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गजानन माधव मुक्तिबोध
गजानन माधव मुक्तिबोध के व्यक्तित्व तथा कृतित्व का परिचय दीजिए।
जीवन-परिचय नई कविता को व्यवस्थित मूल्य प्रदान करने वाले कवि मुक्तिबोध का जन्म श्योपुर (मध्य प्रदेश) में 1917 में हुआ। मुक्तिबोध के पिता माधव राव ग्वालियर रियासत के पुलिस विभाग’ में थे। पिता के व्यक्तित्व के प्रभाव-स्वरूप मुक्तिबोध में ईमानदारी, न्यायप्रियता और दृढ़ इच्छा-शक्ति का प्रतिफलन हुआ। सन् 1935 में जाति, कुल और सामाजिक आचारों से लोहा लेते हुए प्रेम-विवाह किया। इन्होंने मुख्यत: अध्यापन कार्य किया। एक अरसे तक नागपुर से ‘नया खून’ साप्ताहिक का संपादन करने के बाद इन्होंने अध्यापन कार्य अपनाया और अंत तक ‘दिग्विजय महाविद्यालय’ राजनांदगाँव (मध्य प्रदेश) में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे।
मुक्तिबोध का पूरा जीवन संघर्षो और विरोधों से भरा रहा। उन्होंने मार्क्सवाद और अस्तित्ववाद आदि अनेक आधुनिक विचारधाराओं का अध्ययन किया था जिसका प्रभाव उनकी कविताओं पर दिखाई देता है। पहली बार उनकी कविताएँ सन् 1943 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ में छपीं। कविता के अतिरिक्त उन्होंने कहानी, उपन्यास, आलोचना आदि विधाओं में भी लिखा। उन्होंने कला, संस्कृति समाज राजनीति आदि से संबंधित अनेक लेख भी लिखे। इनकी मृत्यु 1964 ई. में हुई।
रचनाएँ: इनकी कविताओं के संग्रह ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ (1964) तथा ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ छपे हैं। इसके अलावा उनके दो कहानी संग्रह हैं। ‘विपात्र’ नाम एक उपन्यास और ‘एक साहित्यिक की डायरी’ उनकी अन्य महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं। मुक्तिबोध की आलोचनात्मक कृतियाँ भी हैं- ‘कामायनी एक पुनर्विचार,’ ‘नई कविता का आत्मसंघर्ष’ तथा ‘अन्य निबंध’, ‘नए साहित्य का सौंदर्य शास्त्र’।
इनकी सारी रचनाएँ ‘मुक्तिबोध रचनावली’ के नाम से छ: खंडों मे प्रकाशित हुई हैं।
काव्यगत विशेषताएँ: मुक्तिबोध का कवि-व्यक्तित्व जटिल है। ज्ञान और संवेदना के संशिलष्ट स्तर से युगीन प्रभावों को ग्रहण करके प्रौढ़ मानसिक प्रतिक्रियाओं के कारण उनकी कविताएँ विशेष सशक्त हैं। मुक्तिबोध ने अधिकतर लंबी नाटकीय कविताएँ लिखी हैं जिनमें सम-सामयिक समाज उनमें पलने वाले अंतर्द्वद्वों और इन अंतर्द्वद्वों से उत्पन्न भय, संत्रास, आक्रोश, विद्रोह और दुर्दम्य संघर्ष भावना के विविध रूप चित्रित हैं।
मुक्तिबोध की कविताओं में संपूर्ण परिवेश के बीच अपने आपको खोजने और पाने को ही नहीं, संपूर्ण परिवेश के साथ अपने आपको बदलने की प्रक्रिया का चित्रण भी मिलता है। इस स्तर पर मुक्तिबोध की कविता आधुनिक जागरूक व्यक्ति के आत्मसंघर्ष की कविता है।
छायावाद और स्वच्छंदतावादी कविता के बाद जब नई कविता आई तो मुक्तिबोध उसके अगुआ कवियों में से एक थे। मराठी संरचना से प्रभावित लंबे वाक्यों ने उनकी कविता को आम पाठक के लिए कठिन बताया लेकिन उनमें भावनात्मक और विचारात्मक ऊर्जा अटूट थी जैसे कोई नैसर्गिक अंत स्रोत हो जो कभी चुकता ही नहीं बल्कि लगातार अधिकाधिक वेग और तीव्रता के साथ उमड़ता चला आता है। यह ऊर्जा अनेकानेक कल्पना-चित्रों और फैंटेसियों का आकार ग्रहण कर लेती है। मुक्तिबोध की रचनात्मक ऊर्जा का एक बहुत बड़ा अंश आलोचनात्मक लेखन और साहित्य संबंधी चिंतन में सक्रिय रहा। वे एक समर्थ पत्रकार भी थे। इसके अलावा राजनैतिक विषयों अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य तथा देश की आर्थिक समस्याओं पर लगातार लिखा है। कवि शमशेर बहादुर सिंह के शब्दों में उनकी कविता अद्भुत संकेतों भरी, जिज्ञासाओं से अस्थिर, कभी दूर से शोर मचाती कभी कानों में चुपचाप राज की बातें कहती चलती है। हमारी बातें हमको सूनाती है। हम अपने को एकदम चकित होकर देखते हैं और पहले से अधिक पहचानने लगते हैं।
काव्य-शिल्प: मुक्तिबोध नई कविता के प्रमुख कवि हैं। उनकी संवेदना और ज्ञान की पंरपरा अत्यत व्यापक है। गहन विचारशील और विशिष्ट काव्य-शिल्प के कारण उनकी कविता की एक अलग पहचान बनती है। स्वतंत्र भारत के मध्यवर्ग की जिंदगी की विडंबनाओं व विदूपताओं का चित्रण उनकी कविता में है और साथ ही एक बेहतर मानवीय समाज व्यवस्था के निर्माण की आकांक्षाएँ मुक्तिबोध की कविता की एक बड़ी विशेषता हैं। उनकी कविताओं में बिंबों और प्रतीकों का प्रयोग है और फेंटेसी के शिल्प का उपयोग भी। उन्होंने फेंटेसी के माध्यम से ही प्राय: लंबी कविताओं की रचना की है इसलिए वे फेंटेसी के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं।
प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है,
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
प्रसग: प्रस्तुत पक्तियाँ मुक्तिबोध की एक सशक्त रचना ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में से उउद्धृतहै। इसमें कवि ने कहा है कि जीवन के समस्त खड़े-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों और सुख-दुःख को उसने इसलिए सहर्ष स्वीकारा है कि वह अपने किसी भी क्षण को अपने प्रिय से न केवल अत्यत जुड़ा हुआ अनुभव करता है; अपितु हर स्थिति-परिस्थिति को उसी की देन मानता है।
व्याख्या: कवि कहता है-हे प्रिय! मेरे इस जीवन में जो कुछ भी सुख-दुःख, मीठे-कड़वे अनुभव, सफलता-असफलताएँ हैं उन्हें मैंने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया है। मैंने इन्हें सहर्ष इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि तुमने इन सबको प्रेमपूर्वक अपना माना है अर्थात् मेरी सभी प्रकार की उपलब्धियाँ और कमियाँ तुम्हें सदा से प्रिय रही हैं। मेरा यह जीवन तुम्हारे प्रेम की देन है। मेरा जो कुछ भी है, वह तुम्हें प्रिय है। जो कुछ तुम्हें प्रिय है, वह मुझे भी स्वीकार है।
विशेष: 1. प्रिय की संवेदना का तरल अमूर्त बिंब प्रस्तुत किया गया है।
2. प्रिय का प्यार कवि को सब कुछ सहने की शक्ति प्रदान करता है।
3. ‘सहर्ष स्वीकारा’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. काव्य भाषा सरल एवं स्पष्ट है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
कवि का नाम: गजानन माधव मुक्तिबोध।
कविता का नाम. सहर्ष स्वीकारा है।
कवि ने सहर्ष क्या स्वीकार किया है?
कवि ने जिंदगी में जो कुछ भी है, जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर लिया है।
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