धूल - रामविलास शर्मा

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Question
CBSEENHN9000401

निन्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे लिखे प्रशनों के उत्तर दीजिए:
हीरे के प्रेमी तो शायद उसे साफ-सुधरा, खरादा हुआ, आँखों में चकाचौंध पैदा करता हुआ देखना पसंद करेंगे। परंतु हीरे से भी कीमती जिस नयन-तारे का जिक्र इस पंक्ति में किया गया है वह धूलि भरा ही अच्छा लगता है। जिसका बचपन गाँव के गलियारे की धूल में बीता हो, वह इस धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना कर ही नहीं सकता। फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है। अभिजात वर्ग ने प्रसाधन-सामग्री में बड़े-बड़े आविष्कार किए, लेकिन बालकृष्ण के मुँह पर छाई हुई वास्तविक गोधूलि की तुलना में वह सभी सामग्री क्या धूल नहीं हो गई?
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
(ख) हीरे के प्रेमी हीरे को कैसा देखना पसंद करते हैं और क्यों?
(ग) कवि ने ‘धूलि भरे हीरे’ किसे कहा है?
(घ) धूल के बिना शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?

Solution

(क) पाठ- धूल, लेखक का नाम-रामविलास शर्मा।
(ख) हीरे के प्रेमी हीरे को साफ-सुथरा, सुडौल, चिकना चमकदार, और औखों में चकाचौंध-पैदा करने वाला देखना चाहते हैं क्योंकि हीरा जितना अधिक सुडौल और चमकदार होगा-उसका मूल्य उतना ही अधिक होगा।
(ग) ‘धूलि भरे हीरे’ से तात्पर्य है-मातृभूमि की धूल में लिपटकर बीता हुआ बचपन। शिशु को जमीन पर खेलना अच्छा लगता है। जमीन पर खेलने से वह धूल मिट्‌टी से भर जाता है। उसका सारा शरीर धूल से सने होने के कारण उसे धूल भरे हीरे कहा गया है।
(घ) भूल के बिना शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती। क्योंकि शिशु को धूल से बचाकर रखा ही नहीं जा सकता। वह किसी न किसी बहाने जमीन पर खेलेगा और धूल से लथपथ हो जाएगा।

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Question
CBSEENHN9000402

निन्नलिखित गद्यांशों प्रशनों को पढ़कर नीचे लिखे  के उत्तर दीजिए-
हमारी सभ्यता इस धूल के संसर्ग से बचना चाहती है। वह आसमान में अपना घर बनाना चाहती है, इसलिए शिशु भोलानाथ से कहती है, धूल में मत खेलो। भोलानाथ के संसर्ग से उसके नकली सलमे-सितारे धुँधले पड़ जाएँगे। जिसने लिखा था- ‘‘धन्य- धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की,’’ उसने भी मानो धूल भरे हीरों का महत्त्व कम करने में कुछ उठा न रखा था।’ धन्य-धन्य ‘ में ही उसने बड़प्पन को विज्ञापित किया, फिर ‘मैले’ शब्द से अपनी हीनभावना भी व्यंजित कर दी, अंत में ‘ऐसे लरिकान’ कहकर उसने भेद-बुद्धि का परिचय भी दे दिया। वह हीरों का प्रेमी है, धूलि भरे हीरों का नहीं।
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
(ख) हमारी सभ्यता भूल के संसर्ग से क्यों बचना चाहती है।
(ग) इसमें आज की सभ्यता पर क्या व्यंग्य है?
(घ) अपने बड़प्पन को विज्ञापित करने से क्या तात्पर्य है?




Solution

(क) पाठ-धूल, लेखक-राम विलास शर्मा।
(ख) हमारी सभ्यता धूल के संसर्ग से इसलिए बचना चाहती है क्योंकि वह आसमान को छूने की इच्छा रखती है।
(ग) इस गद्यांश में आज की सभ्यता पर कटु व्यंग्य है। आज का सभ्य, सुशिक्षित वर्ग धूल-मिट्‌टी से घृणा करता है। वे बनावट- श्रृंगार और नकली साज-सज्जा को महत्त्व देते है। वे ऊपरी चमक-दमक को ही सौन्दर्य मानते है।
(घ) अपनी महानता को संसार में दिखाने के लिए समाज के सभ्य लोग भूल से भरे शिशु को अपनी गोद में उठा लेते है, इस प्रकार जब वे मैले-कुचैले बच्चों को गोद में उठाते हैं तो लोग उनकी प्रशंसा करते है।

Question
CBSEENHN9000403

निन्नलिखित गद्यांशों प्रशनों को पढ़कर नीचे लिखे  के उत्तर दीजिए-
गोधूलि पर कितने कवियों ने अपनी कलम नहीं तोड़ दी, लेकिन यह गोधूलि गाँव की अपनी संपत्ति है, जो शहरों के बाटे नहीं पड़ी। एक प्रसिद्ध पुस्तक विक्रेता के निमंत्रण-पत्र में गोधूलि की बेला में आने का आग्रह किया गया था, लेकिन शहर में भूल- धक्कड़ के होते हुए भी गोधूलि कहाँ? यह कविता की विडंबना थी और गाँवों में भी जिस धूलि को कवियों ने अमर किया है. वह हाथी-घोड़ों के पग-संचालन से उत्पन्न होनेवाली धूल नहीं है, वरन् गो-गोपालों के पदों की धधु-लि है। 
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
(ख) गोधूलि को गाँव की सपंत्ति क्यों कहा गया है?
(ग) पुस्तक विक्रेता ने निमत्रंण-पत्र में गोधूलि-बेला लिखकर क्या गलती की?
(घ) कवियों ने किस भूल को अमर कर दिया?









Solution

(क) पाठ- धूल, लेखक-राम विलास शर्मा।
(ख) गोधूलि को गाँव की संपत्ति कहा गया है। यह नगरों में नहीं होती। इसका कारण यह है कि गायों और -वालों के पैरों के चलने से उठी धूल को गोधूलि कहते हैं। शहरों में न तो गाएँ होती है और न ग्वाले और न उनके पैरों से उठी धूल। इसलिए गोधूलि गाँव की संपत्ति है न कि शहरों की।
(ग) पुस्तक विक्रेता ने निमंत्रण-पत्र में गोधूलि-बेला लिख दिया। परन्तु शहर में धूल- धक्कड़ के अतिरिक्त न तो ग्वाले है और न ही गायें और न ही उनके पैरों से उठने वाली धूल। इसलिए यह उसकी गलती थी।
(घ) कवियों ने उस धूल को अमर कर दिया जो गाँवों और -वालों के चलने से उनके पैरों से उड़ती है। यह हाथी-घोड़ों के पैरों के चलने से उठने वाली धूल नहीं है।

Question
CBSEENHN9000404

निन्नलिखित गद्यांशों प्रशनों को पढ़कर नीचे लिखे  के उत्तर दीजिए-
हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे। किसान के हाथ-पैर, मुँह पर छाई हुई यह धूल हमारी सम्यता से कक्याकहती है? हम काँच को प्यार करते हैं, धूलि भरे हीरे में धूल ही दिखाई देती है, भीतर की कांति आँखों से ओझल रहती है, लेकिन ये हीरे अमर है और एक दिन अपनी अमरता का प्रमाण भी देंगे। अभी तो उन्होंने अटूट होने का ही प्रमाण दिया है- “हीरा वही घन चोट न टूटे।” वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा। तब हम हीरे से लिपटी हुई धूल को भी माथे से लगाना सीखेंगे।
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
(ख) हमारी देशभक्ति कैसे प्रमाणित होगी?
(ग) हमें धूलि और हीरे में भूल दिखाई देती है-व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘हीरा वही घन चोट न टूटे’ से क्या अभिप्राय है?










Solution

(क) पाठ- धूल, लेखक-राम विलास शर्मा।
(ख) हमारी देशभक्ति देश की धूलि को मस्तक पर धारण करने से प्रमाणित होगी। यदि इतना भी न कर सके तो उस धूल पर पैर तो अवश्य ही रखना चाहिए।
(ग) लेखक ने इस पंक्ति से व्यंग्य किया है कि हमें धूलि भरे हीरे में चमक नहीं दिखाई देती। बल्कि धूल दिखाई देती है। इसका आशय यह है कि हमें ग्रामीण लोगों की स्वाभाविकता और सच्चाई नज़र नहीं आती, उनमें फूहड़ता नजर आती है।
(घ) इस कथन का अभिप्राय है कि जैसे सच्चा हीरा हथौड़े की चोट से नहीं टूटता। उसी प्रकार से परिश्रमी किसान अपनी मजबूती और कठोरता से धूल-मिट्‌टी से लथपथ होने पर भी निरन्तर अपनी कर्म करता रहता है। वह संकट और कष्ट सहकर भी हार नहीं मानते बल्कि और अधिक मजबूत हो जाते है।