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NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Bhag 3 Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए
  • NCERT Solution For Class 8 Hindi Vasant Bhag 3

    क्या निराश हुआ जाए Here is the CBSE Hindi Chapter 7 for Class 8 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 8 Hindi क्या निराश हुआ जाए Chapter 7 NCERT Solutions for Class 8 Hindi क्या निराश हुआ जाए Chapter 7 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2023-24. You can save these solutions to your computer or use the Class 8 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN8000672

    लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं है। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?

    Solution
    लेखक ने जीवन में दूसरे लोगों से कई बार धोखा खाया है, ठगा भी गया है लेकिन फिर भी वह निराश नहीं है। उसके जीवन में ऐसे अवसर भी आए हैं जब लोगों ने एक-दूसरे की सहायता की है, निराश मन को हौसला भी दिया है। टिकट बाबू द्वारा बचे हुए पैसे लेखक को लौटाना, बस कंडक्टर द्वारा दूसरी बस व बच्चों के लिए दूध लाना आदि ऐसी ही घटनाएँ हैं। इसलिए उसे विश्वास है कि समाज में मानवता, प्रेम, आपसी सहयोग समाप्त नहीं हाे सकते।
    Question 23
    CBSEENHN8000694

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलानेवाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फ़रेब का रोज़गार करनेवाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सचाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।

    ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय क्यों समझा जाता है?

    • ईमानदार का पर्यायवाची शब्द मूर्खता है।
    • यदि लोग ईमानदारी से कार्य करते हैं तो चालाक लोग उसे मूर्खता समझते हैं।
    • ईमानदार लोग वास्तव में मूर्ख होते हैं।
    • ईमानदार लोगों को मूर्ख बना दिया जाता है।

    Easy
    Question 24
    CBSEENHN8000695

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलानेवाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फ़रेब का रोज़गार करनेवाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सचाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।

    जीवन के महान मूल्यों के प्रति लोगों की आस्था क्यों हिलने लगी है?
    • लोगों का ईमानदारी में विश्वास नहीं रहा।
    • छल-कपट का बोलबाला है।
    • लोग ईमानदार बनना नहीं चाहते।
    • ईमानदार लोगों की सोच बदलने लगी है।

    Easy
    Question 27
    CBSEENHN8000698

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान अंतिरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा आचरण है। भारतवर्ष ने कभी भी उन्हें उचित नहीं माना, उन्हें सदा संयम के बंधन से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है। परंतु भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती, गुमराह को ठीक रास्ते पर ले जाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
    भारत में भौतिक वस्तुओं के संग्रह को महत्व क्यों नहीं दिया जाता?

    • भौतिक वस्तुओं के संग्रह से कोई लाभ नहीं होता।
    • क्योंकि भारतीय संस्कृति धार्मिक मनोभावों को बढ़ावा देती है।
    • क्योकि भारतीय संस्कृति अंतिरिक गुणों को प्रभावी मानती हैं।
    • क्योकि भारतीय संस्कृति हरदम नवीनता की ओर बढ़ती है।

    Easy
    Question 28
    CBSEENHN8000699

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान अंतिरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा आचरण है। भारतवर्ष ने कभी भी उन्हें उचित नहीं माना, उन्हें सदा संयम के बंधन से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है। परंतु भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती, गुमराह को ठीक रास्ते पर ले जाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
    चरम और परम किसे माना जाता है?
    • अकेला व एकसार
    • अग्रणी व प्रधान
    • अग्र व पीछे
    • इनमें से कोई नहीं।

    Easy
    Question 29
    CBSEENHN8000700

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान अंतिरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा आचरण है। भारतवर्ष ने कभी भी उन्हें उचित नहीं माना, उन्हें सदा संयम के बंधन से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है। परंतु भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती, गुमराह को ठीक रास्ते पर ले जाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
    ‘बुरा आचरण’ से क्या अभिप्राय है?
    • अंतर्मन की भावना पर गौर करना
    • दूसरा की भावनाओं काे समझना
    • बुद्धि व मन को अपने इशारों पर चलाना।
    • दुनिया की परवाह न करना।

    Easy
    Question 30
    CBSEENHN8000701

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान अंतिरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा आचरण है। भारतवर्ष ने कभी भी उन्हें उचित नहीं माना, उन्हें सदा संयम के बंधन से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है। परंतु भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती, गुमराह को ठीक रास्ते पर ले जाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
    भारतवर्ष का क्या प्रयत्न रहा है?
    • लोगों को अधिक से अधिक सुविधाएँ दी जाएँ।
    • एकता को बढ़ावा दिया जाए।
    • लोगों के आचरण में लोभ, मोह व अहंकार को नियंत्रित किया जाए।
    • लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत की जाए।

    Easy
    Question 31
    CBSEENHN8000702

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान अंतिरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा आचरण है। भारतवर्ष ने कभी भी उन्हें उचित नहीं माना, उन्हें सदा संयम के बंधन से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है। परंतु भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती, गुमराह को ठीक रास्ते पर ले जाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
    मनुष्य को अपना आचरण शुद्ध क्यों रखना चाहिए?
    • ताकि अधिक से अधिक मित्र बनाए जा सकें।
    • ताकि विश्व में अपनी संस्कृति का ऊँचा स्थान बना रहे।
    • ताकि जीवन सुचारु रूप से चल सके।
    • ताकि लोगों का सही मार्ग दर्शन हो सके।

    Easy
    Question 34
    CBSEENHN8000705

    इस देश के कोटि-कोटि दरिद्रजनों की हीन अवस्था को दूर करने के लिए ऐसे अनेक कायदे-कानून बनाए गए हैं जो कृषि, उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति को अधिक उन्नत और सुचारु वनाने के लक्ष्य से प्रेरित हैं, परंतु जिन लोगों को इन कार्यो में लगना है, उनका मन सब समय पवित्र नहीं होता। प्राय: वे ही लक्ष्य को अभूलजाते हैं और अपनी ही सुख-सुविधा की ओर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं।
    नियमों को क्रियान्वित करने वालों का मन पवित्र क्यों नहीं होता?
    • वे मन की भावनाओं को प्रमुखता नहीं देते। 
    • वे स्वार्थ भावना से लिप्त होते हैं।
    • वे सही रूप से कार्य करने में सक्षम नहीं होते।
    • वे अपने-आपको महान समझते हैं।

    Easy
    Question 35
    CBSEENHN8000706

    इस देश के कोटि-कोटि दरिद्रजनों की हीन अवस्था को दूर करने के लिए ऐसे अनेक कायदे-कानून बनाए गए हैं जो कृषि, उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति को अधिक उन्नत और सुचारु वनाने के लक्ष्य से प्रेरित हैं, परंतु जिन लोगों को इन कार्यो में लगना है, उनका मन सब समय पवित्र नहीं होता। प्राय: वे ही लक्ष्य को अभूलजाते हैं और अपनी ही सुख-सुविधा की ओर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं।
    क्या दरिद्रों हेतु बनाए गए नियम उनके लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं?
    • हाँ, क्योंकि वही उनका उत्थान करते हैं।
    • नहीं, क्योंकि उनके लिए बनाए गए नियम, कानून व सुविधाएँ उन्हें मिल ही नहीं पातीं।
    • वे लोग उन नियमों व सुविधाओं को प्राप्त करने में स्वयं ही अक्षम होते हैं।
    • इनमें से कोई नहीं।

    Easy
    Question 37
    CBSEENHN8000708

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    दोषों का पर्दाफ़ाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर करना और भी बुरी बात है। सैकड़ों घटनाएँ ऐसी घटती हैं जिन्हें उजागर करने से लोक-चित्त में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जगती है।
    दोषों का पर्दाफ़ाश करना बुरी बात क्यों नहीं है?

    • दोषों का पर्दाफ़ाश करने से समाज सब जान सकता है।
    • जिसका दोष हो उसे दंडित किया जा सकता है।
    • क्योंकि दोषों का पर्दाफ़ाश करके ही स्वस्थ समाज की नींव रखी जा सकती है।
    • दोषों के पर्दाफ़ाश से लोगों को लज्जित किया जा सकता है।

    Easy
    Question 38
    CBSEENHN8000709

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    दोषों का पर्दाफ़ाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर करना और भी बुरी बात है। सैकड़ों घटनाएँ ऐसी घटती हैं जिन्हें उजागर करने से लोक-चित्त में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जगती है।
    लेखक ने किसे बुरी बात कहा है?
    • लोगों के मजाक उड़ाने को
    • किसी के आचरण की कमियों को उजागर करने में आनंद लेना
    • किसी की कमियाँ उजागर करने में
    • किसी की बुराइयाँ करने में

    Easy
    Question 39
    CBSEENHN8000710

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    दोषों का पर्दाफ़ाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर करना और भी बुरी बात है। सैकड़ों घटनाएँ ऐसी घटती हैं जिन्हें उजागर करने से लोक-चित्त में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जगती है।
    किसी की कमियों को उजागर करने में रस लेने को बुरी बात क्याे कहा गया है?
    • क्योंकि इससे समाज में बुरी भावनाएँ बढ़ती हैं।
    • क्योंकि किसी की कमियों को उजागर करने में रस लेने से दोषों का निवारण नहीं हो पाता।
    • क्योंकि इससे लोग शर्मिंदा हो जाते हैं।
    • इनमें से कोई नहीं।

    Easy
    Question 40
    CBSEENHN8000711

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    दोषों का पर्दाफ़ाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर करना और भी बुरी बात है। सैकड़ों घटनाएँ ऐसी घटती हैं जिन्हें उजागर करने से लोक-चित्त में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जगती है।
    लोकचित में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना कैसे जागृत की जा सकती हे?
    • अच्छाइयों को उजागर करके
    • लोगों को महापुरुषों के कार्यो की शिक्षा देकर
    • लोगों का सही मार्गदर्शन करके
    • लोगों द्वारा की गई गलतियों को सुधारकर

    Easy
    Question 42
    CBSEENHN8000713

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से मैंने दस के बजाय सौ रुपये का नोट दिया और मैं जल्दी-जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गया। थोड़ी देर में टिकट बाबू उन दिनों के सेकंड क्लास के डिब्बे में हर आदमी का चेहरा पहचानता हुआ उपस्थित हुआ। उसने मुझे पहचान लिया और बड़ी विनम्रता के साथ मेरे हाथ में नब्बे रुपये रख दिए और बोला, “यह बहुत गलती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मैंने भी नहीं देखा।” उसके चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा थी। मैं चकित रह गया। 

    लेखक ने टिकट बाबू को गलती से कितने का नोट दिया?
    • दस की बजाय पचास का
    • दस के नोट की बजाय सौ का
    • दस की बजाय पाँच का
    • दस की बजाय बीस का

    Easy
    Question 43
    CBSEENHN8000714

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से मैंने दस के बजाय सौ रुपये का नोट दिया और मैं जल्दी-जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गया। थोड़ी देर में टिकट बाबू उन दिनों के सेकंड क्लास के डिब्बे में हर आदमी का चेहरा पहचानता हुआ उपस्थित हुआ। उसने मुझे पहचान लिया और बड़ी विनम्रता के साथ मेरे हाथ में नब्बे रुपये रख दिए और बोला, “यह बहुत गलती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मैंने भी नहीं देखा।” उसके चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा थी। मैं चकित रह गया। 

    टिकट बाबू से लेखक को कितने पैसे वापस मिलने थे?
    • नब्बे रुपए
    • पचास रुपए
    • साठ रुपए
    • अस्सी रुपए

    Easy
    Question 44
    CBSEENHN8000715

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से मैंने दस के बजाय सौ रुपये का नोट दिया और मैं जल्दी-जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गया। थोड़ी देर में टिकट बाबू उन दिनों के सेकंड क्लास के डिब्बे में हर आदमी का चेहरा पहचानता हुआ उपस्थित हुआ। उसने मुझे पहचान लिया और बड़ी विनम्रता के साथ मेरे हाथ में नब्बे रुपये रख दिए और बोला, “यह बहुत गलती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मैंने भी नहीं देखा।” उसके चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा थी। मैं चकित रह गया। 

    टिकट बाबू लेखक को ढूँढ़ता हुआ क्यों आया?
    • उनसे बकाया पैसे लेने 
    • उन्हें नब्बे रुपए देने
    • माफी माँगने
    • उन्हें टिकट देने

    Easy
    Question 45
    CBSEENHN8000716

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से मैंने दस के बजाय सौ रुपये का नोट दिया और मैं जल्दी-जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गया। थोड़ी देर में टिकट बाबू उन दिनों के सेकंड क्लास के डिब्बे में हर आदमी का चेहरा पहचानता हुआ उपस्थित हुआ। उसने मुझे पहचान लिया और बड़ी विनम्रता के साथ मेरे हाथ में नब्बे रुपये रख दिए और बोला, “यह बहुत गलती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मैंने भी नहीं देखा।” उसके चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा थी। मैं चकित रह गया। 

    टिकट बाबू ने कितने पैसे वापस किए?
    • नब्बे रुपए 
    • नब्बे रुपए पचास पैसे
    • पचास रुपए नब्बे पैसे
    • दस रुपए

    Easy
    Question 46
    CBSEENHN8000717

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से मैंने दस के बजाय सौ रुपये का नोट दिया और मैं जल्दी-जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गया। थोड़ी देर में टिकट बाबू उन दिनों के सेकंड क्लास के डिब्बे में हर आदमी का चेहरा पहचानता हुआ उपस्थित हुआ। उसने मुझे पहचान लिया और बड़ी विनम्रता के साथ मेरे हाथ में नब्बे रुपये रख दिए और बोला, “यह बहुत गलती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मैंने भी नहीं देखा।” उसके चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा थी। मैं चकित रह गया। 

    लेखक किस बात पर चकित था?
    • अपने पैसे वापिस मिलने पर
    • टिकट बाबू की बात पर
    • टिकट बाबू की ईमानदारी देखकर
    • इनमें से कोई नहीं

    Easy