क्या उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
नि:संदेह नियतिवादियों और भौतिकवादियों के विचार उपनिषदों के दार्शनिकों से भिन्न थे। उपनिषदों में आत्मिक ज्ञान पर बल दिया गया था, जिसका अर्थ आत्मा और परमात्मा के संबंधों को जानना। परमात्मा ब्रह्मा है, जिससे संपूर्ण जगत पैदा हुआ है। है। जीवात्मा अमर है और ब्रह्म का ही अंश है। जीवात्मा ब्रह्म में लीन होकर मुक्ति प्राप्त करती है। इसके लिए सद्कर्मों और आत्मिक ज्ञान की जरूरत है।
उपनिषदों के इस ज्ञान से नियतिवादियों और भौतिकवादियों के विचार भिन्न थे जो निम्नलिखित तर्कों से स्पष्ट हैं:
- नियतिवादियों का मानना था कि प्राणी नियति यानी भाग्य के अधीन है। मनुष्य उसी केअनुरूप सुख-दुख भोगता है। सद्कर्मों अथवा आत्मज्ञान से नियति नहीं बदलती।
- भौतिकवादियों का मानना था कि मानव का शरीर पूध्वी, जल, अग्नि तथा वायु से बना है। आत्मा और परमात्मा कोरी कल्पना है। मृत्यु के पश्चात शरीर में कुछ शेष नहीं बचता। अत:भौतिकवादियों के विचार भी आत्मा-परमात्मा या अन्य विचार भी उपनिषदों के दार्शनिकों से बिल्कुल भिन्न थे।