“यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने वाली एक आवाज़ है।” एक ऐसी आवाज, जो किसी संत या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की की है।” इल्या इहरनबुर्ग की इस टिप्पणी के संदर्भ में ऐन फ्रैंक की डायरी के पठित अंशों पर विचार कीजिए।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनी में हिटलर का शासन था। हिटलर की नस्लवादी नीति का सबसे अधिक प्रभाव यहूदी समुदाय ने झेला था। आधुनिक इतिहास का यह काला अध्याय है। ऐन फ्रैंक भी एक यहूदी परिवार की लड़की थी। वह एक साधारण लड़की ही थी। वह अन्य यहूदियों की ही तरह अपना जीवन बचाने के लिए अपने परिवार के साथ दो वर्ष से भी अधिक समय तक गुप्त आवास में रही। इस समय को वह अपने संवेदनशील एवं मानवीय सोच के साथ स्थितियों और उसके प्रभाव को अभिव्यक्त करती है।
ऐन फ्रैंक की डायरी में भय, आतंक, भूख, प्यास, मानवीय सवेदना, प्रेम, घृणा, बढ़ती उम्र की आशाये, हवाई हमले के डर ,पकड़े जाने का लगातार डर, तेरह साल की उस से जुड़े सपने, किशोर मन की कल्पनायें, बाहरी दुनिया से अलग-थलग पड़ जाने का दर्द, प्रकृति के प्रति संवेदना, मानसिक और शारीरिक जरूरतें, हँसी-मजाक, युद्ध की पीडा़ अकेलेपन का वर्णन है। यहूदियों के खिलाफ हुए अमानवीय दमन का मार्मिक इतिहास जानने और महसूस करने के लिए ऐन की डायरी सबसे महत्वपूर्ण है l इस डायरी में कल्पना का अंश नाममात्र का हो सकता है।
फिर भी उसकी अभिव्यक्ति सामूहिक अभिव्यक्ति का स्तर प्राप्त कर लेती है। ऐन की डायरी एक भोगे हुए यथार्थ की उपज है। इस तरह साधारण लड़की द्वारा रचित होने के बाद भी यह साठ लाख यहूदी लोगों की आवाज बन जाती है। इल्या इहरनबुर्ग की टिप्पणी हर तरह से सही सिद्ध होती है।