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Hindi Writing Skill
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए :
महात्मा गांधी ने कोई 12 साल पहले कहा थामैं बुराई करने वालों को सजा देने का उपाय ढूँढ़ने लगूं तो मेरा काम होगा उनसे प्यार करना और धैर्य तथा नम्रता के साथ उन्हें समझाकर सही रास्ते पर ले आना। इसलिए असहयोग या सत्याग्रह घृणा का गीत नहीं है। असहयोग का मतलब बुराई करने वाले से नहीं, बल्कि बुराई से असहयोग करना है।
आपके असहयोग का उद्देश्य बुराई को बढ़ावा देना नहीं है। अगर दुनिया बुराई को बढ़ावा देना बंद कर दे तो बुराई अपने लिए आवश्यक पोषण के अभाव में अपने-आप मर जाए । अगर हम यह देखने की कोशिश करें कि आज समाज में जो बुराई है, उसके लिए खुद हम कितने जिम्मेदार हैं तो हम देखेंगे कि समाज से बुराई कितनी जल्दी दूर हो जाती हैं। लेकिन हम प्रेम की एक झूठी भावना में पड़कर इसे सहन करते हैं। मैं उस प्रेम की बात नहीं करता, जिसे पिता अपने गलत रास्ते पर चल रहे पुत्र पर मोहांध होकर बरसाता चला जाता है, उसकी पीठ थपथपाता है; और न मैं उस पुत्र की बात कर रहा हूँ जो झूठी पितृभक्ति के कारण अपने पिता के दोषों को सहन करता है। मैं उस प्रेम की चर्चा नहीं कर रहा हूँ। मैं तो उस प्रेम की बात कर रहा हूँ, जो विवेकयुक्त है और जो बुद्धियुक्त है और जो एक भी गलती की ओर से आँख बंद नहीं करता। यह सुधारने वाला प्रेम है। (क) गांधीजी बुराई करने वालों को किस प्रकार सुधारना चाहते| [2]
(ख) बुराई को कैसे समाप्त किया जा सकता है? [2]
(ग) ‘प्रेम’ के बारे में गांधीजी के विचार स्पष्ट कीजिए। [2]
(घ) असहयोग से क्या तात्पर्य है? [1]
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपर्युक्त शीर्षक दीजिए। [1]
(क) गांधीजी बुराई करने वाले को उनसे प्यार करके, धैर्य, नम्रता के साथ उन्हें समझाकर सही रास्ते पर लाना चाहते
(ख) बुराई को असहयोग से समाप्त किया जा सकता है। असहयोग का मतलब बुराई करने वाले से नहीं, बल्कि बुराई का साथ न देना है।
(ग) प्रेम के बारे में गांधीजी के विचार यह हैं कि जो विवेकयुक्त, बुद्धियुक्त और जो एक भी गलती की ओर से अपनी आँखें बंद नहीं करें पुत्र के प्रति पिता का अंधा मोह और पिता के प्रति पुत्र की झूठी पितृभक्ति प्रेम नहीं है।
(घ) “असहयोग” का अर्थ है साथ न देना। यहाँ पर गांधीजी का असहयोग से अर्थ है ‘बुराई में साथ न देना।
(ङ) उपयुक्त शीर्षक समाज से बुराइयों का अंत
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए :
तुम्हारी निश्चल आँखें
तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में प्रेम
पिता का दिखाई नहीं देता है।
जरूर दिखाई देती होंगी नसीहतें
नुकीले पत्थरों-सी
दुनिया भर के पिताओं की लंबी कतार में
पता नहीं कौन-सा कितना करोड़वाँ नंबर है मेरा
पर बच्चों के फूलोंवाले बगीचे की दुनिया में
तुम अव्वल हो पहली कतार में मेरे लिए
मुझे माफ करना मैं अपनी मूर्खता और प्रेम में समझता था
मेरी छाया के तले ही सुरक्षित रंग-बिरंगी दुनिया होगी तुम्हारी
अब जब तुम सचमुच की दुनिया में निकल गई हो।
मैं खुश हूँ सोचकर
कि मेरी भाषा के अहाते से परे है तुम्हारी परछाई।
(क) बच्चे माता-पिता की उदासी में उजाला भर देते हैं-यह भाव किन पंक्तियों में आया हैं? [1]
(ख) प्रायः बच्चों को पिता की सीख कैसी लगती है? [1]
(ग) माता-पिता के लिए अपना बच्चा सर्वश्रेष्ठ क्यों होता है? [1]
(घ) कवि ने किस बात को अपनी मूर्खता माना है और क्यों? [2]
(ङ) भाव स्पष्ट कीजिए : ‘प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता। [2]
(क) तुम्हारी निश्चल आँखें तारों-सी चमकती हैं।
मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में।
(ख) प्रायः बच्चों को पिता की सीख नुकीले पत्थरों की तरह लगती है।
(ग) बच्चे से अत्यधिक प्रेम के कारण माता-पिता को अपना बच्चा सर्वश्रेष्ठ लगता है।
(घ) कवि ने इस बात को अपनी मूर्खता माना है कि एक बच्चा अपने माता-पिता की छाया के नीचे भली-भाँति फल-फूल सकता है और खुश रह सकता है।
(ङ) पिता बच्चे के प्रेम में यदि सही मार्ग दिखाने के लिए उसे नसीहत देता है, तो बच्चों को वे नसीहतें नुकीले पत्थरों की तरह चुभने लगती हैं। बच्चा उन नसीहतों के पीछे पिता के छिपे हुए प्रेम को नहीं देखता।
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिन्दुओं
के आधार पर 200 से 250 शब्दों में निबन्ध लिखिए। .[10]
(क) महानगरीय जीवन
- विकास की अंधी दौड़
- संबंधों का ह्रास
- दिखावा
(ख) पर्वो का बदलता स्वरूप
- तात्पर्य
- परंपरागत तरीके
- बाजार का बढ़ता प्रभाव
(ग) बीता समय फिर लौटता नहीं
- समय का महत्त्व
- समय नियोजन
- समय आँवाने की हानियाँ
(क) महानगरीय जीवन
वर्तमान समय में भारत के अनेक प्रमुख नगर महानगरों में परिवर्तित होते जा रहे हैं। एक नई महानगरीय सभ्यता पनपती जा रही है। आज के दौर में विकास की अंधी दौड़ में हर एक इन्सान उसका हिस्सा बनने की कोशिश कर रहा है। जबकि असलियत यह है कि यह विकास की दौड़ बाहर से देखने पर जितनी लुभावनी लगती है, लोगों को इसमें नौकरी और व्यापार के अवसर दिखाई देते हैं। जिससे उनकी आय उन्हें मोह लेने वाली लगती है। परन्तु जब उन्हें वास्तविकता का सामना करना पड़ता है। तो उनके सारे सपने बिखर जाते हैं, असलियत में जिन्दगी बहुत कठिनाइयों भरी होती है। महानगरों में रहने की समस्या बहुत ज्यादा है। अच्छे घरों के लिए बहुत किराया देना पड़ता है। झुग्गी-झोंपड़ी पहले तो रहने वाली नहीं होती बल्कि साथ में गन्दगी, स्वच्छता की कमी रहती है। महानगरों में पहुँचकर जिन्दगी की कठिनाइयों को झेलते-झेलते आपसी संबंधों का ह्मस शुरू हो जाता है। रिश्ते चाहे माता-पिता के साथ हों, पति-पत्नी के बीच हों, बच्चों के साथ, रिश्तेदारियों में दोस्ती, आदि में किसी के पास भी वक्त नहीं होता और उनके सम्बन्ध के बीच खटास आने लगती है। इसमें कुछ कारण तो आदमी के रहने की जगह से काम करने की जगह के बीच दूरियों और उसमें लगता समय जो कभी-कभी 12 से 14 घण्टे रोजाना का होता है, बहुत बड़ा हाथ है।
पर इन सबके बावजूद महानगरों की चमक-दमक का आकर्षण गांवों के लोगों को अपनी तरफ खींचता है। महानगरों में खाने-पीने की कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है। बढ़ते हुए ट्रांसपोर्ट की वजह से वहाँ का वातावरण बहुत प्रदूषित रहने लगा है। इसलिए न वहाँ शुद्ध हवा मिलती है और न ही शुद्ध जल । महानगरों में मध्यम वर्गीय नौकरी-पेशा लोगों को एक और समस्या का सामना करना पड़ता है, वह है दिखावा या दूसरे शब्दों में आन-बान-शान का दिखावा । घर में, आस-पड़ोस में कोई समारोह हो तो ब्यूटी पार्लर, पहनने वाले एक-एक कपड़े और आभूषण का नया होना एक अनिवार्य अंग बन गया है और अगर घर में या रिश्तेदारी में शादी समारोह हो तो लेन-देन का दिखावा अपने चरम पर पहुँच जातो है। इन सब बातों को सामने रखें तो महानगरीय जिन्दगी ‘ में आराम कम और कठिनाइयाँ ज्यादा हैं।
(ख) पर्वो का बदलता स्वरूप समय के साथ-साथ हमारे सभी पर्व और त्योहारों का स्वरूप बदलता जा रहा है। पहले किसी भी पर्व में लोग पूरे उत्साह से भाग लिया करते थे, मंदिरों में पूरी श्रद्धा से पूजा-पाठ चला करता था। प्रत्येक घर में किसी न किसी रूप में एक मंदिर भी हुआ करता था। परन्तु आधुनिक युग में लोगों के पास समय को अभाव रहने लगा। जो लोग किसी पर्व को मनाते भी हैं उनमें ज्यादातर सिर्फ औपचारिकता दिखाने लग गए हैं। भारत में कई पर्व ऐसे भी हुआ करते थे जिसमें आदमी और औरतें दिन-भर का उपवास रखते थे, परन्तु अब इसमें किसी की कोई रुचि नहीं बची।
पर्वो व त्योहारों के परंपरागत तरीके को हम अगर याद करें, तो त्योहार किसी राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना के मुख्य अंग, स्वरूप एवं प्रतीक हुआ करते हैं। उनसे यह जाना जाता है कि कोई राष्ट्र, वहाँ रहने । वाली जातियों, उनकी सभ्यता और संस्कृति कितनी अपनत्वपूर्ण, जीवंत और प्राणवान है। पुराने वक्त में त्योहारों और पर्यों के अवसर पर ये घर-परिवार के छोटे-बड़े सभी सदस्यों को समीप आने, मिल बैठने, एक-दूसरे के सुख-आनंद को साझा बनाने के अवसर होते थे।
पर्वो और त्योहारों के बदलते स्वरूप के लिए आज बाजार का बढ़ता प्रभाव है। किसी भी पर्व को लोकप्रिय बनाने के लिए उससे सम्बन्धित गानों की सीडी छोटे बड़े नये-नये स्टाइल के कपड़े, चुन्नियाँ आदि पहले से मिलनी शुरू हो जाती हैं। बाजार के बदलते और बढ़ते प्रभाव के कारण दिवाली चाइनीज पटाख़ों से भर जाती है।
(ग) बीता समय फिर लौटता नहीं समय यानी वक्त एक ऐसी चीज़ है कि एक बार वो बीत जाये तो फिर नहीं आता और इस बात का मलाल रहता है। कि वह काम समय पर क्यों नहीं किया। विशेषतः आफिस में, समय पर काम न होने से कई बार आर्थिक नुकसान तक हो जाता है। इसलिए सभी को समय के महत्व को समझना जरूरी है। समय वह धन है जिसका सदुपयोग न करने से वह व्यर्थ चला जाता है। हमें समय का महत्त्व तब पता लगता है जब दो मिनट के विलंब के कारण गाड़ी छूट जाती है। जीवन में वही व्यक्ति सफल हो पाते हैं। जो समय का पालन करते हैं। लोगों को अपने समय को नियोजित करने की कला भी आनी चाहिए। अगर किसी व्यक्ति को एक मीटिंग में जाना है, एक अफसर से अलग मीटिंग है, और शाम को अपनी शादी की सालगिरह की पार्टी भी देनी है, तो इसमें हर एक काम के लिए समय निकालना पड़ेगा।
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो बेकार की बातों में समय को आँवा देते हैं। मनोरंजन के नाम पर भी बहुत समय आँवाया जाता है। बहुत से व्यक्ति समय गॅवाने में जैसे-मोबाईल पर गेम खेलने, बेकार की व्हाट्स ऐप पर बातें लिखने में आनंद का अनुभव करते हैं, परन्तु यह प्रवृत्ति हानिकारक है। समय के ऊपर तुलसीदास ने ठीक ही कहा है
“समय चूकि पुनि का पछताने, का वर्षा जब कृषि सुखाने”
आपके क्षेत्र के पार्क को कूड़ेदान बना दिया गया था। अब पुलिस की पहल और मदद से पुनः बच्चों के लिए खेल का मैदान बन गया है। अतः आप पुलिस आयुक्त को धन्यवाद पत्र लिखिए। [5]
अथवा
पटाखों से होने वाले प्रदूषण के प्रति ध्यान आकर्षित करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।
अपनी पता
परीक्षा भवन
क. ख. ग.,
नई दिल्ली-1100XX
सेवा में,
पुलिस आयुक्त
पश्चिमी दिल्ली
दिनांक-18 मई, 20XX
(3) विषय-आभार व्यक्त करने हेतु।
महोदय, हम मदनपुर निवासी इस क्षेत्र के पुलिस अधिकारियों और आपको धन्यवाद देना चाहते हैं। हम दिल से आभारी रहेंगे। इस क्षेत्र के पार्क में पिछले कुछ वर्षों में कूड़ा फेंक–फेंक कर उसे कूड़ाघर में तब्दील कर दिया था।परन्तु पुलिस से मीटिंग के बाद, पार्क के पास एक बोर्ड लगवाया गया कि उस क्षेत्र में कूड़ा फेंकना मना है। पुलिस विभाग के एक सब-इंस्पेक्टर की नियुक्ति ने कूड़ा डालने वालों को वहाँ आने से मना कर दिया। फिर आसपास के रिहायशी इलाकों वाले लोगों के साथ पार्क में एक फुटपाथ का निर्माण कर पार्क को एक नया रूप मिला। अब सुबह और शाम को लोग पार्क में घूमने आने लगे हैं और इसका श्रेय पुलिस विभाग को मिलना चाहिए।
एक बार फिर से इस क्षेत्र के लोग आपको धन्यवाद देते हैं।
मदनपुर क्षेत्र के निवासी
(सेक्रेटरी)
अथवा
58, पंकज लेन
वसंत कुंज,
नई दिल्ली।
दिनांक-25 अगस्त, 20XX
प्रिय मित्र,
तुम्हारा पत्र मिला। जानकर खुशी हुई कि तुम्हारे माताजी–पिताजी इन दिनों यूरोप घूमने गए हुए हैं और वे सभी प्रमुख जगहों पर जाएँगे। यूरोप घूमकर वापस आने वाले लोग वहाँ के वातावरण जो पूर्णतया प्रदूषण रहित है, का वर्णन करते हैं।हमारे देश में अब अगले महीने दीपावली का पर्व आ रहा है। जहाँ तक दियों या बल्ब से शहर का रोशन होना बहुत अच्छा । लगता है वहीं दिवाली और दिवाली से पूर्व पटाखे चलाने से। होने वाले प्रदूषण से वातावरण इतना खराब हो जाता है कि पटाखों से निकलने वाले सल्फर के कणों के कारण सांस लेना। दूभर हो जाता है और यह कई बीमारियों की जड़ है। इसलिए मैं तो तुमसे यही कहना चाहूँगा कि खुद भी पटाखे चलाने से परहेज करो और अपने आसपास के लोगों को भी पटाखों से। होने वाले प्रदूषण के बारे में बताओ।
तुम्हारा मित्र
क.ख.ग.
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