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यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
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ज्यूसेपे मेत्सिनी
ज्यूसेपे मेत्सिनी- ज्यूसेपे मेत्सिनी इटली का एक युवा क्रन्तिकारी था। उसका जन्म 1807 में जेनेवा में हुआ था। वह कार्बोनारी के गुप्त संगठन का सदस्य बन गया। लिगुरिया में क्रांति करने के कारण उसे बहिष्कृत कर दिया गया। इसके बाद उसने दो और भूमिगत संगठनों की स्थापना की। पहला था मार्सेई में यंग इटली और दूसरा बर्न में यंग यूरोप। इनके सदस्य पोलैंड, फ़्रांस, इटली और जर्मन राज्यों में सामान विचार रखने वाले युवा थे। ज्यूसेपे मेत्सिनी का यह विचार था कि ईश्वर की मर्ज़ी के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई थी। अतः इटली छोटे राज्यों और प्रदेशों के पेबंदों की तरह नहीं कर सकता था। मेत्सिनी खुलकर राजतंत्र का विरोध किया और प्रजातांत्रिक के स्थापना के अपने सपने से रूढ़िवादियों को हरा दिया। उसने इटली को एकीकृत गणतंत्र बनाने के लिए एक सुविचारित कार्यक्रम पेश करने की कोशिश की।
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काउंट कैमिलो दे कावूर
काउंट कैमिलो दे कावूर- पीडमॉण्ड के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय का प्रमुख मंत्री था। वह न तो क्रांतिकारी था और न ही डेमोक्रेट। वह एक अच्छा कूटनीतिज्ञ था। वह इतलाबी वर्ग के अशिक्षित और अमीर वर्ग की तरह कहीं बेहतर फ्रेंच बोलता था। उसने इटली में विभिन्न क्षेत्रों को एकीकृत करने वाले आंदोलनों का नेतृत्व किया। उसने सार्डिनिया पीडमॉण्ड की फ्रांस से संधि करवाई। जिससे 1859 में सार्डिनिया-पीडमॉण्ड, आस्ट्रियाई बलों को हारने में कामयाब हुआ। इटली के एकीकरण की वजह से उसने सार्डिनिया-पीडमॉण्ड के साथ लगे दक्षिण-राज्य दो सिसिलियों को फतह करने के लिए गैरीबॉल्डी को प्रेरित किया।
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यूनानी स्वतंत्रता युद्ध
इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में यूनान का स्वतंत्रता संग्राम एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस घटना के द्वारा पूरे यूरोप के मिश्रित वर्ग में राष्ट्रीय भावना प्रवाहित हुई। पंद्रहवीं सदी से यूनान अॉटोमन साम्राज्य का ही भाग था। 1821 में यूरोप में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की प्रगति से यूनानियों का आज़ादी के लिए संघर्ष शुरू हुआ। इसमें पश्चिमी यूरोप के ऐसे अनेक लोगो का समर्थन यूनान के क्रांतिकारियों को मिला जो प्राचीन यूनानी संस्कृति के प्रति सहनभूति रखते थे। इस संघर्ष में अनेक कवियों और कलाकारों ने भी अपनी तरफ से पूरा योगदान दिया और संघर्ष के लिए जनमत जुटाया। लॉर्ड बायरन नाम के एक अंग्रेज कवि ने इस संघर्ष के लिए न केवल धन इकट्ठा किया बल्कि युद्ध लड़ने भी गए। जहाँ बुखार से उनकी मृत्यु हो गई। आखिरकार 1832 कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्रीय घोषित किया।
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फ्रैंकफ़र्ट संसद
यूरोप के राष्ट्रों में स्वतंत्रता हेतु 19वीं के मध्य में संघर्ष तेजी से शुरू हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जर्मनी में फ्रैंकफ़र्ट ने बड़ी संख्या में मिलकर एक सर्व-जर्मन नेशनल ऐसेंबली के पक्ष में मतदान का फैसला किया। 18 मई 1848 को, 831 निर्वाचित प्रतिनधियों ने एक सजे-धजे जुलूस में जाकर फ्रैंकफ़र्ट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया। यह संसद सेंट पॉल चर्च में आयोजित हुई। एक जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप तैयार किया। इस राज्य की अध्यक्षता एक ऐसे राज्य को सौंपी गई जिसे संसद के अधीन रहना था। प्रशा के राजा फ़्रेडरिख विल्हेम चतुर्थ को ताज पहनने कि पेशकश की तो उसने उसे अस्वीकार कर दिया और उन राजाओ का समर्थन किया जो निर्वाचित सभा के विरोधी थे। कुलीन वर्ग और सेना का आधार कमजोर हुआ। संसद का सामाजिक ढांचा भी कमजोर हुआ संसद में मध्य वर्ग का प्रभाव बढ़ता ही चला गया। उन्होंने मज़दूरों और कारीगरों की मांग का विरोध किया जिससे वे समर्थन खो बैठे। अंत में हालत यह हो गए कि मजबूरन सैनिकों को बुला कर एसेम्बली को भंग कर दिया गया।
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