मेरा छोटा- सा निजी पुस्तकालय - धर्मवीर भारती

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Question
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लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन क्यों हिचक रहे थे?

Solution

लेखक को तीन-तीन जबरदस्त हाई-अंक आए थे। कुछु डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कुर दिया था। लेकिन डॉक्टर बोर्जिस हिम्मत नहीं हारी थी। उन्होंने नौ सौ वॉल्टस के शॉक्स दिए थे। उनका मानना था कि यदि शरीर मृत है तो दर्द महसूस नहीं होगा। परन्तु इस प्रयोग में साठ प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया केवल चालीस प्रतिशत बचा। ओपन हार्ट ऑपरेशन करने की जरुरत थी। उसी में डॉक्टर हिचक रहे थे केवल चालीस प्रतिशत हार्ट ऑपरेशन के बाद रिवाइव नहीं हुआ तो क्या होगा। अन्य विशेषज्ञों की राय ली गई। कुछ दिन बाद ऑपरेशन की बात की गई।

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‘किताबों वाले कमरे’ में रहने के पीछे लेखक के मन में क्या भावना थी?

Solution

किताबों वाले कमरें में रहने के पीछे लेखक के मन में पुस्तकों का वह संकलन था जो उसके बचपन से लेकर आज तक संबंधित था। जब उन्हें अस्पताल से घर लाया गया तो उन्होनें ज़िद की थी कि वे अपने आपको उनके साथ जुड़ा हुआ अनुभव कर सकें। उनके प्राण इन हजारों किताबों में बसे हुए थे। जो पिछले चालीस-पचास बरस में धीरे-धीरे जमा होती गई थीं।

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लेखक के घर में कौन-कौन-सी पत्रिकाएँ आतीं थी?

Solution

लेखक को किताब पढ़ने व सहेजने का शौक बचपन से था। उस समय आर्य समाज का सुधारवादी आंदोलन अपने पूरे जोर पर था। उनके पिता आर्य समाज रानी मंडी के प्रधान थे और माँ ने स्त्री शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की। वे घर में ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ और स्वामी दयानंद की जीवनी बड़ी रुचि से पढ़ते थे। उनकी रोमांचक कथाएँ उन्हें प्रभावित करती थीं। वह ‘बालसखा’ चमचम की कहानियाँ पढ़ते थे। उसी से उन्हें किताबें पढ़ने का शौक लगा। पाँचवी कक्षा में प्रथम आने पर अंग्रेजी की दो किताबों ने उनके लिए नई दुनिया का द्वार खोल दिया था। पिता की प्रेरणा से उन्होंने अपनी किताबों को इकट्‌ठा करना शुरू कर दिया था। इससे उनके निजी पुस्तकालय की शुरूआत हो गई।

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लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक कैसे लगा?

Solution

लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक बचपन से था। उस समय आर्य समाज का सुधारवादी आंदोलन अपने पूरे जोर पर था। उनके पिता आर्य समाज रानी मंडी के प्रधान थे और माँ ने स्त्री शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी। उनके घर में कई पुस्तकें थीं। वह घर में सत्यार्थ-प्रकाश और दयानंद सरस्वतीं की जीवनी बड़ी रूचि से पढ़ते थे। उनकी रोमांचक घटनाएँ उन्हें बड़ा प्रभावित करती थीं। वह बाल-सखा और चमचम की कथाएँ पढ़ते थे। उसी से उन्हें किताबें पढ़ने का शौक लगा। पाँचवी कथा में प्रथम आने पर अंग्रेजी की दो किताबें इनाम में मिली थीं। इन दो किताबों ने उनके लिए नई दुनिया का द्वार खोल दिया था। पिताजी की प्रेरणा से उन्होंने अपनी किताबों को इकट्‌ठा करना शुरू कर दिया था। इनसे उनके निजी पुस्तकालय की शुरूआत हो गई।