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कल्लू कुम्हार की उनाकोटी - के. विक्रम सिंह
‘उनाकोटी’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए बतलाएँ कि यह स्थान इस नाम से क्यों प्रसिद्ध है?
उनाकोटी का अर्थ है एक करोड़ से एक कम। उनाकोटी में शिव की कोटी मूर्तियाँ हैं। भारत के यह सबसे बड़े शैव तीर्थों में से एक है। यहाँ आदिवासी धर्म फलते-फूलते हैं। यह स्थान जंगल में काफी भीतर है। यह पूरा इलाका देवी-देवताओं से भरा पड़ा है। इसका निर्माता कल्लू कुम्हार था। वह पार्वती का भक्त था। वह शिव-पार्वती के साथ उनके निवास कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था। पार्वती के जोर देने पर शिव कल्लू को कैलाश ले जाने के लिए तैयार हो गए लेकिन उसके लिए यह शर्त रखी कि उसे एक रात में शिव की एक कोटी मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू अपने धुन के पक्के व्यक्ति की तरह अपने काम में जुट गया। लेकिन जब गिनती हुई तो मूर्तियाँ एक कोटी से कम निकली। कल्लू नाम की इस मुसीबत से पीछा छुडाने पर अड़े शिव ने इसी बात को बहाना बनाते हुए कल्लू को अपनी मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़ दिया और चलते बने।
पाठ के सदंर्भ में उनाकोटी में स्थित गंगावतरण की कथा को अपने शब्दों में लिखिए ।
पहाड़ों को अंदर से काटकर यहाँ विशाल आधार मूर्तियाँ बनी हैं। एक विशाल चट्टान ऋषि भागीरथ की प्रार्थना पर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा अवतरण की पौराणिकता को चित्रित करती है। गंगा अवतरण के धक्के से कहीं पृथ्वी धंसकर पाताल लोक में न चली जाए। शिव को इसके लिए तैयार किया गया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में उलझा लें और इसके बाद उसे धीरे-धीरे पृथ्वी पर बहने दें। शिव का चेहरा एक समूची चट्टान पर बना हुआ है और उनकी जटाएँ तो पहाड़ों की चोटियों पर फैली हैं। भारत में यह शिव की सबसे बड़ी आधार मूर्ति है। पूरे साल बहने वाली एक जल प्रपात पहाड़ों से उतरता है जिसे गंगा जितना ही पवित्र माना जाता है।
कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी से किस प्रकार जुड़ गया?
उनाकोटी का पूरा इलाका ही शब्दश: देवियों-देवताओं की मूर्तियों से भरा पड़ा है। इन आधार मूर्तियों के निर्माता अभी चिह्निनत नहीं किए जा सके हैं। स्थानीय आदिवासियों का मानना है कि इन मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार था। वह पार्वती का भक्त था। वह शिव-पार्वती के निवास कैलाश जाना चाहता था। लेकिन इसके लिए शर्त यह रखी थी कि उसे एक रात में शिव की एक कोटी मूर्तियाँ बनानी होंगी। जब भोर हुई तो मूर्तियाँ एक कोटी से कम निकलीं। कल्लू नाम की इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने पर अड़े शिव ने इसी बात को बहाना बनाते हुए कल्लू कुम्हार को अपनी मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़ दिया और चलते बने। इस प्रकार उनाकोटी की मूर्तियों के निर्माता के रूप में कल्लू कुम्हार को प्रसिद्धि मिली और उनका नाम उनाकोटी से जुड़ गया।
‘मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी- सी दौड़ गई'- लेखक के इस कथन के पीछे कौन-सी घटना जुड़ी है?
त्रिपुरा के हिंसाग्रस्त मुख्य भाग में प्रवेश करने से पहले अंतिम पड़ाव टीलियामुरा ही है। राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर अगले 83 किलोमीटर यानी मनु तक की यात्रा के दौरान ट्रैफिक सी.आर.एफ. की सुरक्षा में काफिले की शक्ल में चलता है। मुख्य सचिव और आई.जी. सी.आर.पी.एफ. से मैंने निवेदन किया था कि वे हमें घेरेबंदी में लेकर चलने वाले काफिले के आगे-आगे चले। काफिला दिन में 11 बजे के आसपास चलना शुरू हुआ। सभी काम में मस्त थे उस समय तक डर की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। पहाड़ियों पर इरादतन रखे दो पत्थरों की तरफ मेरा ध्यान आकृष्ट नहीं हुआ। ‘दो दिन पहले हमारा एक जवान यहीं विद्रोहियों द्वारा मारा गया था’ मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। मनु तक की अपनी शेष यात्रा में, मैं यह ख्याल अपने दिल से निकाल नहीं पाया कि हमें घेरे हुए सी० आर० एफ० के जवान हैं अन्यथा शांतिपूर्ण प्रतीत होने वाले जंगलों में किसी जगह बंदूकें लिए विद्रोही भी छिपे हो सकते हैं।
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