धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय दीजिए।
जीवन-परिचय: ‘धर्मयुग’ के संपादक के रूप में यश अर्जित करने वाले धर्मवीर भारती का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में सन् 1926 में हुआ था। शैशव में ही पिता का देहांत हो जाने के कारण इन्हें अर्थाभाव का संकट झेलना पड़ा। इनका जीवन संघर्षमय रहा। मामाश्री अभयकृष्ण जौहरी का आश्रय और संरक्षण मिलने से ये अपनी शिक्षा पूर्ण कर पाए। ये प्रारभ से ही स्वावलंबी प्रवृत्ति के थे अत: पद्मकांत महावीर के पत्र ‘अभुदय’ तथा इलाचंद्र जोशी के पत्र ‘संगम’ में कार्य किया। बाद में इन्हें प्रयाग विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में प्राध्यापक का पद मिल गया 11960 ई. में विश्वविद्यालय छोड्कर मुंबई चले गए और वहाँ ‘धर्मयुग’ का संपादन करने लगे।
‘दूसरा सप्तक’ में विशिष्ट कवि के रूप में स्थान पाने के कारण इनकी गिनती प्रयोगवादी कवियों में की जाने लगी किन्तु मूलत: वे गीतकार ही हैं। रोमानी कविता के रूप मे वे प्रेम और सौंदर्य के गायक कवि हैं। कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, पत्रकार तथा आलोचक के रूप में इन्होंने हिन्दी-साहित्य को समृद्ध किया है। अपनी साहित्य सेवाओं के लिए इन्हें अनेक बार सम्मानित किया गया है। कॉमनवेल्थ रिलेशंस तथा जर्मन सरकार के आमंत्रण पर इन्होंने इंग्लैंड, यूरोप और जर्मनी की; भारतीय दूतावास के अतिथि के रूप में इंडोनेशिया और थाईलैंड की तथा मुक्तिवाहिनी के सदस्य के रूप में बांग्लादेश की यात्राएँ कीं। इनको भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ के उपाधि से अलंकृत किया। सन् 1997 ई. में इनका देहांत हो गया।
इन रचनाओं के अतिरिक्त उन्होंने ऑस्कर वाइल्ड की कहानियों का हिन्दी में अनुवाद किया। ‘देशांतर’ तथा ‘युद्ध-यात्रा’ इनकी अनूदित कृतियाँ हैं।
साहित्यिक परिचय (काव्यगत विशेषताएँ): धर्मवीर भारती की काव्य की भावभूमि अत्यन्त व्यापक है। इनका प्रारंभिक काव्य रोमानी भाव बोध का काव्य है। प्रेम, सौंदर्य और संयोग-वियोग के श्रृंगारिक चित्र इन रचनाओ का वैशिष्टय है। भारती जी ने नारी के मांसल सौंदर्य के मादक चित्र भी उकेरे हैं-
इन फीरोजी होठों पर बरबाद मेरी जिदंगी,
गुलाबी पाँखुरी पर एक हल्की सुरमई आभा।
कि ज्यों करवट बदल लेती, कभी बरसात की दोपहर।
छायावाद की अनेक विशेषताएं उनके काव्य में मिलती हैं। छायावादी कवियों जैसी वैयक्तिकता भी उनके काव्य में मिलती है पर इतना अवश्य है कि इनकी वैयक्तिकता बौद्धिकता को साथ लेकर चली है। ‘नया रस’ कविता में वैयक्तिकता और बौद्धिकता सहचर रूप में मिलते हैं।
गुनाहों का देवता उपन्यास से लोकप्रिय धर्मवीर भारती का आजादी के बाद के साहित्यकारों में विशिष्ट स्थान है। उनकी कविताएँ कहानियाँ, उपन्यास, निबंध, गीतिनाट्य और रिपोर्ताज हिन्दी साहित्य की उपलब्धियाँ हैं। भारती जी के लेखन की एक खासियत यह भी है कि हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के बीच उनकी अलग-अलग रचनाएँ लोकप्रिय हैं। वे मूल रूप से व्यक्ति स्वातंत्र्य मानवीय संकट एवं रोमानी चेतना के रचनाकार हैं। तमाम सामाजिकता एवं उत्तरदायित्वों के बावजूद उनकी रचनाओं में व्यक्ति की स्वतंत्रता ही सर्वोपरि है। रोमानियत उनकी रचनाओं में संगीत में लय की तरह मौजूद है। उनका सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास गुनाहों का देवता एक सरस और भावप्रवण प्रेम कथा है। दूसरे लोकप्रिय उपन्यास सूरज का सातवाँ घोड़ा पर हिन्दी फिल्म भी बन चुकी है। इस उपन्यास में प्रेम को केन्द्र में रखकर निम्न मध्यवर्ग की हताशा, आर्थिक संघर्ष, नैतिक विचलन और अनाचार को चित्रित किया गया है। स्वतत्रता के बाद गिरते हुए जीवन मूल्य, अनास्था, मोहभंग, विश्वयुद्धों से उपजा हुआ डर और अमानवीयता की अभिव्यक्ति अंधा युग में हुई है। अंधा युग गीति साहित्य के श्रेष्ठ गीति नाट्यों में है। ‘मानव मूल्य और साहित्य’ पुस्तक समाज-सापेक्षिता को साहित्य के अनिवार्य मूल्य के रूप में विवेचित करती है।
इन विधाओं के अलावा भारती जी ने निबंध और रिपोर्ताज भी लिखे। उनके गद्य लेखन में सहजता और आत्मीयता है। बड़ी-से-बड़ी बात वे बातचीत की शैली में कहते हैं।