उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि संप्रदाय के समन्वय से इतिहासकार क्या अर्थ निकालते हैं?
संप्रदाय के समन्वय से इतिहासकारों का अभिप्राय पूजा प्रणालियों के समन्वय से हैं। एक प्रक्रिया ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार की थी। इतिहासकारों के अनुसार यहाँ कम से कम दो प्रक्रियाएँ चल रही थी। इसका प्रसार पौराणिक ग्रंथों की रचना, संकलन और परिरक्षण द्वारा हुआ। ये ग्रंथ सरल संस्कृत छंदों में थे जो वैदिक विद्या से विहीन स्त्रियों और शूद्रों द्वारा भी ग्राह्य थे।
दूसरी परंपरा शूद्र, स्त्रियों व अन्य सामाजिक वर्गों के बीच स्थानीय स्तर पर विकसित हुई विश्वास प्रणालियों पर आधारित थी। इन दोनों अर्थात् ब्राह्मणीय व स्थानीय परम्पराओं के संपर्क में आने से एक-दूसरे में मेल-मिलाप हुआ। इसी मेल-मिलाप को इतिहासकार समाज की गंगा-जमुनी संस्कृति या सम्प्रदायों के समन्वय के रूप में देखते हैं। इसमें ब्राह्मणीय ग्रंथों में शूद्र व अन्य सामाजिक वर्गों के आचरणों व आस्थाओं को स्वीकृति मिली। दूसरी ओर सामान्य लोगों ने कुछ सीमा तक ब्राह्मणीय परम्परा को स्थानीय विश्वास परंपरा में शामिल कर लिया। इस प्रक्रिया का सबसे विशिष्ट उदाहरण पुरी, उड़ीसा में मिलता है जहाँ मुख्य देवता को बारहवीं शताब्दी तक आते-आते जगन्नाथ (शाब्दिक अर्थ में संपूर्ण विश्व का स्वामी), विष्णु के एक स्वरूप के रूप में प्रस्तुत किया गया।