माटी वाली

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Question
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'शहरवासी सिर्फ़ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं।' आपकी समझ से वे कौन से कारण रहे होंगे जिनके रहते 'माटी वाली' को सब पहचानते थे?

Solution

शहरवासी माटी वाली तथा उसके कंटर को इसलिए जानते होंगे क्योंकि पूरे टिहरी शहर में केवल वही अकेली माटी वाली थी। उसका कोई प्रतियोगी नहीं था। माटीवाली की लाल मिट्टी हर घर की आवश्यकता थी, जिससे चूल्हे-चौके की पुताई की जाती थी। इसके बिना किसी काम नहीं चलता था। इसलिए सभी उसे जानते थे तथा उसके ग्राहक थे। वह पिछले अनेक वर्षों से शहर की सेवा कर रही थी। इस कारण स्वाभाविक रूप से सभी लोग उसे जानते थे। माटी वाली की गरीबी, फटेहाली और बेचारगी भी उसकी पहचान का एक कारण रही होगी।

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माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज़्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था?

Solution

माटीवाली अपनी आर्थिक और पारिवारिक उलझनों में उलझी, निम्न स्तर का जीवन जीने वाली महिला थी। अपना तथा बुड्ढे का पेट पालना ही उसके सामने सबसे बड़ी समस्या थी। सुबह उठकर माटाखाना जाना और दिनभर उस मिट्टी को बेचना इसी में उसका सारा समय बीत जाता था। अपनी इसी दिनचर्या को वह नियति मानकर चले जा रही थी। ऐसे में माटीवाली के पास अच्छे और बुरे भाग्य के बारे में सोचने का समय नहीं था।

Question
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'भूख मीठी कि भोजन मीठा' से क्या अभिप्राय है?

Solution

भूख और भोजन का आपस में गहरा सम्बन्ध है। इस बात का आशय है जब मनुष्य भूखा होता है तो उसे भूख के कारण उसे बासी रोटी भी मीठी लगती है। यदि मनुष्य को भूख न हो तो उसे कुछ भी स्वादिष्ट भोजन या खाने की वस्तु दे दी जाए तो वह उसमें नुक्स निकाल ही देता है। परन्तु भूख लगने पर साधारण खाना या बासी खाना भी उसे स्वादिष्ट व मीठा लगेगा। इसलिए बुजुर्गों ने कहा है - भूख मीठी की भोजन मीठा। अर्थात् स्वाद भोजन में नहीं बल्कि मनुष्य को लगने वाली भूख से होता है। भूख लगने पर रूखा-सूखा भोजन भी स्वादिष्ट लगता है। भूख न होने पर स्वादिष्ट भोजन भी बे-स्वाद लगता है।

 

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'पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गयी चीज़ों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता।' - मालकिन के इस कथन के आलोक में विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।

Solution

हमारे पुरखों ने अनेकों संघर्ष के बाद चीजों को पाया है। पीढ़ियों से चली आ रही धरोहर ही हमारी विरासत है। यह अमूल्य है। इसका मूल्य रूपये-पैसों में नहीं आँका जा सकता। हम चाहे इन वस्तुओं में वृद्धि न कर पाएँ परन्तु इन वस्तुओं को कौडियों के दाम पर तो न बेचे। कुछ लोग स्वार्थवश इसे औने-पौने दामों में बेच देते हैं, जो कभी भी उचित नहीं है। हमें इनके पीछे छिपी भावना को समझना चाहिए। यह हमारे पूर्वजों की धरोहर है जिसे संभालकर रखना हमारा कर्तव्य है। यही धरोहर किसी दिन हमारे लिए गर्व का विषय बन जाता है।