तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

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Question
CBSEENHN100018876

निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए [2 × 4 = 8]
(क) लक्ष्मण ने धनुष टूटने के किन कारणों की संभावना व्यक्त करते हुए राम को निर्दोष बताया?
(ख) फागुन में ऐसी क्या बात थी कि कवि की आँख हट नहीं रही है?
(ग) फसल क्या है? इसको लेकर फसल के बारे में कवि ने क्या-क्या संभावनाएँ व्यक्त की हैं?
(घ) ‘कन्यादान’ कविता में वस्त्र और आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन’ क्यों कहा गया है?
(ङ) संगतकार किसे कहा जाता है? उसकी भूमिका क्या होती

Solution

(क) लक्ष्मण ने धनुष टूटने के कई कारण बताते हुए राम को निर्दोष बताया।

  1. धनुष अत्यंत जीर्ण था जो राम के हाथ लगाते ही टूट गया।
  2. हमारे लिए तो सभी धनुष एक समान हैं इस धनुष के टूटने से हमारा क्या लाभ या हानि होगी।
  3. राम ने तो इसे नया समझकर छुआ ही था, छूने भर से ही ये टूट गया।

(ख) फागुन के महीने में प्राकृतिक सौंदर्य अपनी चरम सीमा पर व्याप्त होता है। फागुन में बसंत का यौवन और सुंदरता कवि की आँखों में समा नहीं पा रहा है। उसका हृदय प्रकृति के सौंदर्य से अभिभूत है। इस कारण कवि की आँख प्रकृति के सौंदर्य से हट नहीं पा रही है।

(ग) फसले नदियों के पानी का जादू, मिट्टियों का गुण धर्म, मानव श्रम धूप और हवी का मिला-जुला रूप है। सभी प्राकृतिक उपादानों और मानव श्रम का परिणाम है। फसल को लेकर कवि ने संभावनाएँ व्यक्त करते हुए कहा है कि मनुष्य यदि परिश्रम करे और प्राकृतिक उपादनों को सही उपयोग करे तो देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। किसानों की स्थिति में सुधार आएगा और कृषि व्यवस्था सदृढ़ होगी।

(घ) कन्यादान कविता में वस्त्र और आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन इसलिए कहा गया है क्योंकि स्त्रियाँ सुंदर वस्त्र व सुंदर आभूषणों के चमक वे लालच में भ्रमित होकर आसानी से अपनी आजादी खो देती हैं। और मानसिक रूप से हर बंधन स्वीकारते हुए जुल्मों का शिकार होती हैं।

(ङ) किसी भी क्षेत्र या कार्य में मुख्य कलाकार का सहयोग करने वाले सहायकों को संगतकार कहा जाता है। संगताकर की भूमिका यह होती है कि वह अपने मुख्य कलाकार को पूर्ण सहयोग प्रदान करता ह और उन्हें आगे बढ़ने में योगदान देता है। जैसे संगीत के क्षेत्र में संगतकार मुख्य गायक की आवाज को बिखरने नहीं देता है साथ ही अपनी आवाज को प्रभावी नहीं बनने देता है।

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Question
CBSEENHN10002005

परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए? 

Solution

सीता-स्वयंवर के अवसर पर श्री राम ने शिव जी के धनुष को तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम अत्यंत क्रोधित हो गए थे। तब लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के कारण बताते हुए कहा था कि वह धनुष नहीं था बल्कि धनुही थी। वह बहुत पुराना था और राम के द्वारा छूते ही वह टूट गया था। इसमें राम का कोई दोष नहीं था।

Question
CBSEENHN10002006

परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुई उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएं अपने शब्दों में लिखिए।

Solution

राम और लक्ष्मण दोनों एक ही पिता की संतान थे। उन्होंने एक ही गुरु से शिक्षा पाई थी और एक-से वातावरण में ही रहे थे पर दोनों के स्वभाव में बहुत बड़ा अंतर था। राम स्वभाव से शांत थे पर लक्ष्मण उग्र स्वभाव के थे। धनुष टूट जाने पर राम ने शांत भाव से परशुराम से कहा था कि धनुष तोड़ने वाला कोई उनका दास ही होगा पर लक्ष्मण ने उन्हें मनचाही जली-कटी सुनाई थी। राम ने उनके क्रोध को शांत करने का प्रयास किया तो लक्ष्मण ने अपनी व्यंग्यपूर्ण वाणी से उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। परशुराम के क्रोध करने पर-राम शांत भाव से बैठे रहे थे पर लक्ष्मण उन पर व्यंग्य करते हुए उन्हें उकसाते रहे थे। राम ऋषि-मुनियों का आदर-मान करने वाले थे पर लक्ष्मण का स्वभाव ऐसा नहीं था। लक्ष्मण की वाणी तो परशुराम रूपी यज्ञ की अग्नि में आहुति के समान थी तो राम की वाणी शीतल जल के समान उस अग्नि को शांत करने वाली थी।

Question
CBSEENHN10002007

लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

Solution

लक्ष्मण (मुस्कराते हुए)-अरे वाह! मुनियों में श्रेष्ठ, आप परशुराम जी, क्या अपने आप को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं? आप हैं क्या? बार-बार अपनी कुल्हाड़ी क्यों दिखाते हैं, मुझे? आप अपनी फूँक से पहाड़ उड़ाने की कोशिश करना चाहते हैं क्या?
परशुराम (गुस्से में भरकर) -तुम्हें तो..........।
लक्ष्मण (व्यंग्य भाव से)-बोलो, बोलो (कौन परवाह करता है, आपकी। मैं कुम्हड़े का फूल नहीं हूँ जो आपकी तर्जनी देख सूख जाऊँगा। मैंने तो आपके फरसे और धनुष-बाण को देखा था। समझा था, आप कोई क्षत्रिय है। इसीलिए अभिमानपूर्वक मैंने कुछ कह दिया था आपसे।
परशुराम (गुस्से से लाल होते हुए)-अरे, तुम…………।
लक्ष्मण (डरने का अभिनय करते हुए)-अरे, अरे! आप तो ब्राहमण हैं। आपके गले में तो यज्ञोपवीत भी है। गलती हो गई मुझ से। क्षमा’ करें मुझे आप। हमारे वंश में देवता, ब्राह्मण, भक्त और गौ के प्रति कभी वीरता नहीं दिखाई जाती।
परशुराम (गुस्से से पूछते हुए) -तुम तो...........।
लक्ष्मण-इन्हें मारने से पाप लगता है...और यदि इनसे लड़कर हार जाएं तो अपयश मिलता है। ब्राहमण देवता.....यदि आप मुझे मारेंगे, तो भी मैं आप के पैरों में ही पडूँगा। अरे मुनिवर, आपकी तो बात ही अनूठी है, आप का एक-एक वचन ही करोड़ों वज्रों के समान है...तो फिर बताइए कि आपने व्यर्थ ही ये धनुष-बाण और पारसा क्यों धारण कर रखा है? क्या जरूरत है आपको इन सब की? मैंने आपके इन अस्त्र-शस्त्रों को देखकर आपसे जो उल्टा-सीधा कह दिया है कृपया उसके लिए मुझे माफ कर दीजिए। हे महामुनि मुझे क्षमा कर दीजिए।