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एक साम्राज्य की राजधानी - विजयनगर
विजयनगर की जल-आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
विजयनगर की जल-आवश्यकताओं को मुख्य रूप में तुंगभद्रा नदी से निकलने वाली धाराओं पर बाँध बनाकर पूरा किया जाता था। बाँधों से विभिन्न आकार के हौज़ों का निर्माण किया जाता था। इस हौज़ के पानी से न केवल आस-पास के खेतों को सींचा जा सकता था बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से राजधानी तक भी ले जाया जाता था। कमलपुरम् जलाशय नामक हौज़ सबसे महत्त्वपूर्ण हौज़ था। तत्कालीन समय के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण जल संबंधी संरचनाओं में से एक, हिरिया नहर के भग्नावशेषों को आज भी देखा जा सकता है। इस नहर में तुंगभद्रा पर बने बाँध से पानी लाया जाता था और इस धार्मिक केंद्र से शहरी केंद्र को अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में प्रयोग किया जाता था। इसके अलावा झील, कुएँ, बरसत के पानी वाले जलाशय तथा मंदिरों के जलाशय सामान्य नगरवासियों के लिए पानी की आवश्यकताओं को पूरा करते थे।
शहर के किलेबंद क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के आपके विचार में क्या फ़ायदे और नुकसान थे?
फ़ायदे अथवा लाभ:
- मध्यकाल में विजय प्राप्ति में घेराबन्दियों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता था। घेराबन्दियों का प्रमुख उद्देश्य प्रतिपक्ष को खाद्य सामग्री से वंचित कर देना होता था ताकि वे विवश होकर आत्मसमर्पण करने को तैयार हो जाएँ।
- कई बार शत्रु की घेराबंदी वर्षों तक चलती रहती थीं। इस स्थिति में बाहर से खाद्यान्नों का आना दुष्कर हो जाता था। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए शासक प्राय: किलेबंदी क्षेत्रों के भीतर ही विशाल अन्नागारों का निर्माण करवाते थे।
- इसके परिणामस्वरूप खेतों में खड़ी फसलें शत्रु द्वारा किए जाने वाले विनाश से बच जाती थीं।
- खेतों के किलेबन्द क्षेत्र में होने के कारण प्रतिपक्ष की खाद्यान्न आपूर्ति संकट में पड़ जाती थी, जिससे घेराबन्दी को लम्बे समय तक खींचना कठिन हो जाता था और उसे विवशतापूर्वक घेराबन्दी को उठाना पड़ता था।
नुकसान तथा हानियाँ:
- कृषिक्षेत्र को किलेबन्द क्षेत्र में रखने की व्यवस्था अत्यंत महँगी थी। राज्य को इस पर ज्यादा धने-राशि व्यय करनी पड़ती थी।
- किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र होने के परिणामस्वरूप घेराबन्दी की स्थिति में बाहर रहने वाले किसानों के लिए खेतों में काम करना कठिन हो जाता था।
- घेराबन्दी की स्थिति में कृषि के लिए आवश्यक बीज, उर्वरक, यंत्र आदि को बाहर के बाजारों से लाना प्रायः कठिन हो जाता था।
- यदि शत्रु किलेबन्द क्षेत्र में प्रवेश करने में सफल हो जाता था तो खेतों में खड़ी फसल उसके विनाश का शिकार बन जाती थी।
आपके विचार में महानवमी डिब्बा से संबद्ध अनुष्ठानों का क्या महत्त्व था?
- हमारे विचार में महानवमी डिब्बा से संबद्ध अनुष्ठानों का व्यापक महत्त्व था। विजयनगर शहरों के सबसे ऊँचे स्थानों पर महानवमी डिब्बा नमक विशाल मंच होता था।
- इस संरचना से जुड़ेअनुष्ठान, संभवत: सितंबर तथा अक्टूबर के शरद मासों में मनाए जाने वाले दस दिन के हिंदू त्यौहार, जिसे दशहरा (उत्तर भारत), दुर्गा पूजा (बंगाल में) तथा नवरात्री या महानवमी (प्रायद्वीपीय भारत में) नामों से जाना जाता है, के महानवमी के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे। इस अवसर पर विजयनगर शासक अपने रुतबे, ताकत तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे।
- इस अवसर पर होने वाले अनुष्ठानों में मूर्तिपूजा, अश्व-पूजा के साथ-साथ भैंसों तथा अन्य जानवरों की बलि दी जाती थी। नृत्य, कुश्ती प्रतिस्पर्धा तथा घोड़ों, हाथियों तथा रथों व सैनिकों की शोभा यात्राएँ निकाली जाती थीं। साथ ही, प्रमुख नायकों और अधीनस्थराजाओं द्वारा राजा को प्रदान की जाने वाली औपचारिक भेंट इस अवसर के प्रमुख आकर्षण थे।
- त्योहार के अंतिम दिन राजा सेनाओं का निरीक्षण करता था। साथ ही नए सिरे से कर निर्धारित किए जाते थे।
चित्र विरुपाक्ष मन्दिर के एक अन्य स्तंभ का रेखाचित्र है। क्या आप कोई पुष्प-विषयक रूपांकन देखते हैं? किन जानवरों को दिखाया गया है? आपके विचार में उन्हें क्यों चित्रित किया गया है? मानव आकृतियों का वर्णन कीजिए।
चित्र: विरुपाक्ष मंदिर का स्तंभ
विरुपाक्ष मन्दिर के इस स्तम्भ को ध्यानपूर्वक देखने से पता लगता है कि इस स्तम्भ में विभिन्न प्रकार के फूलदार पौधों तथा पशु-पक्षियों का चित्रण किया गया है। इसमें मोर, घोड़ा बतख जैसे पक्षियों और पशुओं की आकृतियाँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। इन्हें संभवत: प्रवेश द्वार को आकर्षक बनाने तथा लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए चित्रित किया गया हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न पशु-पक्षी, देवी-देवताओं के साथ वाहन के रूप में भी जुड़े हुए थे। इसलिए उन्हें भी पूजा का पात्र माना जाता था।
मानव आकृतियों में देवी-देवता तथा श्रद्धालु दोनों ही शालिम किए गए हैं। एक देवता को सिर पर घंटी, ताज तथा गले में मालाएँ पहने दिखाया गया हैं। इन्होंने अपने हाथ में गदा धारण की हुई हैं। ऐसा प्रतीत होता हैं की वह दुष्टों के संहारक हैं।एक अन्य चित्रण में एक श्रृद्धालु को शिवलिंग के सम्मुख विशेष नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं। उसकी पूजा की विधि विचित्र हैं। यह किसी भी रूप में मान्य नहीं है।
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