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हिमालय की बेटियाँ
नदियों को माँ मानने की परंपरा हमारे यहाँ काफ़ी पुरानी है। लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं ?
लेखक नदियों को माँ मानने की परपंरा से पहले इन नदियों को स्त्री के सभी रूपों में देखता है जिसमें वो उसे बेटी के समान प्रतीत होती है। इसलिए तो लेखक नदियों को हिमालय की बेटी कहता है। कभी वह इन्हें प्रेयसी की भांति प्रेममयी कहता है, जिस तरह से एक प्रेयसी अपने प्रियतम से मिलने के लिए आतुर है उसी तरह ये नदियाँ सागर से मिलने को आतुर होती हैं, तो कभी लेखक को उसमें ममता के स्वरूप में बहन के समान प्रतीत होती है जिसके सम्मान में वो हमेशा हाथ जोड़े शीश झुकाए खड़ा रहता है।
सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं ?
इनकी विशेषताएँ इस प्रकार है:-
(i) सिंधु और ब्रह्मपुत्र ये दोनों ही महानदी हैं।
(ii) इन दोनों महानदियों में सारी नदियों का संगम होता है।
(iii) ये भौगोलिक व प्राकृतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण नदियाँ हैं। ये डेल्टाफार्म करने के लिए, मत्सय पालन, चावल की फसल व जल स्रोत का उत्तम साधन है।
(iv) ये दोनों ही पौराणिक नदियों के रूप में विशेष पूज्यनीय व महत्वपूर्ण हैं।
काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है ?
नदियों को लोकमाता कहने के पीछे काका कालेलकर का नदियों के प्रति सम्मान है। क्योंकि ये नदियाँ हमारा आरम्भिक काल से ही माँ की भांति भरण-पोषण करती आ रही है। ये हमें पीने के लिए पानी देती है तो दूसरी तरफ इसके द्वारा लाई गई ऊपजाऊ मिट्टी खेती के लिए बहुत उपयोगी होती है। ये मछली पालन में भी बहुत उपयोगी है अर्थात् ये नदियाँ सदियों से हमारी जीविका का साधन रही है। हिन्दू धर्म में तो ये नदियाँ पौराणिक आधार पर भी विशेष पूजनीय है। हिन्दु धर्म में तो जीवन की अन्तिम यात्रा भी इन्हीं से मिलकर समाप्त हो जाती है। इसलिए ये हमारे लिए माता के समान है जो सबका कल्याण ही करती है।
हिमालय की यात्रा में लेखक ने किन-किन की प्रशंसा की है ?
लेखक ने हिमालय यात्रा में निम्नलिखित की प्रशंसा की है –
(i) हिमालय की अनुपम छटां की।
(ii) हिमालय से निकले वाली नदियों की अठखेलियों की।
(iii) उसकी बरफ़ से ढकी पहाड़ियों की सुदंरता की।
(iv) पेड़-पौधों से भरी घाटियों की।
(v) देवदार, चीड़, सरो, चिनार, सफैदा, कैल से भरे जंगलों की।
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