जैनेंद्र कुमार के जीवन एवं साहित्य का परिचय देते हुए उनकी विशेषताओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
जीवन-परिचय: प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार जैनेंद्र कुमार का जन्म 1905 ई. में अलीगढ़ जिले के कौड़ियागंज नामक कस्बे में हुआ था। उन्होंने मैट्रिक तक की शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल में प्राप्त की। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। गाँधी जी के आह्वान पर 1921 ई. में अध्ययन बीच में ही छोड्कर असहयोग आदोलन में शामिल हो गये। वे गाँधी जी के जीवन-दर्शन से अत्यधिक प्रभावित थे और उनकी झलक उनकी रचनाओं में भी पाई जाती है। आजीविका के लिए उन्होंने स्वतंत्र लेखन को अपनाया। उन्होंने अनेक राजनीतिक पत्रिकाओं का सपादन किया जिसके कारण उन्हें जेल-यात्रा भी करनी पड़ी। उनकी साहित्यिक सेवाओं को ध्यान में रखकर 1970 ई. मे उन्हें ‘पद्यभूषण’ से सम्मानित किया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय ने 1973 ई. में उन्हें डी. लिट की मानद उपाधि प्रदान की। उनकी साहित्यिक सेवाओ के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 1984 ई. में उन्हें ‘भारत-भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया। 1989 ई० में उनका देहांत हो गया।
रचनाएँ: जैनेंद्र जी हिंदी साहित्य में अपने कथा-साहित्य के कारण प्रसिद्ध हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं
उपन्यास: ‘सुनीता’ ‘परख’ ‘कल्याणी’ ‘त्यागपत्र’ ‘जयवर्धन’ ‘आदि।
कहानी-संग्रह: ‘एक रात’ ‘वातायन ‘दो चिड़ियाँ, ‘नीलम देश की राजकन्या’ आदि।
निबंध-संग्रह: ‘प्रस्तुत प्रश्न’, ‘जैनेंद्र के विचार’ ‘संस्मरण’ ‘समय और हम’ ‘इतस्तत:’ ‘आदि।
साहित्यिक विशेषताएँ: जैनेंद्र जी ने अपनी रचनाओं में जीवन की विविध समस्याओं को उभारा है। उनके विचारों और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण में मौलिकता के दर्शन होते हैं। गाँधीवादी जीवन-दर्शन की छाप भी उनकी रचनाओं में सहज ही देखी जा सकती है। वे प्रत्येक बात, विचार, भाव और स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं। वे स्थिति का मूल्यांकन मानव-हित को ध्यान में रखकर करते हैं।
भाषा-शैली: जैनेंद्र जी अपनी सहज सरल एवं निष्कपट भाषा के लिए प्रसिद्ध है। वे नए शब्द गढ़ने में भी कुशल हैं। जैसे-असुधार्य आशाशील आदि।
लेखक के दिमाग में जैसा वाक्य आता है उसे वह वैसा ही प्रयोग कर देता है जैसे- “पर सबको संतुष्ट कर पाऊँ ऐसा मुझसे नहीं बनता।” जैनेंद्र जी तत्सम शब्दों के साथ तद्भव और उर्दू के शब्दों का सहज प्रयोग कर जाते हैं। जैसे-
तत्सम शब्द: परिमित, आमंत्रण आग्रह आदि।
तद्भव शब्द: धीरज।
उर्दू शब्द: फिजूल हरज दरकार आदि।
अंग्रेजी शब्द: पावर, पर्चेजिंग पावर मनी बैग।
जैनेंद्र जी संवादों का प्रयोग करके अपनी भाषा-शैली को रोचक बना देते हैं। वे अनेक स्थलों पर वक्रोक्ति का प्रयोग कर जाते हैं। उनके निबंध विचारोत्तेजक और मर्मस्पर्शी बन पड़े हैं।