जूझ

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Question
CBSEENHN12026708

‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?

Solution

शीर्षक किसी भी रचना का महत्वपूर्ण अंग होता है। शीर्षक वह केन्द्र बिन्दु है जिससे पाठक को विषयवस्तु का सामान्य एवं आकर्षक बोध हो जाता है। ‘जूझ’ शीर्षक भी अपने आप में हर तरह से औचित्यपूर्ण है। ‘जूझ’ का शाब्दिक अर्थ है-’संघर्ष’। यह शीर्षक आत्मकथा के मूरल स्वर के रूप में सर्वत्र दिखाई देता है। यह एक किशोर के देखे और भागे हुए गँवई जीवन के खुरदरे यथार्थ और परिवेश को विश्वसनीय ढंग से प्रतिबिम्बित भी करता है।

कथानायक अपने जीवन में शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई स्तर पर जूझता है। वह स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर, पारिवारिक स्तर पर, सामाजिक स्तर पर, विद्यालय के माहौल के स्तर पर, आर्थिक स्तर पर आदि इस तरह के कई स्तर पर उसका संघर्ष दिखाई देता है। स्पष्ट है कि यह शीर्षक कथानायक के पढ़ाई के प्रति जूझने की भावना को उजागर करता है। लेखक ने अपनी आत्मकथा अपनी इसी चारित्रिक विशेषता को केन्द्र में रखकर की है।

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Question
CBSEENHN12026709

स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?

अथवा

‘जूझ’ कहानी के लेखक में कविता-रचना के प्रति रुचि कैसे उत्पन्न हुई? पाठ के आधार पर बताइए।

Solution

लेखक की पाठशाला में मराठी के मास्टर थे जिनका नाम न. वा. सौंदलोकर था। वह कविता के अच्छे रसिक एव मर्मज्ञ थे। उनकी कविता पड़ाने के अंदाज ने लेखक को कविता रचने की ओर आकर्षित किया। वह कविता पड़ता है। धीरे-धीरे उसके मन में कविता रचने की भी प्रतिभा पैदा हुई। शुरू में उसके मन मे एक डर बैठा हुआ था। उसे कवि किसी दूसरे लोक के लगते थे। सौदलगेकर मास्टर एक कवि थे। उन्होंने दूसरे कवियों के बारे में भी बताया था। इसके बाद उसे विश्वास हुआ कि कवि उसी की तरह आदमी ही होते हैं। यह विश्वास पैदा होने के बाद ही उसके मन में स्वयं कविता रच लेने का आत्म विश्वास पैदा हुआ। वह अपने आस-पास के वातावरण से जुड़ी चीजों पर तुकबंदी भी करने लगा।

Question
CBSEENHN12026711

श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की ‌‌उन विशेषताओं को रेखांकित करें, जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई।

अथवा

कविता के प्रति रुचि जगाने में शिक्षक की भूमिका पर ‘जूझ’ कहानी के आधार पर प्रकाश डालिए।

अथवा

श्री सौंदलगेकर के व्यक्तित्व की उन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए जिनके कारण ‘जूझ’ के लेखक के मन में कविता के प्रति लगाव उत्पन्न हुआ।

अथवा

श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं का उल्लेख करें जिन्होंने कविताओं के प्रति ‘जूझ’ पाठ के लेखक के मन में रुचि जगाई।



Solution

श्री सौंदलगेकर मराठी के अध्यापक थे। पढ़ाते समय वे स्वयं में रम जाते थे। उनके कविता पड़ाने का अंदाज बहुत ही अच्छा था। वह सुरीले गले के साथ छंद की बढ़िया चाल के साथ कविता पढ़ाते थे। उन्हें नयी-पुरानी मराठी एवं अंग्रेजी कविताएँ अच्छी तरह याद थीं। कविताओं से संबंधित अनेक छंदों की लय, गति और ताल पर उनकी अच्छी पकड़ थी। पढ़ाते समय पहले कविता गाकर सुनाते थे। फिर छात्रों को अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण कराते थे। उसी भाव में किसी अन्य कवि की कविता भी सुनाते थे। कविता पढ़ाते हुए मराठी के प्रसिद्ध कवियों जैसे-कवि यशवंत, बा. भ. बोरकर, भा. रा. ताम्बे, गिरीश, केशव कुमार आदि के साथ अपनी मुलाकात की बातें छात्रों को बताते थे। श्री सौंदलगेकर मराठी भाषा में स्वयं कविता भी लिखते थे। कभी-कभी छात्रों को अपनी कविता भी सुनाते थे। उनके अध्यापन की इन विशेषताओं का लेखक के बालपन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा। उनकी कक्षा में पढ़ते हुए उसे स्वयं का भी ध्यान नहीं रहता था। इस तरह उसके मन में कविता के प्रति रुचि पैदा हो गई।

Question
CBSEENHN12026712

कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?

अथवा

‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए कि कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?

Solution

कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक को ढोर चराते हुए, खेतों में पानी लगाते हुए या दूसरे काम करते हुए अकेलेपन की स्थिति बहुत खटकती थी। उसे कोई भी काम करना तभी अच्छा लगता था जबकि उसके साथ कोई बोलने वाला, गपशप करने वाला या हँसी-मजाक करने वाला हो। कविता के प्रति लगाव हो जाने के बाद उसकी मानसिकता में बदलाव आ गया था। उसे अब अकेलेपन से कोई ऊब नहीं होती थी। वह अपने आप से खेलना सीख गया था। पहले से उलट वह अकेला रहना अच्छा मानने लगा था। अकेले रहने से उसे ऊँची आवाज में कविता गाने अभिनय करने या नाचने की स्वतंत्रता का अनुभव होता था जो उसे असीम आनंद से भर देते थे।