अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे?
अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के निम्नलिखित कारण थे:
(i) यूरोप द्वारा शेष विश्व का उपनिवेशीकरण: यूरोपीय लोगों द्वारा विभिन्न वैज्ञानिक तथा व्यापारिक खोजों के फलस्वरुप विभिन्न नए-नए क्षेत्रों का पता चला जिनसे व्यापार किया जा सकता था। यूरोपीय सरकारों ने इसके लिए व्यापारियों को प्रोत्साहित किया। किंतु, कालांतर में यूरोपीय शक्तियों द्वारा इन क्षेत्रों में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए गए। अब वे यहाँ के संसाधनों का दोहन अपनी इच्छानुसार कर सकते थे। परिणामस्वरुप, वस्त्रों के लिए नई सामग्रियाँ इन क्षेत्रों से यूरोप पहुँचने लगीं तथा पहनावे में भी बदलाव आया। इस कार्य में कपास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसका अधिकाधिक प्रयोग यूरोपीय लोगों द्वारा सस्ते वस्त्रों के निर्माण में किया गया। इसका हल्का, सस्ता तथा रख-रखाव में आसान होना, नए तरह के पहनावे के विकास में सहायक था।
(ii) नाटकीय विचारों का प्रसार: यूरोपीय समाज अपने जनतांत्रिक अधिकारों के महत्व को समझ चुका था। उन्होंने श्रेष्ठ तथा हीन, कुलीन वर्ग तथा जन सामान्य के बीच अंतर को खत्म करने के लिए संघर्ष किया। इसके साथ ही महिलाओं के मताधिकार की पहचान ने भी पहनावे पर अपना प्रभाव छोड़ा। फ्रांसीसी क्रांति ने ऐसे बहुत से क्लबों को जन्म दिया जहाँ पहनावा कुलीनता विरोध का प्रतीक बन गया। फलत: नए पहनावे लोगों के सामने आए।
(iii) शिक्षा/महिला पत्रिकाओं का योगदान: यूरोपीय स्कूलों में नए पाठ्यक्रम लागू हुए जिसमें लड़कियों के लिए जिम्नास्टिक जैसे खेलों को भी शामिल किया गया। इसके लिए ऐसे पहनावे की आवश्यकता थी जो शारीरिक गतिविधियों में बाधक ना हों। पारंपरिक वस्त्र तथा उनके दुष्प्रभाव के बारे में जागरूकता आई जिसमें महिला पत्रिकाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। फलत:, 'कॉर्सेट', 'बस्क' तथा 'स्टे' आदि जैसे पारम्परिक वस्त्रों का परित्याग कर दिया गया।