मोर-मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए?
मोर की गर्दन नीली होने के कारण उसका नामकरण नीलकंठ हुआ । मोरनी का सदैव नीलकंठ की छाया की तरह उसके साथ रहने के कारण उसका नाम राधा पड़ा।
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मोर-मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए?
मोर की गर्दन नीली होने के कारण उसका नामकरण नीलकंठ हुआ । मोरनी का सदैव नीलकंठ की छाया की तरह उसके साथ रहने के कारण उसका नाम राधा पड़ा।
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जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का किस प्रकार स्वागत हुआ?
अपने निवास स्थान में दो नए मेहमानों को देखकर बाड़े के अन्य जानवरों में ऐसा कौतुहल जागा मानों घर में कोई नववधू का आगमन हुआ हो जिससे वह बहुत प्रसन्न थे। परन्तु अपनी तरफ़ से इस बात को भी देखना चाहते थे कि नए मेहमान कैसे हैं। सर्वप्रथम कबूतर नाचना छोड़कर दोनों के आगे पीछे घूमकर गुटरगूँ करने लगे। मानो उनका निरीक्षण कर अपनी सहमती प्रकट कर रहे हों। उसी तरह सारे खरगोश एक ही क्रम में शान्त भाव से बैठकर सभापदों की भांति निरीक्षण कर रहे थे तो खरगोश के बच्चों के लिए तो खेलकूद का कार्यक्रम ही चल पड़ा था। वे इन दोनों के आसपास कूद रहे थे। तोते तो एक आँख बंद कर चुपचाप उनको देखकर अपनी तरफ़ से निरीक्षण में लगे थे।
लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं?
लेखिका को नीलकंठ की निम्नलिखित चेष्टाएँ बहुत भाती थीं उदाहरण के लिए –
(1) नीलकंठ वर्षा ऋतु के समय जब अपने इंद्रधनुष के गुच्छे के समान पखों को मंडलाकार बनाकर नाचता और राधा उसका साथ देती। वो मनोहारी दृश्य देखकर लेखिका मंत्रमुग्ध हो जाती थी। लेखिका कहती है – नीलकंठ जाने कैसे यह भाँप गया था कि उसका नृत्य मुझें बहुत भाता था। बस जब भी लेखिका उसके समक्ष होती तो नृत्य-भंगिमा की मुद्रा में खड़ा हो जाता। नीलकंठ की लेखिका को प्रसन्न करने की चेष्टा, लेखिका को बहुत पसन्द था।
(2) लेखिका के अनुसार नीलकंठ की चोंच के प्रहार ने साँप के दो टुकड़े कर दिए थे परन्तु जब वह लेखिका के हाथ से भुने चने खाता तो लेखिका को तनिक भी हानि नहीं पहुँचाता था।
(3) नीलकंठ का दयालु स्वभाव व सबकी रक्षा करने की चेष्टा आदि लेखिका को बहुत प्रिय थी।
‘इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा’-वाक्य किस घटना की ओर संकेत कर रहा है?
लेखिका के द्वारा कुब्जा मोरनी को लाना, इस घटना की ओर संकेत करता है। नीलकंठ, राधा व अन्य सभी पशु-पक्षी साथ मिलकर बड़े ही आनन्द से उस बाड़े में रहते थे। परन्तु कुब्जा मोरनी ने उन सब के इस आनन्द में भंग कर दिया था। उसको किसी भी पशु-पक्षी का नीलकंठ के साथ रहना पसंद न था। जो भी कोई उसके पास आना चाहता, वह उसे अपनी चोंच से घायल करके भगा देती थी। यहाँ तक कि उसने ईर्ष्या वश राधा के अंडों को तोड़-फोड़ दिया था। उसके इस स्वभाव के कारण नीलकंठ अकेला व खिन्न रहने लगा। जैसे बाड़े की तो शोभा ही चली गई। तभी लेखिका कहती है, इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा।
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