क्षितिज भाग २ Chapter 1 सूरदास - पद
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    NCERT Solution For Class 10 Hindi क्षितिज भाग २

    सूरदास - पद Here is the CBSE Hindi Chapter 1 for Class 10 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 10 Hindi सूरदास - पद Chapter 1 NCERT Solutions for Class 10 Hindi सूरदास - पद Chapter 1 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 10 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN10001398

    गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?

    Solution
    गोपियों के द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में व्यंग्य का भाव छिपा हुआ है। उद्धव तो मथुरा में श्रीकृष्ण के साथ ही रहते थे पर फिर भी उन के हृदय में पूरी तरह से प्रेमहीनता थी। वे प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त थे। उनका मन किसी के प्रेम में डूबता ही नहीं था। श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी वे प्रेमभाव से वंचित थे।
    Question 2
    CBSEENHN10001399

    उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?

    Solution

    उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल की मटकी से की गई है। कमल का पला पानी में डूबा रहता है पर उस पर पानी की एक बूंद भी दाग नहीं लगा पाती, उस पर पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती। तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर एक बूंद भी नहीं ठहरती। उद्धव भी पूरी तरह से अनासक्त था। वह श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त था।

    Question 3
    CBSEENHN10001400

    गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?

    Solution

    गोपियों ने उद्धव को अनेक उदाहरणों के माध्यम से उलाहने दिए थे। उन्होंने उसे ‘बड़भागी’ कह कर प्रेम से रहित माना था जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम का अर्थ नहीं समझ पाया था। उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग के संदेशों के कारण वे वियोग में जलने लगी थीं। विरह के सागर में डूबती गोपियो को पहले तो आशा थी कि वे कभी-न-कभी तो श्रीकृष्ण से मिल ही जाएंगी पर उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग साधना के संदेश के बाद तो प्राण त्यागना ही शेष रह गया था। उद्धव का योग तो कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ था। वह तो योग रूपी बीमारी उन्हें देने वाला था। गोपियों ने उद्धव को वह गुरु माना था जिसने श्रीकृष्ण को भी राजनीति की शिक्षा दे दी थी। गोपियों ने वास्तव में जिन उदाहरणों के माध्यम से वाक्‌चातुरी का परिचय दिया है और उद्धव धव को उलाहने दिए हैं। वह उनके प्रेम का आंदोलन है। उनसे गोपियों के पक्ष की श्रेष्ठता और उद्धव के निर्गुण की हीनता का प्ररतिपादन हुआ है।

    Question 4
    CBSEENHN10001401

    उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेशों ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?

    Solution
    गोपियों को श्रीकृष्ण के वियोग की अग्नि सदा जलाती रहती थी। वे हर समय उन्हें याद करती थीं; तड़पती थीं पर फिर भी उनके मन में एक आशा थी। उन्हें पूरी तरह से यह उम्मीद थी कि श्रीकृष्ण जब मथुरा से वापिस ब्रज क्षेत्र में आएंगे तब उन्हें उनका खोया हुआ प्रेम वापिस मिल जाएगा। वे अपने हृदय की पीड़ा उनके सामने प्रकट कर सकेंगी पर जब श्रीकृष्ण की जगह उद्धव उनकी योग-साधना का संदेश लेकर गोपियों के पास आ पहुँचा तो गोपियों की सहनशक्ति जवाब दे गई। उन्होंने श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे जाने वाले ऐसे योग संदेश की कभी कल्पना भी नहीं की थी। इससे उन का विशवास टूट गया था। विरह-अग्नि में जलता हुआ उनका हृदय योग के वचनों से दहक उठा था। योग के संदेशों ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया था। इसीलिए उन्होंने उद्धव को सामने और श्रीकृष्ण की पीठ पर मनचाही जली-कटी सुनाई थी।
    Question 5
    CBSEENHN10001402

    ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?

    Solution
    गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम के कारण अपना सब सुख-चैन खो दिया था। उन्होंने घर-बाहर का विरोध करते हुए अपनी मान-मर्यादा की परवाह भी नहीं की थी जिस कारण उन्हें सबसे भला-बुरा भी सुनना पड़ा था। पर जब श्रीकृष्ण ने ही उन्हें उद्धव के माध्यम से योग-साधना का संदेश भिजवा दिया था तब उन्हें ऐसा लगा था कि कृष्ण के द्वारा उन्हें त्याग देने से तो उनकी पूरी मर्यादा ही नष्ट हो गई थी। उनकी प्रतिष्ठा तो पूरी तरह से मिट ही गई थी।
    Question 6
    CBSEENHN10001403

    कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?

    Solution
    गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम था। उन्हें तो सिवाय श्रीकृष्ण के और कुछ सूझता ही नहीं था। वे तो उनकी रूप माधुरी में इस प्रकार उलझी हुई थीं जिस प्रकार चींटी गुड पर आसक्त होती है। जब एक बार चींटी गुड से चिपट जाती है तो फिर वहाँ से कभी भी छूट नहीं पाती। वे उसके लगाव में अपना जीवन वहीं लाग देती हैं। गोपियों को तो ऐसा प्रतीत होता था कि उनका मन श्रीकृष्ण के साथ ही मथुरा चला गया था। वे तो हारिल पक्षी के तिनके के समान मन वचन और कर्म से उनसे जुड़ी हुई थीं। उनकी प्रेम की अनन्यता ऐसी थी कि रात-दिन, सोते-जागते वे उन्हें ही याद करती रहती थीं।
    Question 7
    CBSEENHN10001404

    गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?

    Solution
    गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने की बात कही है जिनके मन में चकरी हो, जो अस्थिर बुद्धि हो, जिनका मन चंचल हो। योग की शिक्षा तो उन्हीं को दी जानी चाहिए, जिनके मन प्रेम-भाव के कारण स्थिरता पा चुके हैं। उनके लिए योग की शिक्षा की कोई आवश्यकता ही नहीं है।
    Question 8
    CBSEENHN10001405

    प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।

    Solution
    गोपियां कृष्ण भक्त थीं। कोमल हृदय वाली गोपियां तो केवल श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानती थीं। उनको केवल कृष्ण की भक्ति ही स्वीकार्य थी और उनका योग-साधना से कोई संबंध नहीं था। इसीलिए वे मानती थीं कि जो युवतियों के लिए योग का संदेश लेकर घूमते रहते थे, वे बड़े अज्ञानी थे। संभव है कि योग महासुख का भंडार हो पर गोपियों के लिए वह बीमारी से कुछ कम नहीं था। योग के संदेश तो विरह में जलने वालों को और भी अधिक जल्दी जला देने वाले थे। योग-साधना तो मानसिक रोग के समान है जिसे गोपियों ने न कभी पहले सुना था और न देखा था। कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ योग गोपियों के लिए नहीं बल्कि चंचल स्वभाव वालों के लिए उपयुक्त था। गोपियों को योग संदेश भिजवाना किसी भी अवस्था में बुद्धिमता का कार्य नहीं था। प्रेम की रीति को छोड़कर योग--साधना का मार्ग अपनाना मूर्खता है।
    Question 9
    CBSEENHN10001406

    गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?

    Solution
    गोपियों के अनुसार राजा का धर्म तो यह होना चाहिए कि वह किसी भी दशा में प्रजा को न सताए। वह प्रजा के सुख चैन का ध्यान रखे।
    Question 10
    CBSEENHN10001407

    गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?

    Solution
    श्रीकृष्ण तब तो गोपियों को बहुत अधिक प्रेम करते थे जब ब्रज क्षेत्र में रहते थे लेकिन गोपियों को प्रतीत होता था कि मथुरा जा कर राजा बन जाने के पश्चात् उनका व्यवहार बदल गया था। उन्होंने वहाँ से उद्‌धव के माध्यम से योग-संदेश भिजवा कर अन्याय और अत्याचारपूर्ण कार्य किया था। वे अब उनको सुखी नहीं अपितु दुःखी देखना चाहते थे। वे राजनीति का पाठ पढ़ चुके थे। वे चालें चलने लगे थे इसलिए गोपियां चाहती थीं कि वे उन्हें उनके दिल वापिस कर दें जिन्हें मधुरा जाते समय वे चुरा कर अपने साथ ले गए थे।
    Question 11
    CBSEENHN10001408

    गोपियों ने अपने वाक्‌चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्‌चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए?

    Solution

    सूरदास के भ्रमर गीत। में गोपियाँ श्रीकृष्ण की याद में केवल रोती - तड़पती ही नहीं बल्कि उद्‌धव को उसका अनुभव कराने के लिए मुस्कराती भी थीं। वे उद्धव और कृष्ण को कोसती थीं और व्यंग्य भी करती थीं। उद्धव को अपने निर्गुण ज्ञान पर बड़ा अभिमान था पर गोपियों ने अपने वाक्‌चातुर्य के आधार पर उसे परास्त कर दिया था। वे तर्कों, उलाहनों और व्यंग्यपूर्ण उक्तियों से कभी तो अपने हृदय की वेदना को प्रकट करती थीं, कभी रोने लगती थीं उनका वाक्‌चातुर्य अनूठा था जिसमें निम्नलिखित विशेषताएं प्रमुख थीं-
    (क) निर्भीकता- गोपियां अपनी बात कहने में पूर्ण रूप से निडर और निर्भीक थीं। वे किसी भी बात को कहने में झिझकती नहीं हैं। योग-साधना को ‘कड़वी ककड़ी’ और ‘व्याधि’ कहना उनकी निर्भीकता का परिचायक है-
    सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
    सु तौ व्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।

    (ख) व्यंग्यात्मकता-गोपियों का वाणी में छिपा हुआ व्यंग्य बहुत प्रभावशाली है। उद्धव को मजाक करते हुए उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं क्योंकि श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी वह उनके प्रेम से दूर ही रहा-
    प्रीति-नदी मैं पाऊँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
    व्यंग्य का सहारा लेकर वे श्रीकृष्ण को राजनीति शास्त्र का ज्ञाता मानती हैं-

    इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
    बड़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेश पठाए।

    (ग) स्पष्टता-गोपियों को अपनी बात साफ-साफ शब्दों में कहनी आती है। वे बात को यदि घुमा-फिरा कर कहना जानती हैं तो उसे साफ-स्पष्ट रूप में कहना भी उन्हें आता है-

    अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
    ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।

    वे साफ-स्पष्ट शब्दों में स्वीकार करती हैं कि वे सोते-जागते केवल श्रीकृष्ण का नाम रटती रहती हैं-
    जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।
    पर वे क्या करें? वे अपने मुँह से अपने प्रेम का वर्णन नहीं करना चाहतीं। उनकी बात तो उनके हृदय में ही अनकही रह गई है।

    मन की मन ही माँझ रही।
    कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।

    (घ) भावुकता और सहृदयता
    गोपियां भावुकता और सहृदयता से परिपूर्ण हैं जो उनकी बातों से सहज ही प्रकट हो जाती हैं। जब उनकी भावुकता बढ़ जाती है तब वे अपने हृदय की वेदना पर नियंत्रण नहीं पा सकतीं। उन्हें जिस पर सबसे अधिक विश्वास था, जिसके कारण उन्होंने सामाजिक और पारिवारिक मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की थी जब वही उन्हें दुःख देने के लिए तैयार था तब बेचारी गोपिया क्या कर सकती थीं-

    अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
    अब इन जोग सँदेसनी  सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।।

    सहृदयता के कारण ही वे श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार मानती हैं। वे तो स्वयं को मन-वचन-कर्म से श्री कृष्ण का ही मानती थीं-
    हमारैं हरि हारिल की लकरी।
    मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

    वास्तव में गोपियां सहृदय और भावुक थीं। समय और परिस्थितियों ने उन्हें चतुर और वाग्विदग्ध बना दिया था। वाक्‌चातुर्य के आधार पर ही उन्होंने ज्ञानवान् उद्‌धव को परास्त कर दिया था।

    Question 12
    CBSEENHN10001409

    संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए?

    Solution

    सूरदास के द्वारा रचित ‘भ्रमरगीत’ हिंदी-साहित्य के सबसे अधिक भावपूर्ण उलाहनों के रूप में प्रकट किया जाने वाला काव्य है। यह काव्य मानव हृदय की सरस और मार्मिक अभिव्यक्ति है। इसमें प्रेम का सच्चा, भव्य और सात्विक पक्ष प्रस्तुत हुआ है। कवि ने कृष्ण और गोपियों के हृदय की गहराइयों को अनेक ढंगों से परखा है। संकलित पदों के आधार पर भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएं निन्नलिखित हैं-
    1. गोपियों का एकनिष्ठ प्रेम-गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ गहरा प्रेम था। वे उन्हें पलभर भी भुला नहीं पाती थीं। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण ही उनके जीवन के आधार थे जिनके बिना वे पलभर जीवित नहीं रह सकती थीं। वे तो उनके लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान थे जो उन्हें जीने के लिए मानसिक सहारा देने वाले थे।

    हमारैं हरि हारिल की लकरी।
    मन क्रम वचन नंद नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

    गोपियां तो सोते-जागते श्रीकृष्ण की ओर अपना ध्यान लगाए रहती थीं। उन्हें लगता था कि उनका हृदय तो उनके पास था ही नहीं। उसे तो श्रीकृष्ण चुरा कर ले गए थे। इसलिए वे अपने मन को योग की तरफ लगा ही नहीं सकती थी।

    2. वियोग शृंगार- गोपियां हर समय श्रीकृष्ण के वियोग में तड़पती रहती थीं। वे उनकी सुंदर छवि को अपने मन से दूर कर ही नहीं पाती थीं। श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे पर गोपियां तो रात-दिन उन्हीं की यादों में डूब कर उन्हें ही रटती रहती थीं-
    जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
    वे अपने हृदय की वियोग पीड़ा को अपने मन में ही छिपा कर रखना चाहती थीं। वे अपनी पीड़ा को दूसरों के सामने कहना भी नहीं चाहती थीं। उन्हें पूरा विश्वास था कि वे कभी-न-कभी अवश्य वापिस आएंगे। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रेम के कारण अपने जीवन में मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की थी।

    3. व्यंग्यात्मकता-गोपियां चाहे श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं पर उन्हें सदा यही लगता था कि श्रीकृष्ण ने उनसे चालाकी की थी; उन्हें धोखा दिया था। वे मधुरा में रहकर उनसे चालाकियां कर रहे थे; राजनीति के खेल से उन्हें मूर्ख बना रहे थे। इसलिए व्यंग्य करते हुए वे कहती हैं-
    हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
    समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।

    उद्धव पर व्यंग्य करते हुए उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं जो प्रेम के स्वरूप श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी प्रेम से दूर रहा। उसने कभी प्रेम की नदी में अपने पैर तक डुबोने का प्रयत्न नहीं किया। वे श्रीकृष्ण को बड़ी बुद्धि वाला मानती हैं जिन्होंने उन्हें योग का पाठ भिजवाया था।

    4. स्पष्टवादिता- गोपियां समय-समय पर अपनी स्पष्टवादिता से प्रभावित करती हैं। वे योग-साधना को ‘व्याधि’ कहती हैं जिसके बारे में कभी देखा या सुना ही न गया हो। योग तो केवल उनके लिए ही उपयोगी हो सकता था जिन के मन में चकरी हो; जो अस्थिर और चंचल हों।

    5. भावुकता- गोपियां स्वभाव से ही भावुक और सरल हृदय वाली थीं। उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रेम किया था और उसी प्रेम में डूबी रहना चाहती थीं। वे उसी प्रेम में मर-मिटना चाहती थीं जिस प्रकार चींटी गुड से चिपट जाती है तो वह भी उससे अलग न हो कर अपना जीवन ही गवा देना चाहती है। भावुक होने के कारण ही वे योग के संदेशों को सुनकर दुःखी हो जाती हैं। अधिक भावुकता ही उनकी पीड़ा का बड़ा कारण बनती है।

    6. सहज ज्ञान- गोपियां चाहे गाँव में रहती थीं पर उन्हें अपने वातावरण और समाज का पूरा ज्ञान था। वे जानती थीं कि राजा के अपनी प्रजा के लिए क्या कर्त्तव्य थे और उसे क्या करना चाहिए था-
    ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
    राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।

    7. संगीतात्मकता- सूरदास के भ्रमरगीत संगीतमय हैं। कवि ने विभिन्न राग-रागिनियों को ध्यान में रखकर भ्रमरगीतों की रचना की है। उन सब में गेयता है जिस कारण सूरदास के भ्रमर गीतों का साहित्य में बहुत ऊँचा स्थान हैं।

    Question 13
    CBSEENHN10001410

    गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।

    Solution

    गोपियां श्रीकृष्ण से अपार प्रेम करती थीं। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण के बिना वे रह ही नहीं सकती थीं। जब श्रीकृष्ण ने उद्धव के द्वारा उन्हें योग-साधना का उपदेश भिजवा दिया था तब गोपियों का विरही मन इसे सहन नहीं कर पाया था और उन्होंने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए थे।
    यदि हमें गोपियों की जगह तर्क देने होते तो हम उद्धव से पूछते कि श्रीकृष्ण ने उनसे प्रेम करके फिर उन्हें योग की शिक्षा देने का कपट क्यों किया? उन्होंने मधुरा में रहने वाली कुब्जा आदि को निर्गुण ब्रह्म का संदेश क्यों नहीं दिया? प्रेम सदा दो पक्षों में होता है। यदि गोपियों ने प्रेम की पीड़ा झेली थी तो श्रीकृष्ण ने उस पीड़ा का अनुभव क्यों नहीं किया? यदि पीड़ा का अनुभव किया था तो वे स्वयं ही योग-साधना क्यों नहीं करने लगे थे? यदि गोपियों के भाग्य में वियोग की पीड़ा लिखी थी तो श्रीकृष्ण ने उन के भाग्य को बदलने के लिए उद्धव को वहाँ क्यों भेजा? किसी का भाग्य बदलने का अधिकार तो किसी के पास नहीं है। यदि श्रीकृष्ण ने गोपियों को योग-साधना का संदेश भिजवाया था तो अन्य सभी ब्रजवासियों, यशोदा माता, नंद बाबा आदि को भी वैसा ही संदेश क्यों नहीं भिजवाया? वे सब भी तो श्रीकृष्ण से प्रेम करते थे।

     
    Question 14
    CBSEENHN10001411

    उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्‌चातुर्य में मुखरित हो उठी?

    Solution
    किसी भी मनुष्य के पास सबसे बड़ी शक्ति उसके मन की होती है; मन में उत्पन्न प्रेम के भाव और सत्य की होती है। गोपियां श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। उन्होंने अपने प्रेम के लिए सभी प्रकार की मान-मर्यादाओं की परवाह करनी छोड़ दी थी। जब उन्हें उद्धव के द्वारा श्रीकृष्ण का योग-साधना का संदेश दिया गया तो उन्हें अपने प्रेम पर लगी ठेस का अनुभव हुआ। उन्हें वह झेलना पड़ा था जिस की उन्होंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी। उनके विश्वास को गहरा झटका लगा था जिस कारण उनकी आहत भावनाएं फूट पड़ी थीं। उद्धव चाहे ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे पर वे गोपियों के हृदय में छिपे प्रेम, विश्वास और आत्मिक बल का सामना नहीं कर पाए थे। गोपियों के वाक्‌चातुर्य के सामने किसी भी प्रकार टिक नहीं पाए थे।
    Question 15
    CBSEENHN10001412

    गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    गोपियों ने सोच-विचार कर ही यह कहा था कि अब हीर राजनीति पढ़ गए थे। राजनीति मनुष्य को दोहरी चालें चलना सिखाती है। श्रीकृष्ण गोपियों से प्रेम करते थे और प्रेम सदा सीधी राह पर चलता है। जब वे मधुरा चले गए थे तो उन्होंने गोपियों को योग का संदेश उद्धव के माध्यम से भिजवा दिया था। कृष्ण के इस दोहरे आचरण के कारण ही गोपियों को कहना पड़ा था कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं। गोपियों का यह कथन आज की राजनीति में साफ -साफ दिखाई देता है। नेता जनता से कुछ कहते हैं और स्वयं कुछ और करते हैं। वे धर्म और राजनीति, अपराध और राजनीति, शिक्षा और राजनीति, अर्थव्यवस्था और राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में दोहरी चालें चलते हैं और जनता को मूर्ख बनाकर अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं। उनकी करनी-कथनी में सदा अंतर दिखाई देता है।
    Question 16
    CBSEENHN10001413

    ‘भ्रमरगीत’ से आप का क्या तात्यर्य है?

    Solution

    ‘भ्रमरगीत’ शब्द ‘भ्रमर’ और ‘गीत’ दो शब्दों के मेल से बना है। ‘भ्रमर’ छ: पैरवाला एक कीट है जिस का रंग काला होता है। इसे भँवरा भी कहते हैं। ‘गीत’ गाने का पर्याय है इसलिए ‘भ्रमर गीत’ का शाब्दिक अर्थ है- भँवरे का गान, भ्रमर संबंधी गान या भ्रमर को लक्ष्य करके लिखा गया गान।

    जब श्रीकृष्ण ने मथुरा से निर्गुण ब्रह्म संबंधी ज्ञान उद्धव को देकर ब्रज क्षेत्र में भेजा था ताकि विरह-वियोग की आग में झुलसती गोपियों को वह संदेश देकर समझा सके कि वे श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम-भाव को भुला कर योग-साधना में लीन होना ही उनके लिए उचित था। तब गोपियों को उद्‌धव की बातें कड़वी लगी थीं। वे उद्‌धव को बुरा-भला कहना चाहती थीं पर श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए उद्धव को अपनी मर्यादावश ऐसा कह नहीं पाती। संयोगवश एक भँवरा उड़ता हुआ वहाँ से गुजरा। गोपियों ने झट से भँवरे को संकेत कर अपने हृदय में व्याप्त सारे गुस्से को उद्धव को सुनाना आरंभ कर दिया। उद्धव का रंग भी भँवरे के समान काला था। इस प्रकार भ्रमरगीत का अर्थ है- उद्धव को लक्ष्य करके लिखा गया ‘गान’। कहीं-कहीं गोपियों ने श्रीकृष्ण को भी ‘भ्रमर’ कहा है।

    Question 17
    CBSEENHN10001414

    सूरदास के ‘भ्रमरगीत’ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    ‘भ्रमरगीत’ का उद्देश्य ही है - ज्ञान और योग का खंडन करके निर्गुण भक्ति के स्थान पर सगुण भक्ति की प्रतिष्ठा करना। सूरदास ने उद्धव की पराजय दिखा कर ऐसा करने में सफलता प्राप्त की है।

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    Question 18
    CBSEENHN10001415

    भ्रमरगीतों में प्रयुक्त सूरदास की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।

    Solution
    सूरदास के भ्रमरगीतों की भाषा ब्रज-भाषा है। उन्होंने अत्यंत मार्मिक शब्दावली का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में लालित्य है। उन्होंने व्यंग्य-प्रधान शब्दों का सहजता और सुंदरता से प्रयोग किया है। उनकी उलाहने भरी भाषा और चुभते हुए शब्द बहुत अनुकूल प्रभाव उत्पन्न करते हैं। उनकी भाषा में व्यंजना शक्ति और प्रभाव- क्षमता के साथ माधुर्य और प्रसाद गुणों की अधिकता है। उनका शब्द चयन सुंदर और भावानुकूल है।
    Question 19
    CBSEENHN10001416

    भ्रमरगीतों के आधार पर गोपियों की विशेषताएँ लिखिए।

    Solution
    सूरदास के भ्रमरगीतों में गोपियां अत्यंत निर्भीक, स्वाभिमानी, वाक्‌पटु और हँसमुख हैं। उनमें नारी सुलभ लज्जा की अपेक्षा चंचलता की अधिकता है। वह उद्धव से बिना किसी संकोच बातचीत ही नहीं करतीं बल्कि अपनी वाक्‌चातुरी का परिचय देती हैं। वे अपने प्रेम के लिए सामाजिक-पारिवारिक मर्यादाओं का विरोध करने में भी तनिक नहीं झिझकतीं।
    Question 20
    CBSEENHN10001417

    पाठ में दिए गए भ्रमरगीतों के आधार पर शृंगार रस की उपस्थिति को स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    सूरदास के भ्रमरगीतों में आरंभ से अंत तक वियोग शृंगार का साम्राज्य रहा है। संयोग शृंगार का कोई भी उपयुक्त प्रसंग इनमें उपलब्ध नहीं होता। वे श्रीकृष्ण को याद करती थीं; आँसू बहाती थीं और वियोग की पीड़ा में जलती रहती थीं। उद्धव के योग-साधना के संदेशों ने उसके वियोग के कष्टों को और अधिक बढ़ा दिया है-
    अब इन जोग सँदेसनी सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
    चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।।

    गोपियों को वियोग की पीड़ा से उतना अधिक कष्ट नहीं था जितना उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग के संदेश से था क्योंकि इससे उनका विरह-भाव और अधिक बढ़ गया था।

    Question 21
    CBSEENHN10001418

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
           ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
    अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
    पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
    ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
    प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
    ‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद कृष्ण-भक्ति के प्रमुख कवि सूरदास के द्वारा रचित ‘सूरसागर’ में संकलित ‘भ्रमर गीत’ प्रसंग से लिया गया है। इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग- 2 में संकलित किया गया है। गोपियां सगुण-प्रेम-पथ के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट करती हैं और मानती हैं कि वे किसी भी प्रकार स्वयं को श्रीकृष्ण के प्रेम से दूर नहीं कर सकतीं।

    व्याख्या- गोपियां उद्धव की प्रेमहीनता पर व्यंग्य करती हुई कहती हैं कि हे उद्धव! तुम सचमुच बड़े भाग्यशाली हो क्योंकि तुम प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त हो, अनासक्त हो और तुम्हारा मन किंसी के प्रेम में डूबता नहीं। तुम श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी उन के प्रेम बंधन से उसी तरह मुक्त हो जैसे कमल का पला सदा पानी में रहता है पर फिर भी उस पर जल का एक दाग भी नहीं लग पाता; उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती। तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती। इसी प्रकार तुम भी श्रीकृष्ण के निकट रहते हुए भी उन से प्रेम नहीं करते और उन के प्रभाव से सदा मुक्त बने रहते हो। तुम ने आज तक कभी भी प्रेम रूपी नदी में अपना पैर नहीं डुबोया और तुम्हारी दृष्टि किसी के रूप को देख कर भी उस में उलझी नहीं। पर हम तो भोली-भाली अबलाएं हैं जो अपने प्रियतम श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी के प्रेम में उसी प्रकार उलझ गई हैं जैसे चींटी गुड पर आसक्त हो उस पर चिपट जाती है और फिर कभी छूट नहीं पाती, वह वहीं प्राण त्याग देती है।

     
    Question 22
    CBSEENHN10001419

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
           ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
    अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
    पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
    ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
    प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
    ‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

    उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए?

    Solution
    गोपियां उद्धव की प्रेमहीनता का मजाक उड़ाती हुई मानती हैं कि उस के हृदय में प्रेम की भावना का अभाव है। वह पूर्ण रूप से प्रेम के बंधन से मुक्त और अनासक्त है। उस ने कभी प्रेम की नदी में अपना पैर नहीं डुबोया और उस की आँखें श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को देख कर भी उन में नहीं उलझीं पर वे गोपियां तो भोली- भाली थीं और वे श्रीकृष्ण की रूप माधुरी पर आसक्त हो गईं। वे किसी भी अवस्था में अब उस प्रेम-भाव से दूर नहीं हो सकतीं।
    Question 24
    CBSEENHN10001421
    Question 25
    CBSEENHN10001422

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
           ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
    अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
    पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
    ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
    प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
    ‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

    उद्धव के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का बंधन क्यों नहीं था?

    Solution

    उद्धव निर्गुण ब्रह्म के प्रति विश्वास रखता था। उस का ब्रह्म रूप-आकार से परे था इसलिए वह स्वयं को श्रीकृष्ण के साकार रूप के प्रति नहीं बांध पाया था। उस के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का बंधन भाव नहीं था।

    Question 26
    CBSEENHN10001423

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
           ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
    अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
    पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
    ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
    प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
    ‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

    उद्धव के व्यवहार की तुलना किस के साथ की गई है?

    Solution
    सूरदास ने दृष्टांतों से उद्धव को अनासक्त और श्रीकृष्ण के प्रति भक्तिभाव से सर्वथा मुक्त माना है। जिस प्रकार कमल का पत्ता सदा जल में रहता है पर फिर भी उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहर पाती उसी प्रकार उद्धव श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी उन के प्रति भक्ति भावों से रहित था। तेल की किसी मटकी को जल के भीतर डुबोने पर उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती, उसी प्रकार उद्धव के हृदय पर श्री कृष्ण की भक्ति थोड़ा-सा भी प्रभाव नहीं डाल सकी थी।
    Question 27
    CBSEENHN10001424

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
           ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
    अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
    पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
    ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
    प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
    ‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

    सूरदास ने किन दृष्टांतों से उद्धव की अनासक्ति को प्रकट किया है?

    Solution
    सूरदास ने दृष्टांतों से उद्धव को अनासक्त और श्रीकृष्ण के प्रति भक्तिभाव से सर्वथा मुक्त माना है। जिस प्रकार कमल का पत्ता सदा जल में रहता है पर फिर भी उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहर पाती उसी प्रकार उद्धव श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी उन के प्रति भक्ति भावों से रहित था। तेल की किसी मटकी को जल के भीतर डुबोने पर उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती, उसी प्रकार उद्धव के हृदय पर श्री कृष्ण की भक्ति थोड़ा-सा भी प्रभाव नहीं डाल सकी थी।
    Question 29
    CBSEENHN10001426

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
           ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
    अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
    पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
    ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
    प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
    ‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

    ‘गुर चींटी ज्यौं पागी’ के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम को प्रतिपादित कीजिए।

    Solution
    गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम भरा मन चाह कर भी कहीं और टिकता नहीं। वे तो पूरी तरह से अपने प्रियतम की रूप माधुरी पर आसक्त थीं, उन के प्रेम में पगी हुई थीं। जिस प्रकार चींटी गुड पर आसक्त हो कर उस पर चिपट जाती है और फिर छूट नहीं पाती। वह वहीं अपने प्राण दे देती है। गोपियां भी श्रीकृष्ण के प्रति इसी प्रकार प्रेम-भाव में डूबी रहना चाहती थीं और कभी भी उस से दूर नहीं होना चाहती थीं।
    Question 30
    CBSEENHN10001427

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
           ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
    अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
    पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
    ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
    प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
    ‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

    अंतिम पंक्तियों में गोपियों ने स्वयं को ‘अबला’ और ‘भोरी’ क्यों कहा है?

    Solution
    गोपियों ने स्वयं को ‘भोरी’ कहा है। वे छल-कपट और चतुराई से दूर थीं इसीलिए वे अपने प्रियतम की रूप माधुरी पर शीघ्रता से आसक्त हो गईं। वे स्वयं को श्रीकृष्ण से किसी भी प्रकार दूर करने में असमर्थ मानती थीं। वे चाहकर भी उन्हें प्राप्त नहीं कर सकती इसलिए उन्होंने स्वयं को अबला कहा है।
    Question 33
    CBSEENHN10001430

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
           ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
    अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
    पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
    ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
    प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
    ‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

    इस पद में परोक्ष रूप से उद्धव को क्या समझाया गया है?

    Solution
    इस पद में उद्धव को समझाया गया है कि वह ज्ञानवान है, नीतिवान है, प्रेम से विरक्त है इसलिए उसका प्रेम संदेश गोपियों के लिए निरर्थक था। श्री कृष्ण के प्रेम में निमग्न गोपियों को उसके उपदेश से कोई लाभ नहीं मिलने वाला था।
    Question 36
    CBSEENHN10001433

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
           ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
    अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
    पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
    ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
    प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
    ‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

    गोपियों ने ऊधो को क्या कहा है?

    Solution
    गोपियों ने उद्धव से कहा था कि वह अभागा है क्योंकि वह श्री कृष्ण के साथ रह कर भी उनके प्रेम से भिन्न रहा। गोपियों से स्पष्ट कहती है कि वे सभी कृष्ण के प्रति प्रेम-भाव से समर्पित है। वह किसी भी अवस्था में श्री कृष्ण के प्रति प्रेम-भाव को नहीं त्याग सकतीं।

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    Question 40
    CBSEENHN10001437

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
           ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
    अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
    पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
    ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
    प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
    ‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

    पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?

    Solution

    अनुप्रास-
    • नाहिन मन अनुरागी
    • पुरइनि पात रहत
    • ज्यौं जल।
    उपमा- • गुर चाँटी ज्यौं पागी।
    रूपक- • अपरस रहत सनेह तगा तैं
    • प्रीति- नदी मैं पार्ट न बोरयौ।
    उदाहरण- • ज्यौं जल माई तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
    दृष्टात- • पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।

    Question 41
    CBSEENHN10001438

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
             मन की मन ही माँझ रही।
    कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
    अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
    अब इन जोग सँदेसनी सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
    चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
    ‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद भक्त सूरदास के द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के भ्रमरगीत से लिया गया है जिसे हमारी पाठ्‌य-पुस्तक में संकलित किया गया है। श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए उद्धव ने गोपियों को ब्रज में संदेश सुनाया था जिसे सुनकर वह हताश हो गई थीं। वे तो श्रीकृष्ण को ही अपना एकमात्र सहारा मानती थीं पर उन्हीं के द्वारा भेजा हुआ हृदय-विदारक संदेश सुन कर वे पीड़ा और निराशा से भर उठी थीं। उन्होंने कातर स्वर में उद्धव से कहा था ।

    व्याख्या- हे उद्धव! हमारे मन में छिपी बात तो मन में ही रह गई है अर्थात् वे तो सोचती थीं कि जब श्रीकृष्ण वापिस आएंगे तब वे उन्हें विरह-वियोग में झेले सारे कष्टों की बातें सुनाएंगी पर अब तो उन्होंने निराकार ब्रह्म को प्राप्त करने का संदेश भेज दिया है। अब उन के द्वारा त्याग दिए जाने पर हम अपनी असहनीय विरह-पीड़ा की कहानी किसे जा कर सुनाएं? अब तो हम से यह और अधिक कही भी नहीं जाती। अब तक हम उन के वापिस लौटने की अवधि के सहारे अपने तन और मन से इस विरह-पीड़ा को सहती आ रही थीं। अब तो इन योग के संदेशों को सुन कर हम विरहिनियां वियोग में जलने लगी हैं। विरह के सागर में डूबती हुई हम गोपियों को जहाँ से सहायता मिलने की आशा थी और जहाँ हम अपनी रक्षा के लिए पुकार लगाना चाहती थीं अब उसी स्थान से योग संदेश रूपी जल की ऐसी प्रबल धारा बही है कि यह हमारे प्राण लेकर ही रुकेगी अर्थात् श्रीकृष्ण ने हमें भुला कर योग साधना करने का संदेश भेज कर हमारे प्राण ले लेने का कार्य किया है। हे उद्धव! तुम्हीं बताओ कि अब हम धैर्य धारण कैसे करें? जिन श्रीकृष्ण के लिए हम ने अपनी अन्य सभी मर्यादाओं को त्याग दिया था अब उन्हीं श्रीकृष्ण के द्वारा हमें त्याग देने से हमारी संपूर्ण मर्यादा नष्ट हो गई है।

    Question 42
    CBSEENHN10001439

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
             मन की मन ही माँझ रही।
    कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
    अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
    अब इन जोग सँदेसनी सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
    चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
    ‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

    उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।


    Solution
    गोपियां श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। वे तो सोच भी नहीं सकती थीं कि उन्हें कभी उनके प्रेम से वंचित होना पड़ेगा। उद्धव के द्वारा उन्हें दिए जाने वाले निर्गुण भक्ति के ज्ञान ने उन के धैर्य को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। वे निराशा के भावों से भर उठी थीं और उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा था कि उन की मर्यादा तो पूरी तरह से नष्ट हो गई थी।
    Question 44
    CBSEENHN10001441

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
             मन की मन ही माँझ रही।
    कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
    अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
    अब इन जोग सँदेसनी सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
    चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
    ‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

    गोपियों अब किस के पास जाने का साहस नहीं कर सकतीं? क्यों?

    Solution
    गोपियां अब श्रीकृष्ण के पास जा कर अपनी वियोग से उत्पन्न पीड़ा को कहने का साहस नहीं कर सकती थीं। गोपियों को पहले तो विश्वास था कि श्रीकृष्ण जब कभी मिलेंगे तब वे उन्हें अपनी पीड़ा सुनाएंगी लेकिन अब तो श्रीकृष्ण ने स्वयं उद्धव से निर्गुण भक्ति का ज्ञान उन्हें संदेश रूप में भेज दिया था।
    Question 45
    CBSEENHN10001442

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
             मन की मन ही माँझ रही।
    कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
    अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
    अब इन जोग सँदेसनी सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
    चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
    ‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

    गोपियों अब तक विरह-वियोग को किस आधार पर सहती आ रही थीं?

    Solution
    गोपियां अब तक विरह-वियोग को इस आधार पर सहती आ रही थीं कि यदि वे श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं तो श्रीकृष्ण भी उन से उतना ही प्रेम करते थे। परिस्थितियों के कारण उन्हें अलग होना पड़ा था। वे श्रीकृष्ण के प्रेम के आधार पर विरह वियोग सहती आ रही थीं।
    Question 46
    CBSEENHN10001443

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
             मन की मन ही माँझ रही।
    कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
    अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
    अब इन जोग सँदेसनी सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
    चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
    ‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

    गोपियों अब तक विरह-वियोग को किस आधार पर सहती आ रही थीं?

    Solution
    गोपियां अब तक विरह-वियोग को इस आधार पर सहती आ रही थीं कि यदि वे श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं तो श्रीकृष्ण भी उन से उतना ही प्रेम करते थे। परिस्थितियों के कारण उन्हें अलग होना पड़ा था। वे श्रीकृष्ण के प्रेम के आधार पर विरह वियोग सहती आ रही थीं।
    Question 48
    CBSEENHN10001445
    Question 50
    CBSEENHN10001447

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
             मन की मन ही माँझ रही।
    कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
    अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
    अब इन जोग सँदेसनी सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
    चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
    ‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।

    'मरजादा न लही’ से क्या तात्पर्य है?

    Solution
    गोपियां श्री कृष्ण के प्रति अपने एकनिष्ठ प्रेम को ही अपनी मर्यादा मानती थीं लेकिन जब स्वयं श्रीकृष्ण ने निर्गुण भक्ति का ज्ञान उन्हें भिजवा दिया तो उनकी वह प्रेम संबंधी मर्यादा का कोई अर्थ ही नहीं रहा। ‘मरजादा न लही’ से तात्पर्य उन के प्रेम भाव की मर्यादा के प्रति श्रीकृष्ण का वह संदेश था जिस के कारण गोपियों ने अपने जीवन की अन्य सभी सामाजिक-धार्मिक मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की थी।
    Question 64
    CBSEENHN10001461

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर सप्रसंग सहित व्याख्या कीजिये:
    हमारैं हरि हारिल की लकरी।
    मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
    जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
    सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
    सु तौ व्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करो।
    यह तो ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपो, जिन के मन चकरी।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद हमारी पाठ्‌य -पुस्तक में संकलित सूरदास के पदों से लिया गया है। गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अपार प्रेम था। श्रीकृष्ण को जब मधुरा जाना पड़ा था तब उन्होंने अपने सखा उद्धव के निर्गुण ज्ञान पर सगुण भक्ति की विजय के लिए उन्हें गोपियों के पास भेजा था। गोपियों ने उद्धव के निर्गुण ज्ञान को सुन कर अस्वीकार कर दिया था और स्पष्ट किया था कि उन का प्रेम तो केवल श्रीकृष्ण के लिए ही था। उन का प्रेम अस्थिर नहीं था।

    व्याख्या- श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम की दृढ़ता को प्रकट करते हुए गोपियों ने उद्धव से कहा कि श्रीकृष्ण तो हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान बन गए हैं। अर्थात् जैसे हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में लकड़ी पकड़े रहता है वैसे हम भी सदा श्रीकृष्ण का ध्यान करती रहती हैं। हमने मन, वचन और कर्म से नंद के नंदन श्रीकृष्ण के रूप और उनकी स्मृति को अपने मन द्वारा कस कर पकड़ लिया है। अब कोई भी उसे हम से छुड़ा नहीं सकता। हमारा मन जागते, सोते, स्वप्न या प्रत्यक्ष में सदा कृष्ण-कृष्ण की रट लगाए रहता है, सदा उन्हीं का स्मरण करता रहता है। हे- उद्धव। तुम्हारी योग की बातें सुनते ही हमें ऐसा लगता है मानों कडवी ककड़ी खा ली हो। अर्थात् तुम्हारी योग की बातें हमें बिल्कुल अरुचिकर लगती हैं। तुम तो हमारे लिए योग रूपी ऐसी बीमारी ले कर आए हो जिसे हमने न तो कभी देखा, न सुना और न कभी भुगता ही है। हम तो तुम्हारी योग रूपी बीमारी से पूरी तरह अपरिचित हैं। तुम इस बीमारी को उन लोगों को जाकर दे दो जिन के मन सदा चकई के समान चंचल रहते हैं। भाव है कि हमारा मन तो श्रीकृष्ण के प्रेम में दृढ़ और स्थिर है। जिनका मन चंचल है वही योग की बातें स्वीकार कर सकते हैं।

    Question 72
    CBSEENHN10001469

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये 
    हमारैं हरि हारिल की लकरी।
    मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
    जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
    सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
    सु तौ व्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करो।
    यह तो ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपो, जिन के मन चकरी।।

    गोपियों के अनुसार योग संबंधी बातें कौन स्वीकार कर सकते हैं?
    अथवा
    गोपियों को योग कैसा लगता है और वस्तुत: उनकी आवश्यकता कैसे लोगों को है?


    Solution
    गोपियों को योग पसंद नहीं था और उनके अनुसार योग संबंधी बातें वही लोग स्वीकार कर सकते हैं जिंनका मन अस्थिर होता है। जिनका मन पहले ही श्रीकृष्ण के प्रेम में स्थिर हो चुका हो उनके लिए योग व्यर्थ था।

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    Question 83
    CBSEENHN10001480

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये -
    हमारैं हरि हारिल की लकरी।
    मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
    जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
    सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
    सु तौ व्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करो।
    यह तो ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपो, जिन के मन चकरी।।

    अलंकार छाँट कर लिखिए।

    Solution

    रूपक- • हमारैं हरि हारिल की लकरी।
    अनुप्रास-
    • हमारैं हरि हारिल
    • जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि
    • करुई ककरी
    • नंद-नंदन
    उपमा- • सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों, करुई ककरी।
    रूपकातिशयोक्ति- • सु तौ व्याधि हमकौं लै आए।
    स्वरमैत्री- • देखी सुनी न करी।
    पुनरुक्ति-प्रकाश- • कान्ह-कान्ह।

    Question 84
    CBSEENHN10001481

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रसंग सहित व्याख्या कीजिये:
    हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
    समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
    इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
    बड़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेश पठाए।
    ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
    अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
    ते क्यौं अनीति करै आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
    राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।
     

    Solution

    प्रसंग-प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित है जिसे सूरसागर के भ्रमर गीत प्रसंग से लिया गया है। गोपियों ने उद्धव से निर्गुण-भक्ति संबंधी जिस ज्ञान को पाया था उससे वे बहुत परेशान हुई थीं। उन्होंने कृष्ण को कुटिल राजनीति का पोषक, अन्यायी और धोखेबाज सिद्ध करने का प्रयास किया था।

    व्याख्या- गोपियां श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए योग संदेश को उनका अन्याय और अत्याचार मानते हुए आपस में कहती हैं कि हे सखि! अब तो श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है। वे राजनीति में पूरी तरह निपुण हो गए हैं। यह भँवरा हमसे जो बात कह रहा है वह क्या तुम्हें समझ आई? क्या तुम्हें कुछ समाचार प्राप्त हुआ? एक तो श्रीकृष्ण पहले ही बहुत चतुर-चालाक थे और अब तो गुरु ने उन्हें ग्रंथ भी पढ़ा दिए हैं। उनकी बुद्धि कितनी विशाल है, इस का अनुमान तो इसी बात से मिल गया है कि वह युवतियों के लिए योग-साधना करने का संदेश भेज रहे हैं। अर्थात् यह सिद्ध  हो गया है कि वह बुद्धिमान नहीं हैं, क्योंकि कोई भी युवतियों के लिए योग-साधना को उचित नहीं मान सकता है। हे उद्धव! पुराने जमाने के सज्जन लोग दूसरों का भला करने के लिए इधर-उधर भागते-फिरते थे, पर आजकल के सज्जन तो दूसरों को दुःख देने और सताने के लिए ही यहाँ तक दौड़े चले आए हैं। हम तो केवल इतना ही चाहती हैं कि हमें हमारा मन मिल जाए जिसे श्रीकृष्ण यहाँ से जाते समय चुपचाप चुरा कर अपने साथ ले गए थे पर उनसे ऐसे न्यायपूर्ण काम की आशा कैसे की जा सकती है। वे तो दूसरों के द्वारा अपनाई जाने वाली रीतियों को छुड़ाने का प्रयत्न करते रहते हैं। भाव है कि हम तो श्रीकृष्ण से प्रेम करने की रीति अपना रहे थे पर वे तो चाहते हैं कि हम प्रेम की रीति को छोड़ कर योग साधना के मार्ग को अपना लें, यह तो अन्याय है। सच्चा राजधर्म तो उसी को माना जाता है जिस में प्रजाजनों को कभी न सताया, जाए। भाव है कि श्रीकृष्ण अपने स्वार्थ के लिए हमारे सारे सुख-चैन को छीन कर हमें दुःखी करने की कोशिश कर रहे हैं।

     
    Question 85
    CBSEENHN10001482

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
    हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
    समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
    इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
    बड़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेश पठाए।
    ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
    अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
    ते क्यौं अनीति करै आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
    राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।

    उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    गोपियां श्रीकृष्ण को राजनीति शास्त्र में शिक्षा प्राप्त स्वार्थी और धोखेबाज सिद्ध करना चाहती थीं जो मधुरा जाते समय उनके मन चुराकर अपने साथ ले गए थे और अब उनके प्रेमभाव को लेकर बदले में योग-साधना का पाठ पढ़वाना चाहते थे। वे उन्हें राजधर्म की शिक्षा देना चाहती थीं।
    Question 86
    CBSEENHN10001483

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
    हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
    समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
    इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
    बड़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेश पठाए।
    ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
    अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
    ते क्यौं अनीति करै आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
    राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।

    गोपियों ने क्यों माना कि श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली थी?

    Solution
    गोपियों ने माना था कि श्रीकृष्ण राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर चुके थे क्योंकि अब वे राजनीति के क्षेत्र में अपनायी जाने वाली कुटिलता और छलकपट से काम लेने लगे थे। वे अपने स्वार्थ के लिए गोपियों का सुख-चैन छीन कर उन्हें दुःखी करने का प्रयत्न करने लगे थे।
    Question 87
    CBSEENHN10001484

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
    हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
    समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
    इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
    बड़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेश पठाए।
    ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
    अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
    ते क्यौं अनीति करै आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
    राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।

    गोपियों ने ‘जानी बुद्धि बड़ी’ से क्या कहना चाहा है?

    Solution
    गोपियों ने ‘जानी बुद्धि बड़ी’ में व्यंजना का प्रयोग किया है। श्रीकृष्ण की बुद्धि कितनी बड़ी थी - इस का अनुमान तो इसी बात से मिल गया कि वे युवतियों के लिए योग-साधना करने का संदेश भेज रहे थे। इससे तात्पर्य है कि श्रीकृष्ण बुद्धिमान ने अच्छा कार्य नहीं किया था। कोई मूर्ख ही युवतियों के लिए योग-साधना को उचित मान सकता था, बुद्धिमान नहीं।
    Question 91
    CBSEENHN10001488

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
    हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
    समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
    इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
    बड़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेश पठाए।
    ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
    अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
    ते क्यौं अनीति करै आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
    राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।

    कृष्ण के व्यवहार में गोपियों की अपेक्षा क्या अंतर था?

    Solution
    श्रीकृष्ण का व्यवहार गोपियों की अपेक्षा भिन्न था। गोपियां तो प्रेम की राह पर चलना चाहती थीं परं कृष्ण चाहते थे कि गोपियां प्रेम की राह छोड़ कर योग-साधना पर चलना आरंभ कर दें।
    Question 93
    CBSEENHN100018887

    निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए : [5]
    हमारें हरि हारिल की लकरी।
    मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
    जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।
    सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी
    सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
    यह तौ ‘सूर तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।
    (क) ‘हारिल की लकरी’ किसे कहा गया है और क्यों? [2]
    (ख) तिनहिं लै सौंपौ’ में किसकी ओर क्या संकेत किया गया है? [2]
    (ग) गोपियों को योग कैसा लगता है? क्यों? [1]

    Solution

    (क) गोपियाँ “हारिल की लकरी’ श्रीकृष्ण के लिए कहती हैं। क्योंकि जैसे हारिल पक्षी लकड़ी के आश्रय को नहीं छोड़ता, उसी प्रकार गोपियाँ श्रीकृष्ण के आश्रय को नहीं छोड़ सकतीं। उन्होंने मन-क्रम-वचन पूरी तरह से श्रीकृष्ण को पकड़ रखा है।

    (ख) गोपियाँ उद्धव को कहती हैं कि हम तो पूरी तरह कृष्णमय हो गई हैं और हमें योग की जरूरत नहीं है। हमारा मन भ्रमित नहीं है। इस योग की आवश्यकता तो उनको है। जिनका मन चकरी के समान घूमता रहता है, एक जगह नहीं लगता, इसलिए इस योग को ऐसे लोगों को सौंप दो।

    (ग) गोपियाँ कहती हैं कि योग उन्हें कड़वी ककड़ी की तरह लगता है जिसे खाया या निगला नहीं जा सकता है। गोपियाँ यह भी कहती हैं कि वे पूरी तरह कृष्णमय हो गई

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