आधुनिक विश्व में चरवाहे

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Question
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स्पष्ट कीजिए कि घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है? इस निरंतर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ है?

Solution

सुखों से चारवाही समूहों का जीवन प्राय: प्रभावित होता हैं जब वर्षा नहीं होती है, चारागाह सुख जाते हैं तो पशुओं के लिए भूखे मरने की स्थिति आ जाती है। यही कारण है की घुमंतू जनजातियों को, जो चारावाही से अपनी जीविका प्राप्त करते हैं, एक जगह से दूसरी जगह तक घूमते रहने की आवश्यकता पड़ती हैं। इस घुमंतू जीवन के कारण उन्हें जीवित रहने तथा संकट से बचने का अवसर प्राप्त होता है।  
उनकी सतत गतिशीलता के पर्यावरणीय लाभ निम्नलिखित हैं-
(i) उनकी गतिशीलता के कारण प्राकृतिक वनस्पति को फिर से वृद्धि करने का अवसर प्राप्त होता है। फलतः वनस्पति सरंक्षण के कारण पर्यावरण संतुलित रहता है।
(ii) उनके मवेशियों को हरा-भरा नया चारा प्राप्त होता है। तथा वे खेतों में घूम-घूम कर गोबर देते रहते है जिससे कृषि भूमि की उर्वरता बनी रहती है।



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Question
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इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा?

परती भूमि नियमावली
वन अधिनियम
अपराधी जनजाति अधिनियम
चराई कर

Solution

परती भूमि नियम: इस नियम के तहत सरकार गैर-खेतिहर ज़मीन को अपने कब्जे में लेकर कुछ खास लोगों को सौंपने लगी। इन लोगों को कई तरह की रियायतें दी गईं और इस जमीन को खेती लायक बनाने और खेती करने को बढ़ावा दिया गया। ज्यादातर जमीन चरगाहों की थी जिनका चरवाहे नियमित रुप से इस्तेमाल करते थे। खेती के फैलाव से चरागाह सिमटने लगे और चरवाहों के लिए समस्या पैदा हो गई।
वन अधिनियम: इस अधिनियम के द्वारा सरकार ने ऐसे जंगलों को 'आरक्षित' वन घोषित कर दिया जहाँ देवदार या साल जैसी कीमती लकड़ी पैदा होती थी। इन जंगलों में चरवाहों के घुसने पर पाबंदी लगा दी गई। कई जंगलों को 'संरक्षित' घोषित कर दिया गया। इन जंगलों में चरवाहों को चरवाही के कुछ परंपरागत अधिकार तो दिए गए लेकिन उनकी आवाजाही पर बंदिशें लगी रहीं।
अपराधी जनजाति अधिनियम: इस कानून के तहत दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी की सूची में रख दिया गया। उन पर बिना परमिट आवाजाही पर रोक लगा दी गई। ग्राम्य पुलिस उन पर सदा नजर रखने लगी।

चराई कर: उन्नीसवीं सदी के मध्य से ही देश के ज्यादातर चरवाही इलाकों में चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया था। हरेक चरवाहे को एक पास दिया गया। चरागाह में दाखिल होने के लिए चरवाहों को पास दिखाकर पहले टैक्स अदा करना होता था।

Question
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मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छीन गए? कारण बताएँ? 

Solution

मासाई अफ्रीका के चरवाही समुदाय थे। वे मुख्यरूप से केन्या तथा तंज़ानिया में रहते थे।
(i) उन्नीसवीं सदी के अंत में यूरोप की साम्राज्यवादी ताकतों ने अफ्रिका में कब्जे के लिए मारकाट शुरु कर दी। बहुत सारे इलाकों को छोटे-छोटे उपनिवेशों में तब्दील कर अपने कब्जे में ले लिया।1885 में मासाईलैंड को ब्रिटिश कीनिया और जर्मन तांगान्यिका के बीच एक अंतरराष्ट्रीय सीमा खींचकर बराबर-बराबर हिस्सों में बाँट दिया गया। गोरों को बचाने के लिए बेहतरीन चरागाहों को अपने कब्जे में ले लिया।
(ii) मासाइयों को दक्षिण कीनिया और उत्तरी तंज़ानिया के छोटे से इलाके में समेट दिया गया। औपनिवेशिक शासन से पहले मासाइयों के पास जितनी ज़मीन थी उसका लगभग 60 फ़ीसदी हिस्सा उनसे छीन लिया गया। उन्हें ऐसे सूखे इलाकों में कैद कर दिया गया जहाँ न तो अच्छी बारिश होती थी और न ही हरे-भरे चरागाह थे। उन्नीसवीं सदी के अंतिम सालों में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार पूर्वी अफ़्रीका में भी स्थानीय किसानों को अपनी खेतो के क्षेत्रफल को ज़्यादा से ज़्यादा फैलाने के लिए प्रोत्साहित करने लगी।
(iii) जैसे -जैसे खेती का प्रसार हुआ वैसे-2  चरागाह खेतों में तब्दील होने लगे। बहुत सारे चरागाहों को शिकारगाह  बना दिया गया। कीनिया में मासाई  मारा व साम्बुरु नेशनल पार्क और तंज़ानिया में सेरेंगेटी पार्क जैसे शिकारगाह इसी तरह आस्तित्व में आए थे। इन आरक्षित जंगलों में चरवाहों का आना-मना था। इन इलाकों में न तो वे शिकार कर सकते थे और न अपने जानवरों को चरा सकते थे।

Question
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आधुनिक विश्व में भारत और पूर्वी अफ़्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएं थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों के बीच समान रुप से मौजूद थे।

Solution

वे परिवर्तन जो भारतीय चरवाहा समुदायों तथा मासाई पशुपालकों के लिए समान थे वे हैं:-
(i) भारतीय चरवाहा समुदायों तथा मासाई पशुपालकों दोनों को अपने-अपने चारागाहों से बेदखल कर दिया गया जिसका मतलब था दोनों के लिए चारे की कमी तथा जीवन-यापन की समस्या का उत्पन्न होना।
(ii) भारतीय चरवाहा समुदाय तथा मासाई पशुपालक दोनों को ही समस्याओं का समान रुप से सामना करना पड़ा जब वनों को 'आरक्षित' घोषित कर दिया गया तथा उन्हें इनमें प्रवेश करने से मना कर दिया गया।