Sponsor Area

स्वयं प्रकाश - नेताजी का चश्मा

Question
CBSEENHN100018885

निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए :
जीप कस्बा छोड़कर आगे बढ़ गई तब भी होलदार साहब इस मूर्ति के बारे में ही सोचते रहे, और अंत में निष्कर्ष पर पहुँचे कि कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास सराहनीय ही कहा जाना चाहिए। महत्त्व मूर्ति के रंग या कद का नहीं, उस भावना का है; वरना तो देशभक्ति भी आजकल मज़ाक की चीज़ होती जा रही है।
दूसरी बार जब हालदार साहब उधर से गुजरे तो उन्हें मूर्ति में कुछ अंतर दिखाई दिया। ध्यान से देखा तो पाया कि चश्मा दूसरा है।
(क) हालदार साहब को कस्बे के नागरिकों का कौन-सा प्रयास सराहनीय लगा और क्यों? [2]
(ख) ‘देशभक्ति भी आजकल मजाक की चीज होती जा रही है।’ इस पंक्ति में देश और लोगों की किन स्थितियों की ओर संकेत किया गया है? [2]

(ग) दूसरी बार मूर्ति देखने पर हालदार साहब को उसमें क्या परिवर्तन दिखाई दिया? [1]

Solution

(क) हालदार साहब को कस्बे के नागरिकों के द्वारा नेताजी की मूर्ति का लगाना सराहनीय लगा, क्योंकि इसमें कस्बे वालों की देशभक्ति की भावना दिखाई दे रही थी।
(ख) हालदार साहब को लगा कि कैप्टन जो मूर्ति का चश्मा बदलता रहता था, पान वाले ने उसका मजाक उड़ाया था। नेता जी की प्रतिमा देशभक्ति की परिचायक थी। हालदार साहब को यह कतई पसन्द नहीं था कि प्रतिमा से संबंधित किसी चीज का कोई मजाक उड़ाए। वे बार-बार सोचते कि उस कौम का क्या होगा जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी, जवानी-जिन्दगी सब कुछ देश पर न्योछावर करने वालों पर हँसती है। उन्हें बहुत खराब लगा कि देश भक्ति भी आजकल मजाक की चीज होती जा रही है।
(ग) दूसरी बार मूर्ति देखने पर हालदार साहब ने देखा कि मूर्ति का चश्मा बदल गया था। साईकिल पर चश्मे बेचने वाला मूर्ति का चश्मा बदल दिया करता था। मोटे फ्रेम वाले चश्मे की जगह तार के फ्रेम वाले चश्मे ने ले ली थी।

Question
CBSEENHN10002189

सेनानी न होते हुए भी चश्मे बाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?

Solution

चश्मे वाला कोई सेनानी नहीं था और न ही वे देश की फौज में था। फिर भी लोग उसे कैप्टन कहकर बुलाते थे। इसका कारण यह रहा होगा कि चश्मे वाले में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। वह अपनी शक्ति के अनुसार देश के निर्माण में अपना पूरा योगदान देता था। कैप्टन के कस्वे में चौराहे पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगी हुई थी। मूर्तिकार उस मूर्ति का चश्मा बनाना भूल गया। कैप्टन ने जब यह देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ। उसके मन में देश के नेताओं के प्रति सम्मान और आदर था। इसीलिए वह जब तक जीवित रहा उसने नेता जी की मूर्ति पर चश्मा लगाकर रखा था। उसकी इसी भावना के कारण लोग उसे कैप्टन कहकर बुलाते थे।

Question
CBSEENHN10002190

हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा-
हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?

Solution

हालदार साहब पहले मायूस हो गए थे क्योंकि हालदार साहब चौराहे पर लगी नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति को बिना चश्मे के देख नहीं सकते थे। जब से कैप्टन मरा था किसी ने भी नेता जी की मूर्ति पर चश्मा नहीं लगाया था। इसीलिए जब हालदार साहब कस्ये से गुजरने लगे तो उन्होंने ड्राइवर से चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मनाकर दिया था ।

Question
CBSEENHN10002191

हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा-
 मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?

Solution

हालदार साहब जब चौराहे से गुजरे तो न चाहते हुए भी उनकी नज़र नेता जी की मूर्ति पर चली गई। मूर्ति देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था। सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब को यह उम्मीद हुई कि आज के बच्चे कल को देश के निर्माण में सहायक होंगे और अब उन्हें कभी भी चौराहे पर नेता जी की बिना चश्मे की मूर्ति नहीं देखनी पड़ेगी।