गलता लोहा

Sponsor Area

Question
CBSEENHN11012035

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
लंबे बेंटवाले हँसुवे को लेकर वह घर से इस उद्देश्य से निकला था कि अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाडियों को काट-छांटकर साफ कर आएगा। बूढ़े वंशीधर जी के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा। यही क्या, जन्म भर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर-संसार चलाया था, वह भी अब वैसे कहां कर पाते हैं! यजमान लोग उनकी निष्ठा और संयम के कारण ही उन पर श्रद्धा रखते हैं, लेकिन बुढ़ापे का जर्जर शरीर अब उतना कठिन श्रम और व्रत-उपवास नहीं झेल पाता। सुबह-सुबह जैसे उससे सहारा पाने की नीयत से ही उन्होंने गहरा नि नि:श्वास लेकर कहा था- ‘आज गणनाथ जाकर चंद्रदत्त जी के लिए रुद्रीपाठ करना था, अब मुश्किल ही लग रहा है। यह दो मील की सीधी चढ़ाई अब अपने बूते की नहीं। एकाएक ना भी नहीं कहा जा सकता, कुछ समझ में नहीं आता!’

1. कौन, किस उद्देश्य से निकला था?
2. बूढ़े वंशीधर कौन हैं? उन्होंने अब तक क्या काम किया है?
3. उन्होंने गहरा निःश्वास छोड़ते हुए क्या कहा? यह उन्होंने किस नीयत से कहा था?

Solution

1. वंशीधर का बेटा मोहन एक लंबे बेंटवाले हँसुए को हाथ में लेकर इस उद्देश्य से घर से निकला था कि वह अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट -छाँटकर साफ कर आएगा। अब उसके पिता के लिए यह काम करना संभव नहीं रह गया था।
2. बूढ़े वंशीधर मोहन के पिता हैं। वे पुरोहिताई का काम करते हैं। इसी काम के बलबूते पर उन्होंने जीवन- भर घर-संसार चलाया। यजमान उन पर निष्ठा और श्रद्धा रखते हैं। पर अब उनका शरीर बूढ़ा और कमजोर हो गया है। अब वे कठिन श्रम और व्रत-उपन्यास नहीं झेल पाते।
3. वंशीधर ने कहा कि आज उन्हें गणनाथ जाकर चंद्रदत्त जी के लिए रुद्रीपाठ करने जाना था, पर वे बुढापे के कारण वहाँ जा नहीं पा रहे हैं और मना करना भी संभव नहीं। वे क्या करें? उन्होंने यह इस नीयत से कहा ताकि महन का सहारा उन्हें मिल जाए।

Sponsor Area

Question
CBSEENHN11012036

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
‘पकड़ इसका कान, और लगवा इससे दस उठक-बैठक’, वे आदेश दे देते। धनराम भी उन अनेक छात्रों में से एक था जिसने त्रिलोक सिंह मास्टर के आदेश पर अपने हमजोली मोहन के हाथों कई बार बेंत खाए थे या कान खिंचवाए थे। मोहन के प्रति थोड़ी-बहुत ईर्ष्या रहने पर भी धनराम प्रारंभ से ही उसके प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था। इसका एक कारण शायद यह था कि बचपन से ही मन में बैठा दी गई जातिगत हीनता के कारण घनराम ने कभी मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा बल्कि वह इसे मोहन का अधिकार ही समझता रहा था। बीच-बीच में त्रिलोक सिंह मास्टर का यह कहना कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल का और उसका नाम ऊँचा करेगा, घनराम के लिए किसी और तरह से सोचने की गुंजाइश ही नहीं रखता था।

1. कौन, किसको, क्या आदेश देते?
2. इस गद्याशं में किसके, किससे मार खाने का उल्लेख है?
3. धनराम मोहन के बारे में क्या सोचता था और क्यों?

Solution

1. मास्टर त्रिलोकसिंह अपने शिष्य मोहन को शरारती अथवा पढ़ाई का काम न करने वाले छात्रों को सजा देने का आदेश देते थे। वे मोहन से ही कहते कि अमुक छात्र के कान पकड़े और दस उठक-बैठक लगवाए। मास्टर साहब के आदेश पर मोहन के उससे अनेक साथियों ने उसके हाथों कई बार बेंत भी खाए थे और कान भी खिंचवाए थे।
2. इस गद्यांश में मोहन के हाथों कई बार मार खाने के संदर्भ में घनराम का उल्लेख है। इसके बावजूद उसके मन में मोहन के प्रति थोड़ी-बहुत ईर्ष्या रहने के बावजूद उसके प्रति स्नेह और आदर का अभाव रहता था। इसका कारण यह भी था कि उसके मन में जातिगत हीनता की भावना बिठा दी गई थी ।
3. घनराम मोहन के बारे में अच्छी भावना रखता था। उसने मोहन को कभी अपना प्रतिद्वंद्वी समझा ही नहीं। वह मोहन के अधिकार को स्वीकारता था। चुँकि मोहन मास्टर त्रिलोकसिंह का प्रिय शिष्य था तथा वे उसके बड़ा आदमी बनने की आशा रखते थे। अत: घनराम के लिए मोहन के बारे में और कुछ सोचने का अवकाश ही न था। वह भी मानने लगा था कि मोहन भविष्य में एक बड़ा आदमी बनेगा।

Question
CBSEENHN11012037

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
धनराम की मंद बुद्धि रही हो या मन में बैठा हुआ डर कि पूरे दिन घोटा लगाने पर भी उसे तेरह का पहाड़ा याद नहीं हो पाया था। छुट्टी के समय जब मास्साब ने उससे दुबारा पहाड़ा सुनाने को कहा तो तीसरी सीडी तक पहुंचते-पहुंचते वह फिर लड़खड़ा गया था। लेकिन इस बार मास्टर त्रिलोकसिंह ने उसके लाए हुए बेंत का उपयोग करने की बजाय जबान की चाबुक लगा दी थी, ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?’ अपने थैले से पांच-छह दरातियाँ निकालकर उन्होंने घनराम को धार लगा लाने के लिए पकड़ा दी थीं। किअबों की विद्या का ताप लगाने की सामर्थ्य धनराम के पिता की नहीं थी। घनराम हाथ-पैर चलाने लायक हुआ ही था कि बाप ने उसे धौंकनी या सान लगाने के कामों में उलझाना शुरू कर दिया और फिर धीरे- धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सीखने लगा।

1. धनराम क्या याद नहीं कर सका और क्यों?
2. मास्टर त्रिलोकसिह ने घनराम को क्या सजा दी?
3. धनराम ने कौन-सी विद्या सीखी?

Solution

1. मास्टर त्रिलोकसिंह ने धनराम को तेरह का पहाड़ा याद करने को कहा। घनराम ने पूरे दिन इसे याद करने का प्रयास किया, पर वह याद न कर सका। इसके दो कारण हो सकते हैं-
   (i) घनराम मंदबुद्धि था, अत: उसे पहाड़ा याद नहीं हुआ,
   (ii) उसके मन में डर बैठा हुआ था।
2. मास्टर त्रिलोकसिंह प्राय: बेंत लगाने की सजा देते थे। पर इस बार उन्होंने बेंत का प्रयोग नहीं किया। इस बार उन्होंने बेंत के स्थान पर जबान की चाबुक का प्रयोग किया। उन्होंने धनराम को अपमानित करते हुए कहा कि ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है, इसमें विद्या का ताप कहाँ से लगेगा?’
अर्थात तू पड़ नहीं सकता, केवल लोहे का काम ही कर सकता है।
3. धनराम के हाथ-पैर चलाने लायक होते ही उसके पिता ने उसे भट्टी पर धौंकनी फूँकने या सान लगाने के कामों में उलझाना शुरू कर दिया। वह इन कामों को करना सीख भी गया। फिर धीरे- धीरे वह हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सीखने लगा। इस प्रकार उसने लोहे का काम करने की विद्या सीखी।

Question
CBSEENHN11012038

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
प्राइमरी स्कूल की सीमा लांघते ही मोहन ने छात्रवृत्ति प्राप्त कर त्रिलोसिंह मास्टर की भविष्यवाणी को किसी हद तक सिद्ध कर दिया तो साधारण हैसियत वाले यजमानों की पुरोहिताई करने वाले वंशीधर तिवारी का हौसला बढ़ गया और वे भी अपने पुत्र को पड़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाने का स्वप्न देखने लगे। पीढ़ियों से चले आते पैतृक धंधे ने उन्हें निराश कर दिया था। दान-दक्षिणा के बूते पर वे किसी तरह परिवार का आधा पेट भर पाते थे। मोहन पद्य-लिखकर वंश का दारिद्रय मिटा दे, यह उनकी हार्दिक इच्छा थी । लेकिन इच्छा होने भर से ही सब-कुछ नहीं हो जाता।

1. मास्टर त्रिलोसिहं की किस भविष्यवाणी को मोहन ने सच सिद्ध कर दिया और कैसे?
2. किसका और क्यों हौसला बढ़ गया?
3. उनकी क्या इच्छा थी?

Solution

1. मास्टर त्रिलोकसिंह ने मोहन के बारे में यह भविष्यवाणी की थी कि वह आगे चलकर एक बड़ा आदमी बनेगा और अपने स्कूल का नाम ऊँचा करेगा। जब मोहन ने प्राइमरी स्कूल की सीमा लाँघते ही छात्रवृत्ति प्राप्त कर ली तब उनकी यह भविष्यवाणी सच सिद्ध हो गई। अब यह लगने लगा कि निश्चय ही मोहन का भविष्य उज्ज्वल है ।
2. मोहन के पिता पंडित वंशीधर तिवारी यजमानों की पुरोहिताई का काम करते थे। जब मोहन को मेधावी छात्रवृत्ति मिली तो वंशीधर का हौसला बढ़ गया। अब वे भी अपने पुत्र को पड़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाने के सपने देखने लगे। पैञृक धंधे से उन्हें कोई विशेष लाभ न था।
3. पंडित वंशीधर तिवारी की यह इच्छा थी कि उनका बेटा मोहन खूब पढ़-लिखकर खानदान की गरीबी का कलंक मिटा दे। अब वे दान-दक्षिणा के बलबूते घर परिवार का पालन-पोषण करने में असमर्थ हो गए थे। अब उनकी निगाहें पुत्र मोहन पर ही टिकी थीं।