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चिड़िया की बच्ची
किन बातों से ज्ञात होता है कि माधवदास का जीवन संपन्नता से भरा था और किन बातों से ज्ञात होता है कि वह सुखी नहीं था?
माधवदास अपने लिए संगमरमर की एक नई कोठी बनवाते हैं। चिड़िया को धन का, सोने का घर बनवाने तथा मोतियों की झालर लटकाने का प्रलोभन देता है। वो चिड़िया से कहता है – ”मेरे पास क्या नहीं है। जो माँगो मैं वही दे सकता हूँ।” माधवदास जी की इन बातों से ज्ञात होता है कि वे कितने धनी-संपन्न थे।
वहीं दूसरी ओर ऐसा भी लगता है कि धन-संपन्न होने के बावजूद भी वे सुखी नहीं है। ख्याल-ही-ख्याल में वे संध्या को स्वप्न की भाँति गुज़ार देते हैं। वे चिड़िया से कहते हैं-”मेरा दिल वीरान है। वहाँ कब हँसी सुनने को मिलती है?” इससे यह स्पष्ट है कि वे सुखी नहीं थे।
माधवदास क्यों बार-बार चिड़िया से कहता है कि यह बगीचा तुम्हारा ही है? क्या माधवदास निःस्वार्थ मन से ऐसा कह रहा था? स्पष्ट कीजिए।
माधवदास ऐसा इसलिए कहता है क्योंकि उसे चिड़िया बहुत ही सुन्दर और प्यारी लगी। वह चिड़िया को हमेशा अपने पास रखना चाहता था। उसे देख-देख कर वह अपना मन बहलाना चाहता था।
माधवदास आत्म केन्द्रित होकर ऐसा करना चाहता था। क्योंकि वह केवल अपनी खुशी के लिए, अपना मन बहलाने के लिए ऐसा कर रहा था। इसलिए माधवदास की इस भावना में उसका निजी स्वार्थ है।
माधवदास के बार-बार समझाने पर भी चिड़िया सोने के पिंजरे और सुख-सुविधाओं को कोई महत्त्व नहीं दे रही थी। दूसरी तरफ़ माधवदास की नज़र में चिड़िया की ज़िद का कोई तुक न था। माधवदास और चिड़िया के मनोभावों के अंतर क्या-क्या थे? अपने शब्दों में लिखिए।
यहाँ माधवदास और चिड़िया के मनोभाव एक दूसरे से विपरीत हैं। एक तरफ माधवदास के लिए धन-संपत्ति, सुख-सुविधा ही जीवन के अमुल्य तत्व हैं। परन्तु दूसरी ओर चिड़िया के लिए ये सभी सुख सुविधाएँ व्यर्थ थी। चिड़िया को केवल अपनी माँ से लगाव था। माँ की गोद ही उसके लिए दुनिया में सबसे अधिक मूल्यवान सुख था। उसे सोने-चाँदी, हीरे-मोती की तुलना में अपने माँ का स्नेह अधिक प्यारा था। अर्थात् चिड़िया की खुशी भौतिक सुखों से अलग भावनात्मक सुखों में है। परन्तु माधवदास के लिए धन दौलत ही सर्वोपरि है। उसके सामने भावनाएँ मूल्यहीन हैं।
कहानी के अंत में नन्ही चिड़िया का सेठ के नौकर के पंजे से भाग निकलने की बात पढ़कर तुम्हें कैसा लगा? चालीस-पचास या इससे कुछ अधिक शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
कहानी के अंत में हमने पढ़ा कि सेठ की सभी चेष्टाओं के बावजूद नन्ही चिड़िया सेठ के नौकर के पंजे से भाग निकलने में सफल होती है। यह कहानी का सुखद अंत है। यदि ऐसा नहीं होता तो कहानी का अंत अत्यंत दुखद होता और ऐसा प्रतीत होता है कि अच्छाई पर बुराई की जीत हो गई। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता और चिड़िया सुरक्षित अपनी माँ के पास पहुँच जाती है। चिड़िया के अस्तित्व की सफलता उसके बंधन मुक्त होकर स्वच्छंदता पूर्वक आकाश में उड़ने में है। वह अपने परिवार तथा अपनी माँ का स्नेह पाकर खुश रहती है।
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