वैज्ञानिक चेतना के वाहक चनद्रशेखर वेंकट रामन - धीरंजन मालवे

  • Question 1
    CBSEENHN9000534

    निन्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रशनों के उत्तर दीजिए-
    पेड़ से सेब गिरते हुए लोग सदियों से देखते आ रहे थे, मगर गिरने के पीछे छिपे रहस्य को न्यूटन से पहले कोई और समझ नही पाया था। ठीक उसी प्रकार विराट समुद्र की नील-वर्णीय आभा को भी असंख्य लोग आदिकाल से देखते आ रहे थे, मगर इस आभा पर पड़े रहस्य के परदे को हटाने के लिए हमारे समक्ष उपस्थित हुए सर चंद्रशेखर वेंकट रामन्।

    बात सन् 1921 की है, जब रामन् समुद्री यात्रा पर थे। जहाज के डेक पर खड़े होकर नीले समुद्र को निहारना, प्रकृति-प्रेमी रामन् को अच्छा लगता था। वे समुद्र की नीली आभा में घंटों खोए रहते। लेकिन रामन् को अच्छा लगता था। वे समुद्र की नीली आभा में घंटों खोए रहते। लेकिन रामन् केवल भावुक प्रकृति-प्रेमी ही नहीं थे। उनके अंदर एक वैज्ञानिक की जिज्ञासा भी उतनी ही सशक्त थी। यही जिज्ञासा उनसे सवाल कर बैठी- ‘आखिर समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है? कुछ और क्यों नहीं?’ रामन् सवाल का जवाब ढूँढने में लग गए। जवाब ढूँढ़ते ही वे विश्वविख्यात बन गए।
    प्रशन:
    (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो?
    (ख) न्यूटन ने किस जिज्ञासा से कौन-सा सिद्धांत खोजा था?
    (ग) रामन् के व्यक्तित्व के गुणों पर प्रकाश डालिए?
    (घ) लेखक ने रामन् को भावुक प्रकृति-प्रेमी क्यों कहा है?




    Solution

    (क) पाठ-वैज्ञानिक चेतना के वाहक चन्द्रशेखर वेंकट रामन्, लेखक-धीरंजन मालवे।
    (ख) न्यूटन के मन में यह जिज्ञासा उठी थी कि सेब पेड़ से नीचे ही क्यों गिरता है। वह ऊपर क्यों नहीं उठता। इसी जिज्ञासा को लेकर उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की खोज की।
    (ग) रामन के व्यक्तित्व के दो गुण प्रमुख थे-
    - वे प्रकृति के गहरे भावुक प्रेमी थे। वे घंटों-घंटों समुद्री जल के नीले रंग को निहारते रहते थे।
    - उनमें प्रकृति के रहस्यों को जानने की तीव्र इच्छा थी।
    (घ) लेखक ने रामन् को भावुक प्रकृति प्रेमी इसलिए कहा है क्योंकि उन्हें जहाज के डेक पर खड़े होकर समुद्र को निहारना अच्छा लगता था। वे घंटों-घंटों समुद्र की नीली आभा में खोए रहते थे।

    Question 2
    CBSEENHN9000535

    निन्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रशनों के उत्तर दीजिए-
    कलकत्ता में सरकारी नौकरी के दौरान उन्होंने अपने स्वाभाविक रुझान को बनाए रखा। दफ़्तर से फुर्सत पाते ही वे लौटते हुए बहू बाज़ार आते, जहाँ ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ की प्रयोगशाला थी। यह अपने आप में एक अनूठी संस्था थी, जिस कलकत्ता के एक डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार ने वर्षों की कठिन मेहनत और लगन के बाद खड़ा किया था। इस संस्था का उद्देश्य था देश में वैज्ञानिक चेतना का विकास करना अपने महान् उद्देश्यों के बावजूद इस संस्था के पास साधनों का नितांत अभाव था। रामन् इस संस्था की प्रयोगशाला में कामचलाऊ उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए शोधकार्य करते। यह अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था, जिसमें एक साधक दफ्तर में कड़ी मेहनत के बाद बहू बाजार की इस मामूली-सी प्रयोगशाला में पहुँचता और अपनी इच्छाशक्ति के जोर से भौतिक विज्ञान को समृद्ध बनाने के प्रयास करता। उन्हीं दिनों वे वाद्ययंत्रों की ओर आकृष्ट हुए। वे वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्यों की परतें खोलने का प्रयास कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने अनेक वाद्ययंत्रों का अध्ययन किया जिनमें देशी और विदेशी, दोनों प्रकार के वाद्ययंत्र थे।  प्रशन:
    (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
    (ख) रामन कलकत्ता में कहाँ प्रयोग करने जाते थे?
    (ग) प्रयोगशाला को कामचलाऊ क्यों कहा गया है?
    (घ) आधुनिक हठयोग किसे कहा गया है?
    दफ़्तर

    Solution

    (क) पाठ-वैज्ञानिक चेतना के वाहक: चन्द्रशेखर वेंकट रामन्, लेखक-धीरंजन मालवे।
    (ख) कलकत्ता के बहू बाजार में ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ सांइस’ नाम एक प्रयोगशाला था। इसके संस्थापक थे डॉक्टर महेन्द्रलाल सरकार। रामन् इसी प्रयोगशाला में आकर प्रयोग किया करते थे।
    (ग) यह प्रयोगशाला एक ही व्यक्ति के प्रयत्नों तथा साधनों से चलाई जा रही थी। इसलिए इसमें उन्नत उपकरण तथा अन्य साधन नहीं थे। पैसे का अभाव था जो भी उपकरण थे कामचलाऊ थे इसलिए इसे कामचलाउ कहा गया है।
    (घ) हठयोग की साधना के मूल में साधक का हठ काम करता है। रामन् अपनी सरकारी नौकरी पूरी करने के बाद लौटते समय एक काम चलाऊ प्रयोगशाला में जाकर प्रयोग करते थे। उनके पास न साधन थे, न समय। केवल इच्छा शक्ति पर ही वे काम कर रहे थे।

    Question 3
    CBSEENHN9000536

    निन्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रशनों के उत्तर दीजिए-
    रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जब एकवर्णीय प्रकाश कि किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। वजह यह होती है कि एकवर्णीय प्रकाश कि किरण के फोटॉन जब तरल या ठोस रवे से गुजरते हुए इनके अणुओं से टकराते हैं तो इस टकराव के परिणामस्वरूप वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा जाते हैं। दोनों ही स्थितियाँ प्रकाश के वर्ण (रंग) में बदलाव लाती है। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंजनी रंग के प्रकाश में होती है। बैंजनी के बाद क्रमश: नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण का नंबर आता है। इस प्रकार लाल-वर्णीय प्रकाश की ऊर्जा सबसे कम होती है। एकवर्णीय प्रकाश तरल या ठोस रवों से गुजरते हुए जिस परिणाम में ऊर्जा खोता या पाता है, उसी हिसाब से उसका वर्ण परिवर्तित हो जाता है।
    प्रसन:
    (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
    ख) रामन ने पानी के रंग बदलने का कौन-सा कारण खोजा?
    (ग) ठोस रवे या तरल पदार्थ से गुजरते समय प्रकाश के फोटॉन में क्या परिवर्तन होता है?
    (घ) आप रंगों, की क्या विशेषता जानते है? दफ़्तर

    Solution

    (क) पाठ-वैज्ञानिक चेतना के वाहक: चंन्द्रशेखर वेंकट रामन्, लेखक-धीरंजन मालवे।
    (ख) रामन् ने खोजा कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरणें किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ में से गुजरती है तो उनका रंग बदलने लगता है।
    (ग) जब ठोस, रवे या तरल पदार्थ में से एकवर्णीय प्रकाश- की किरणें गुजरती हैं तो प्रकाश के फोटॉन इनके अणुओं से टकराते हैं। इस टकराव के कारण या तो ये अपनी ऊर्जा का कुछ अंश खो देते है या पा लेते है। इसी कमी या वृद्धि के कारण वर्ण में परिवर्तन होता है।
    (घ) विभिन्न एकवर्णीय प्रकाश की किरणों की ऊर्जा भिन्न-भिन्न होती है। बैंजनी रंग में सर्वाधिक ऊर्जा होती है। उसके बाद क्रमश: नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी, और लाल रंग में ऊर्जा होती है। लाल रंग का एकवर्णीय प्रकाश सबसे कम ऊर्जावान होता है।

    Question 4
    CBSEENHN9000537

    निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
    रामन् भावुक प्रकृति प्रेमी के अलावा और क्या थे?

    Solution
    रामन् भावुक प्रकृति प्रेमी के अलावा एक जिज्ञासु वैज्ञानिक भी थे। उनके अंदर सशक्त वैज्ञानिक जिज्ञासा थी। वे विश्व विख्यात वैज्ञानिक बने।

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