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किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया
वह ऐसी कौन सी बात रही होगी जिसने लेखक को दिल्ली जाने के लिए बाध्य कर दिया?
लेखक जिन दिनों बेरोजगार थे उन दिनों शायद किसी ने उन्हें कटु बातें की होगीं जिसे वे बर्दाश्त नहीं कर पाए होगे और जिसके कारण वह बिना कुछ कहे घर से दिल्ली के लिए निकल गए ।
लेखक को अंग्रेज़ी में कविता लिखने का अफ़सोस क्यों रहा होगा?
लेखक को अंग्रेज़ी में कविता लिखने पर अफ़सोस इसलिए रहा होगा क्योंकि वह भारत की जन-भाषा नहीं थी। इसलिए भारत के लोग यानी उनके अपने लोग उसे समझ नहीं पाते होंगे। लेखक अपनी कविता उर्दू और अंग्रेजी में ही लिखते थे। पर जब वे इलाहाबाद आए तो वहाँ का साहित्यिक वातावरण तथा बच्चन, निराला और पन्त जैसे महान लेखकों का सानिध्य पाकर वे हिन्दी लेखन की ओर अग्रसर होने लगे और हिन्दी में ही रचनाएँ करने लगे।
अपनी कल्पना से लिखिए कि बच्चन ने लेखक के लिए नोट में क्या लिखा होगा?
दिल्ली के उकील आर्ट स्कूल में बच्चनजी लेखक के लिए एक नोट छोड़कर गए थे। उस नोट में शायद उन्होंने लिखा होगा कि तुम इलाहाबाद आ जाओ। लेखन में ही तुम्हारा भविष्य निहित है। संघर्ष करने वाले ही जीवन पथ पर अग्रसर होते हैं अत:परिश्रम करो सफलता अवश्य तुम्हारे कदम चूमेगी।
लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के किन-किन रूपों को उभारा है?
लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के अनेक रूपों को उभारा है -
1) बच्चनजी अत्यंत कोमल एवं सहृदय मनुष्य थे।
2) बच्चनजी समय के अत्यंत पाबन्द होने के साथ-साथ कला-प्रतिभा के पारखी थे। उन्होंने लेखक द्वारा लिखे एक ही सॉनेट को पढ़कर उनकी कला - प्रतिभा को पहचान लिया था।
3) वे ह्रदय से ही नहीं, कर्म से भी परम सहयोगी थे।
4) बच्चन का स्वभाव संघर्षशील, परोपकारी, फौलादी संकल्पवाला था।
उन्होंने न केवल लेखक को इलाहाबाद बुलाया बल्कि लेखक की पढ़ाई का सारा जिम्मा भी उठा लिया।
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