साना साना हाथ जोड़ि..

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Question
CBSEENHN100018873

‘साना-साना हाथ जोड़ि’ के आधार पर लिखिए कि देश की सीमा पर सैनिक किस प्रकार की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति भारतीय युवकों का क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए? [4]

अथवा

‘जार्ज पंचम की नाक’ को लेकर शासन में खलवली क्यों थीं? इसमें निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।

Solution

देश की सीमा पर सैनिक प्रकृति के भयावह प्रकोप को सामना करते हैं जो जन-सामान्य के लिए कठिन है। वे जाड़ों में जब तापमान शून्य से भी कम चला जाता है तब भी सीमा में डटे रहकर देश की रक्षा करते हैं और तपते रेगिस्तान में धूल-आँधियों से भरे तूफानों में रहकर भी कठिनाइयों से जूझते हैं। भूखे-प्यासे कभी-कभी शत्रुओं से सामना करते हैं। और आवश्यकता पड़ने पर शहीद भी हो जाते हैं।

उनके प्रति भारतीय युवाओं का उत्तरदायित्व यह बनता है। कि सभी फौजियों व उनके परिवारजनों का सम्मान करें व आत्मीय सम्बन्ध बनाए रखें। सामर्थ्य के अनुसार हर प्रकार से सहायता प्रदान करें। उनके जोश को और बढ़ाएँ। उनके परिवारजनों की शिक्षा प्राप्ति में सहायक बनें उनके फर्ज को ऋण के रूप में स्वीकारते हुए हमेशा उन्हें सम्माननीय दृष्टि से देखें ।

अथवा

जॉर्ज पंचम की नाक को लेकर शासन में जो खलबली और बदहवासी दर्शाता है इससे संकेत मिलता है कि आज हम स्वतन्त्र देश में गुलामों की तरह जी रहे हैं। गुलामी आज भी हमारी मानसिकता पर अपनी छाप बनाए हुए हैं। सरकारी तंत्र उस जॉर्ज पंचम की नाक को लेकर चिंतित दिखाई दे रही है जिसने हमारे भारत पर राज करते हुए कहर ढाए। उसके द्वारा किये गये अत्याचारों को भूलकर उसके सम्मान में जुट जाता है। ये तो मूर्खता, अयोग्यता और अदूरदर्शिता को दर्शा रहा है। परतंत्रता की मानसिकता से अब भी मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। अतिथि का सम्मान करने के लिए अपने सम्मान को दाब पर लगाना कहाँ तक तर्कसंगत हो सकता है। वे केवल अपनी नाक बचाना चाहते थे। अपने देश व देशवासियों को महत्व न देकर जॉर्ज पंचम की नाक को इतना महत्व देना, उनकी नीच, क्रुर, स्वार्थी तथा संकुचित सोच का परिणाम है।

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Question
CBSEENHN100018877

‘साना-साना हाथ जोड़ि’ के आधार पर गंगतोक के मार्ग के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन कीजिए जिसे देखकर लेखिका को अनुभव हुआ ‘जीवन का आनंद है यही चलायमान सौन्दर्य। [4]

अथवा

‘जार्ज पंचम की नाक’ के बहाने भारतीय शासनतंत्र पर किए गए व्यंग्य को स्पष्ट करते हुए पत्रकारों की भूमिका पर भी टिप्पणी कीजिए।

Solution

लेखिका ने धीरे-धीरे धुंध की चादर हटते हुए देखा तो आश्चर्यचकित रह गई। सब ओर जन्नत बिखरी हुई पड़ी थी। नज़रों के छोर तक खूबसूरती फैली दिखाई दे रही थी। पर्वत फूलों की घाटियाँ, पर्वत, प्रवाहमान झरने, नीचे वेग से बहती तिस्ता नदी, ऊपर मँडराते आवारा बादल सब कुछ घटित होते दिखाई दे रहे थे। इन दुर्लभ नजारों ने लेखिका को मोहित कर रखा था। हवा में हिलोरे लेते प्रियुता और डोडेंडो के फूल प्रकृति में खुशबू बिखेर रहे थे। इन सबके साथ सतत प्रवाह में बहता लेखिका का वजूद उसे यह एहसास करा रहा था कि जीवन का आनंद है यही चलायमान सौंदर्य।

अथवा

‘जॉर्ज पंचम की नाक’ के बहाने भारतीय शासनतंत्र पर करारी व्यंग्य किया गया। देश को स्वतन्त्र हुए लंबा समय बीत जाने पर भी सरकारी तंत्र गुलामों की मानसिकता के साथ जी रहे हैं। , एलिजाबेथ के आने के कारण अचानक सरकारी तंत्र जॉर्ज पंचम की नाक को छोड़ने में लग गया है। यह गुलामी की मानसिकता का ही प्रतीक है। पत्रकारों ने भी इसमें अहम भूमिका निभायी। इंग्लैंड के अखबारों में छपी खबर दूसरे दिन हिंदुस्तानी अखबारों में चिपकी नजर आती थी। रानी के कपड़ों के बारे में, जन्मपत्री, नौकरों, बावर्चियों, खानसामों अंगरक्षकों की पूरी जीवनियाँ अखबारों में छपी। पत्रकारों ने शाही महल के कुन्तों की तस्वीरें तक अखबार में छपी। आलम यह था कि शंख इंग्लैंड में बज रहा था, गूंज हिंदुस्तान में आ रही थी।

Question
CBSEENHN10002721

झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?

Solution

रात्रि के समय आसमान ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सारे तारे बिखरकर नीचे टिमटिमा रहे थे। दूर ढलान लेती तराई पर सितारों के गुच्छे रोशनियों की एक झालर-सी बना रहे थे। रात के अन्धकार में सितारों से झिलमिलाता गंतोक लेखिका को जादुई एहसास करा रहा था। उसे यह जादू ऐसा सम्मोहित कर रहा था कि मानो उसका आस्तित्व स्थगित सा हो गया हो, सब कुछ अर्थहीन सा था। उसकी चेतना शून्यता को प्राप्त कर रही थी। वह सुख की अतींद्रियता में डूबी हुई उस जादुई उजाले में नहा रही थी जो उसे आत्मिक सुख प्रदान कर रही थी।

Question
CBSEENHN10002722

गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' क्यों कहा गया?

Solution

गंतोक को सुंदर बनाने के लिए वहाँ के निवासियों ने विपरीत परिस्थितियों में अत्यधिक श्रम किया है। पहाड़ी क्षेत्र के कारण पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाना पड़ता है। पत्थरों पर बैठकर औरतें पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े होते हैं। कईयों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं और वे काम करते रहते हैं। हरे-भरे बागानों में युवतियाँ बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं। बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ जीवन बेहद कठिन है पर यहाँ के लोगों ने इन कठिनाईयों के बावजूद भी शहर के हर पल को खुबसूरत बना दिया है। इसलिए लेखिका ने इसे 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' कहा है।