Sponsor Area
औपनिवेशिक शहर
औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सँभाल कर क्यों रखे जाते थे?
औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स संभाल कर रखने के निम्नलिखित कारण थे:
- इन रिकॉर्डों से शहरों में व्यापारिक गतिविधियाँ, औद्योगिक प्रगति, सफाई, सड़क परिवहन, यातायात और प्रशासनिक कार्याकलापों की आवश्यकताओं को जानने-समझने और उन पर आवश्यकतानुसार कार्य करने में सहायता मिलती थी।
- शहरों की बढ़ती-घटती आबादी के प्रतिशत को जानने के लिए भी यह रिकॉर्ड रखा जाता था।
- शहरों की चारित्रिक विशेषताओं के अन्वेषण के समय उन रिकॉर्डों का प्रयोग सामाजिक और अन्य परिवर्तनों को जानने के लिए किया जाता था।
औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनगणना संबंधी आकंड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं।
औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनसंख्या के आकंड़े बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं:
- ये आँकड़े हमें शहरीकरण की गति दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए इन आकंड़ों से हमें पता चलता हैं कि 1800 के बाद हमारे देश में शहरीकरण की रफ़्तार धीमी रहीं हैं। पूरी उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के पहले दो दशकों तक देश की कुल आबादी में शहरी आबादी का हिस्सा बहुत मामूली और स्थिर रहा।
- इनमें लोगों के व्यवसायों की जानकारी तथा उनके लिंग, आयु व जाती सम्बन्धी सूचनाएँ मिलती हैं। ये जानकारियाँ आर्थिक और सामाजिक स्थिति को समझने के लिए काफी उपयोगी हैं।
- जनगणना संबंधी आँकड़ों से श्वेत एवं अश्वेत शहरों, शहरों के निर्माण, विस्तार, उनमें रहने वाले लोगों के जीवन-स्तर, भयंकर बीमारियों के जनता पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों आदि के विषय में भी महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है।
- जनसंख्या के आकंड़े मृत्यु-दर तथा बीमारियों से मरने वाले लोगों की संख्या बताते हैं। ये आकँड़े स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव को भी दर्शाते हैं।
''व्हाइट'' और ''ब्लैक'' टाउन शब्दों का क्या महत्व था?
'व्हाइट'' और ''ब्लैक'' टाउन शब्दों का महत्व:
- ''व्हाइट'' और ''ब्लैक'' टाउन शब्द नगर संरचना में नस्ली भेदभाव के प्रतीक थे। अंग्रेज़ गोरी चमड़ी के होते थे इसलिए उन्हें व्हाइट (White) कहा जाता था, जबकि भारतीय को काले (Black) लोग कहा जाता था।
- अंग्रेज़ गोरे लोग दुर्गों के अंदर बनी बस्तियों में रहते थे, वही दूसरी ओर, भारतीय व्यापारी, कारीगर और मज़दूर इन किलों से बाहर बनी अलग बस्तियों में रहते थे।
- अंग्रेज़ों और भारतीयों के लिए अलग-अलग मकान (क़्वार्टस) बनाए गए थे। दुर्ग के भीतर रहने का आधार रंग और धर्म था। अलग रहने की यह नीति शुरू से ही अपनाई गई थी।
- सरकारी रिकार्ड्स में भी भारतीयों की बस्ती को 'ब्लैक टाउन' तथा अंग्रेज़ों की बस्ती को 'व्हाइट टाउन' बताया गया हैं। नए शहरों की संरचना में नस्ल आधारित भेदभाव शुरू से ही दिखता है। यह उस समय और भी तीखा हो गया जब अंग्रेज़ों का राजनीतिक नियंत्रण स्थापित हो गया। 'व्हाइट टाउन' प्रशासकीय और न्यायिक व्यवस्था का केंद्र भी था।
प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया?
प्रमुख भारतीय व्यापारी काफ़ी धनी थे। साथ ही वे पढ़े-लिखे भी थे। वे चाहते थे कि वे भी अंग्रेज़ों के समान 'व्हाइट टाउन' जैसे साफ़-सुथरे इलाकों में ही रहें और उन्हें भी समाज में उचित सम्मान प्राप्त हो। इन उद्देश्य से उन्होंने निम्नलिखित कदम उठाए:
- उन्होंने औपनिवेशिक शहरों अर्थात् मुंबई, कलकत्ता और मद्रास में एजेंटों तथा बिचौलियों के रूप में काम करना शुरू कर दिया।
- उन्होंने ब्लैक टाउन में बाजारों के आस-पास परंपरागत ढंग के दालानी मकान बनवाए। उन्होंने भविष्य में पैसा लगाने के लिए शहर के अंदर बड़ी-बड़ी ज़मीनें भी खरीद ली थीं।
- अपने अंग्रेज स्वामियों को प्रभावित करने के लिए वे त्योहारों के समय रंगीन दावतों का आयोजन करते थे।
- समाज में अपनी हैसियत साबित करने के लिए उन्होंने मंदिर भी बनवाए।
- मद्रास में कुछ दुभाषा व्यापारी ऐसे भारतीय थे जो स्थानीय भाषा और अंग्रेज़ी, दोनों ही बोलना जानते थे। वे भारतीय समाज तथा गोरों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे।
- संपत्ति इकठ्ठा करने के लिए वे सरकार में अपनी पहुँच का प्रयोग करते थे। ब्लैक टाउन में परोपकारी कार्यों और मंदिर को संरक्षण प्रदान करने के कारण समाज में उनकी स्थिति काफी मजबूत थी।
Sponsor Area
Mock Test Series
Mock Test Series



