर्मधारय समास)
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