विभाजन को समझना

Question
CBSEHHIHSH12028366

विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है?

Solution

भारत का विभाजन 1947 में हुआ जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान का अस्तित्व एक नए देश के रूप में जनता के सामने आया। इस विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ माना जाता है। निम्नलिखित तथ्य भी इस बात की पुष्टि करते हैं: 

  1. नि:संदेह, यह विभाजन स्वयं में अतुलनीय था, क्योंकि इससे पूर्व किसी अन्य विभाजन में न तो सांप्रदायिक हिंसा का इतना तांडव नृत्य हुआ और न ही इतनी विशाल संख्या में निर्दोष लोगों को अपने घरों से बेघर होना पड़ा।
  2. दोनों देशों की जनता के बीच बड़े पैमाने पर मारकाट तथा आगजनी हुई। सदियों से एक-दूसरे के साथ भाई-चारे से रहने वाले लोग ही आपस में एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए।
  3. विद्वानों के अनुसार विभाजन के परिणामस्वरूप लगभग 1 करोड़ 50 लाख लोग अगस्त, 1947 से अक्टूबर, 1947 के बीच सीमा पार जाने को विवश हुए। विश्व इतिहास में ऐसा कष्टदायक विस्थापन नहीं मिलता।विस्थापन का अर्थ हैं लोगों का अपने घरों से उजड़ जाना। 
  4. दोनों ओर के कट्टरपंथियों के मन में एक-दूसरे के प्रति सदा के लिए ज़हर भर गया। पाकिस्तान तथा भारत के कट्टरपंथी आज भी समय-समय पर एक-दूसरे के विरुद्ध ज़हर उगलते रहते हैं।
  5. विद्वानों के अनुसार विभाजन के परिणामस्वरूप होने वाली हिंसा इतनी भीषण थी कि इसके लिए विभाजन, बँटवारे अथवा 'तक़सीम जैसे शब्दों का प्रयोग करना सार्थक प्रतीत नहीं होता।

Question
CBSEHHIHSH12028367

ब्रिटिश भारत का बँटवारा क्यों किया गया?

Solution

ब्रिटिश भारत का बँटवारा निम्नलिखित कारणों से किया गया:

  1. फूट डालों और शासन करो की नीति: ब्रिटिश शासकों ने शुरू से ही 'फूट डालों और शासन करों' की नीति का अनुसरण किया। अंग्रेज़ो ने हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच घृणा पैदा करके उन्हें आपस में खूब लड़वाया। 1905 ई. में बंगाल का विभाजन, 1906 ई.में मुस्लिम लीग की स्थापना और 1909 ई. में सांप्रयदायिक चुनाव प्रणाली का प्रारम्भ और विस्तार अंग्रेज़ों की फूट डालों और शासन करो की नीति के उदाहरण थे।
  2. मुस्लिम लीग के प्रयास: 1906 ई. में मुसलमानों ने मुस्लिम लीग नामक संस्था की स्थापना भी कर ली। जिसके कारण हिन्दू और मुस्लिम में भेदभाव बढ़ने लगा। मुस्लिम लीग में सांप्रदायिकता फैलानी आरंभ कर दी। 1940 ई.तक हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव इतना बढ़ गया कि मुसलमानों ने अपने लाहौर प्रस्ताव में पाकिस्तान की माँग की।
  3. कांग्रेस की कमज़ोर नीति: मुस्लिम लीग की माँगे दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं और कांग्रेस इन्हें स्वीकार करती रही। कांग्रेस ने लीग के प्रति तुष्टिकरण की जो नीति अपनाई वह देश की अखंडता के लिए घातक सिद्ध हुई। कांग्रेस की इसी कमज़ोर नीति का लाभ उठाते हुए मुसलमानों ने देश के विभाजन की माँग करनी आरंभ कर दी।
  4. सांप्रदायिक तनाव: मुस्लिम लीग के संकीर्ण सांप्रदायिक दृष्टिकोण ने हिन्दू-मुसलमानों में मतभेद उत्पन्न करने और अन्ततः पाकिस्तान के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पाकिस्तान की माँग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग ने 'सीधी कार्यवाही' प्रारम्भ कर दी और सारे देश में सांप्रदायिक दंगे होने लगे। इन दंगों को केवल भारत-विभाजन द्वारा ही रोका जा सकता था।
  5. लॉड माउंटबेटन के प्रयास: मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान के निर्माण के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही प्रारंभ कर दिए जाने के कारण सम्पूर्ण देश में हिंसा की ज्वाला धधकने लगी थी। अत: लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल को विश्वास दिला दिया कि मुस्लिम लीग के बिना शेष भारत को शक्तिशाली और संगठित बनाना अधिक उचित होगा। कांग्रेसी नेताओं को गृहयुद्ध अथवा पाकिस्तान इन दोनों में से किसी एक का चुनाव करना था। उन्होंने गृहयुद्ध से बचने के लिए पाकिस्तान के निर्माण को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार, अनेक कारणों के संयोजन ने देश के विभाजन को अपरिहार्य बना दिया था।

Question
CBSEHHIHSH12028368

बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे?

Solution

बँटवारे के समय औरतों को बहुत दर्दनाक अनुभवों से गुज़रना पड़ा। बँटवारे के समय औरतों के बहुत ही कटु अनुभव रहे:

  1. उनके साथ बलात्कार हुए, उनको अगवा किया गया, बार-बार बेचा-खरीदा गया, अनजान हालात में अजनबियों के साथ एक नयी जिंदगी बसर करने के लिए मजबूर किया गया।
  2. महिलाएँ मूक एवं निरीह प्राणियों की तरह इन अत्याचारों से गुज़रती रहीं। उन्हें गहरे सदमे झेलने पड़े। इन सदमों के बावजूद भी कुछ औरतों ने अपने नए पारिवारिक बंधन विकसित किए। लेकिन भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने इनसानी संबंधों की जटिलता के बारे में कोई संवेदनशील रवैया नहीं अपनाया।
  3. बँटवारे के दौरान बरामदगी की पूरी प्रक्रिया में जिन औरतों के बारे में फैसले लिए जा रहे थे उनसे इस बार भी सलाह नहीं ली गई। उन्हें अपनी जिंदगी के संबंध में फैसला लेने के अधिकार से वंचित किया गया। एक अनुमान के अनुसार महिलाओं की बरामदगी के अभियान में कुल मिलाकर लगभग 30,000 औरतों को बरामद किया गया। इनमें से 8000 हिन्दू व सिख औरतों को पाकिस्तान से तथा 22,000 मुस्लिम औरतों को भारत से बरामद किया गया। यह अभियान 1954 तक ज़ारी रहा।
  4. बँटवारे के दौरान ऐसे बहुत से उदाहरण सामने आए जिनमें परिवार के पुरुषों ने ही परिवार की इज्जत की रक्षा के नाम पर अपने परिवार की स्त्री सदस्यों को स्वयं ही मार डाला अथवा उन्हें आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया। इन पुरुषों को यह भय रहता था कि शत्रु उनकी औरतों - माँ, बहन, बेटी को नापाक कर सकता था। इसलिए पुरुषों ने परिवार की मान मर्यादा को बचाने के लिए खुद ही उनको मार डाला।
  5. उर्वशी बुटालिया ने अपनी पुस्तक दि अदर साइड ऑफ साइलेंस में रावलपिंडी जिले के थुआ खालसा गाँव के एक ऐसे ही दर्दनाक हादसे का जिक्र किया है। बताते हैं कि बँटवारे के समय सिखों के इस गाँव की 90 औरतों ने दुश्मनों के हाथों में पड़ने की बजाय अपनी मर्ज़ी से कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी थी। उन्हें असहनीय पीड़ा और संताप से गुज़रना पड़ता था।

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Question
CBSEHHIHSH12028369

मौखिक इतिहास के फायदे/नुकसानों की पड़ताल कीजिए। मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है?

Solution

मौखिक इतिहास का प्रयोग हम विभाजन को समझने के लिए करते हैं। इन स्रोतों से हमें विभाजन के दौर में सामान्य लोगों के कष्टों और संताप को समझने में मदद मिलती हैं।

मौखिक इतिहास के फायदे:

  1. मौखिक इतिहास हमें विभाजन से संबंधित अनुभवों एवं स्मृतियों को और अधिक सूक्ष्मता से समझने में सहायता मिलती हैं।
  2. इन स्मृतियों के माध्यम से इतिहासकारों को विभाजन जैसी दर्दनाक घटना के दौरान लोगों को किन-किन शारिक और मानसिक पीड़ाओं को झेलना पड़ा, का बहुरंगी एवं सजीव वृतांत लिखने में सहायता मिलती हैं।
  3. मौखिक इतिहास विभाजन के दौरान जनसामान्य और विशेष रूप से महिलाओं द्वारा झेली जाने वाली पीड़ा को समझने में हमे महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है।

मौखिक इतिहास के नुकसान:

  1. अनेक इतिहासकारों के विचारानुसार मौखिक जानकारियों में सटीकता नहीं होतीं। अतः उनसे घटनाओं के जिस क्रम का निर्माण किया जाता है, वह अकसर सही नहीं होता। 
  2. मौखिक इतिहास के खिलाफ यह भी तर्क दिया जाता है की व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर किसी सामान्य निष्कर्ष पर पहुँचना सरल नहीं होता।
  3. इतिहासकारों के मतानुसार मौखिक विवरणों का संबंध केवल सतही मुद्दों से होता है। यादों में संचित किए जाने वाले छोटे-छोटे अनुभवों से इतिहास की विशाल प्रक्रियाओं के कारणों को ढूंढ़ने में में कोई महत्त्वपूर्ण सहायता नहीं मिलती।

मौखिक इतिहास और विभाजन के बारे में हमारी समझ का विस्तार: मौखिक इतिहास से विभाजन के बारे में हमारी समझ को काफी विस्तार मिला है। मौखिक स्रोतों से जन इतिहास को उजागर करने में मदद मिलती है। वे गरीबों और कमजोरों के अनुभवों को उपेक्षा के अंधकार से बाहर निकाल पाते हैं। ऐसा करके वे इतिहास जैसे विषय की सीमाओं को और फैलाने का अवसर प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए मौखिक स्रोत से हमने अब्दुल लतीफ के पिता की घटना, लतीफ की भावनाएँ, थुआ गाँव की औरतों की कहानी और सद्द्भावनापूर्ण प्रयासों की कहानियों को जाना।
डॉ खुशदेव सिंह के प्रति कराची में गए मुसलमान आप्रवासियों की मनोदशा को समझ पाए। शरणार्थियों के द्वारा किए  गए संघर्ष को भी मौखिक स्रोतों द्वारा समझा जा सकता है। इस प्रकार इस स्रोत से इतिहास में समाज के ऊपर के लोगों से आगे जाकर सामान्य लोगों की पड़ताल करने में सफलता मिलती है। सामान्यत: आम लोगों के वजूद को नज़र -अंदाज कर दिया जाता है या इतिहास में चलते- चलते जिक्र कर दिया जाता है।

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