तुम कब आओगे अतिथि - शरद जोशी

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Question
CBSEENHN9000500

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रशनों के उत्तर दीजिए:
तुम जहाँ बैठे निस्संकोच सिगरेट का धुआँ फेंक रहे हो, उसके ठीक सामने एक कैलेंडर है। देख रहे हो ना! इसकी तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ाती रहती हैं। विगत दो दिनों से मैं तुम्हें दिखाकर तारीखें बदल रहा हूँ। तुम जानते हो, अगर तुम्हें हिसाब लगाना आता है कि यह चौथा दिन है, तुम्हारे सतत आतिथ्य का चौथा भारी दिन! पर तुम्हारे जाने की कोई संभावना प्रतीत नहीं होती। लाखों मील लंबी यात्रा करने के बाद वे दोनों एस्ट्रॉनाट्‌स भी इतने समय चाँद पर नहीं रुके थे, जितने समय तुम एक छोटी-सी यात्रा कर मेरे घर आए हो। तुम अपने भारी चरण-कमलों की छाप मेरी जमीन पर अंकित कर चुके, तुमने एक अंतरंग निजी संबंध मुझसे स्थापित कर लिया, तुमने मेरी आर्थिक सीमाओं की बैंजनी चट्‌टान देख ली; तुम मेरी काफ़ी मिट्‌टी खोद चुके। अब तुम लौट जाओ, अतिथि! तुम्हारे जाने के लिए यह उच्च समय अर्थात हाईटाइम है। क्या तुम्हें तुम्हारी पृथ्वी नहीं पुकारती? 
प्रशन:
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो?
(ख) कैलेंडर शब्द द्वारा लेखक क्या कहना चाहते हैं?
(ग) अतंरिक्ष यात्रियों के विषय में क्या कहा गया है?
(घ) ‘अब तुम लौट जाओ’ इस कवन की व्यंग्यात्मकता स्पष्ट कीजिए?


Solution

(क) पाठ-तुम कब जाओगे, अतिथि, लेखक-शरद जोशी।
(ख) कैलेंडर शब्द द्वारा लेखक अतिथि को यह अहसास दिलाना चाहता है कि मेहमानबाजी करवाते हुए अधिक दिन हो गए है। अब उसे चले जाना चाहिए।
(ग) अंतरिक्ष यात्री भी चांद पर अधिक -दिनों की यात्रा करने के उपरान्त भी वहाँ पर नहीं रूके थे।
(घ) अनेक उपाय करने के पश्चात् भी अतिथि के न लौटने पर अपनी विवशता व्यक्त करना ही उस शब्दावली की व्यंग्यात्मकता है।

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Question
CBSEENHN9000501

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रशनों के उत्तर दीजिए:
उस दिन जब तुम आए थे, मेरा हृदय किसी अज्ञात आशंका से धड़क उठा था। अंदर-ही-अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया। उसके बावजूद एक स्नेह-भीगी मुस्कुराहट के साथ मैं तुमसे गले मिला था और मेरी पत्नी ने तुम्हे सादर नमस्ते की थी। तुम्हारे सम्मान में ओ अतिथि, हमने रात के भोजन को एकाएक उच्च-मध्यम वर्ग के डिनर में बदल दिया था। तुम्हें स्मरण होगा कि दो सब्जियों और रायते के अलावा हमने मीठा भी बनाया था। इस सारे उत्साह और लगन के मूल में एक आशा थी। आशा थी कि दूसरे दिन किसी रेल से एक शानदार मेहमाननवाजी की छाप अपने हृदय में ले तुम चले जाओगे।

प्रशन:
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
(ख) मेहमान के आते ही लेखक पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
(ग) लेखक तथा उसकी पत्नी ने मेहमान का किस प्रकार स्वागत किया?
(घ) रात्रिभोज को किस प्रकार गरिमापूर्ण बनाया गया?

Solution

(क) पाठ- तुम कब जाओगे,अतिथि, लेखक-शरद जोशी।
(ख) मेहमान के आते ही लेखक का हृदय किसी अज्ञात आशंका से धड़क उठा। उसे डर लगा कि यह आदमी न जाने कब तक ठहरेगा। इसे न चाहते हुए भी झेलना पड़ेगा। उसका बटुआ भी काँप उठा। मेहमान को खुश रखने के लिए पैसा खर्च करना लेखक को असहनीय लगा।
(ग) लेखका तथा उसकी पत्नी अचानक अतिथि के आ जाने से प्रसन्न नहीं थे। फिर भी उन्होंने स्नेहपूर्वक उनका स्वागत किया। लेखक उसे प्रेमपूर्वक गले मिला और पत्नी ने सादर नमस्ते की।
(घ) मेहमान का शानदार स्वागत करने के लिए रात्रि भोज को ‘डिनर’ जैसा शानदार बनाया गया। दो-दो सब्जियाँ बनाई गई रायता बनाया तथा एक मीठा भी बनाया। इस प्रकार उसका शानदार स्वागत किया गया।

Question
CBSEENHN9000502

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रशनों के उत्तर दीजिए:
तीसरे दिन की सुबह तुमने मुझसे कहा, “मैं धोबी को कपड़े देना चाहता हूँ।”
यह आघात अप्रत्याशित था और इसकी चोट मार्मिक थी। तुम्हारे सामीप्य की वेला एकाएक यों रबर की तरह खिंच जाएगी, इसका मुझे अनुमान न था। पहली बार मुझे लगा कि अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
प्रशन:
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो
(ख) कौन-सा आघात अप्रत्याशित था?
(ग) लेखक को किस-किस का अनुमान नहीं था?
(घ) अतिथि कब देवता और कब राक्षस बन जाता है?

Solution

(क) पाठ - तुम कब जाओगे,अतिथि,  लेखक-शरद जोशी।
(ख) लेखक का अतिथि अनचाहे रूप से दो दिन ठहर चुका था। तीसरे दिन उसे चले जाना था परन्तु जाने की बजाय उसने धोबी से कपड़े धुलवाने की इच्छा प्रकट की। यह समाचार लेखक के दिल पर आघात की तरह था उसे आशा नहीं थी कि वह इस तरह आकर जम जाएगा।
(ग) लेखक को इस बात का अनुमान ही नहीं था कि यह अतिथि एक बार आने के बाद जाने का नाम नहीं लेगा। उसकी रहने की अवधि अचानक बढ़ती चली जाएगी।
(घ) भारतीय परम्परा के अनुसार अतिथि को देवता के समान माना जाता है। यदि अतिथि थोड़ी देर के लिए आए और सम्मानपूर्वक विदा हो जाए तो वह देवता होता है। परन्तु लंबे समय तक जम जाने के कारण वही देवता तुल्य अतिथि राक्षस प्रतीत होने लगता है।

Question
CBSEENHN9000503

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रशनों के उत्तर दीजिए:
तुम्हें यहाँ अच्छा लग रहा है न! मैं जानता हूँ। दूसरों के यहाँ अच्छा लगता है। अगर बस चलता तो सभी लोग दूसरों के यहाँ रहते, पर ऐसा नहीं हो सकता। अपने घर की महत्ता के गीत इसी कारण गाए गए हैं। होम को इसी कारण स्वीट-होम कहा गया है कि लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़े। तुम्हें यहाँ अच्छा लग रहा है, पर सोचो प्रिय, कि शराफ़त भी कोई चीज होती है और गेट आउट भी एक वाक्य है, जो बोला जा सकता है।

प्रशन:
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
(ख) लेखक की मानसिक स्थिति पर प्रकाश डालिए
(ग) अपने घर को स्वीट होम क्यों कहा जाता है।
(घ) लेखक किसे ‘गेट आउट’ कहने की धमकी दे रहा है

Solution

(क) पाठ-तुम कब जाओगे,अतिथि, लेखक-शरद जोशी।
(ख) लेखक अपने घर पर टिके मेहमान से बहुत परेशान है। उसने सोचा था कि वह एकाध दिन ठहर कर चला जाएगा परन्तु जब चार दिन बाद भी उसने जाने का नाम नहीं लिया तो वह परेशान हो उठा।
(ग) अपने घर को ‘स्वीट होम’ इसलिए कहा जाता है। क्योंकि वहाँ सब हमारे अपने होते है, किसी प्रकार की औपचारिकता, शालीनता या बोरियत नहीं होती, मनुष्य अपने स्वभाव के अनुसार वहाँ उठ बैठ और खा-पी सकता है।
(घ) लेखक चार दिनों से अपने घर जमे मेहमान को 'गेट आउट' कहने की धमकी दे रहा था क्योंकि वह मेहमान के अनचाहे रूप से टिकने के कारण बहुत परेशान है।