विद्युत् मोटर एक प्रकार का यंत्र है जो विद्युत् ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
सिद्धांत: जब किसी कुंडली को चुम्बकीय धारा में रखकर उसमें विद्युत् धारा प्रवाहित की जाती है तो उसमें एक बल कार्य करता है जो कुंडली को उसके अक्ष पर घुमाता है।
चित्र: दिष्ट विद्युत् मोटर
रचना: एक विद्युत् मोटर के निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं -
1. चुंबक: एक शक्तिशाली अवतल बेलनाकार चुंबक जैसे नाल चुंबक का कार्य है शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बनाना।
2. कुंडली: एक आयताकार लोहे के टुकड़े पर तांबे की तार लपेटकर उसे कुंडली का रूप दिया जाता है। जिसमें विद्युत् धारा प्रवाह की जाती है और इसे चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है जिससे इस पर बल लगता है और ये अपने अक्ष पर घूमता है। चित्र में ABCD कुंडली को दर्शाया गया है।
3. विभक्त वलय: यह अर्धगोल छल्ले होते हैं और एक दिक्परिवर्तक का कार्य करते हैं। ये कुंडली के दोनों सिरों से परस्पर जुड़ी होती हैं और कुंडली के अर्ध घूर्णन के बाद ये विद्युत् धारा को उत्क्रमित करतीं हैं। चित्र में इन्हें S1 और S2 से दर्शाया गया है।
4. ब्रुश: B1 और B2 दो ग्रेफाइट या लचीले धातु की छड़ें हैं जो अर्धगोल छल्लों से परस्पर जुड़े होते हैं और इनका काम कुंडली को निरंतर विद्युत् धारा भेजना है।
5. बैटरी: दिष्ट विद्युत् धारा या अनेक सेलों की बैटरी को विद्युत् शक्ति के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इसका काम कुंडली को विद्युत् धारा उपलब्ध कराना है।
कार्य: शुरुआत में जब कुंडली ABCD को शक्तिशाली चुंबकों के मध्य में रखा जाता है तो कुंडली चुंबकों के जोड़ों के बीच सामानांतर होती है। जब कार्बन ब्रुशों B1 और B2 से होते हुए अर्धगोल छल्लों S1 और S2 द्वारा कुंडली में से विद्युत् धारा प्रवाह की जाती है (जैसे चित्र 1 में विद्युत् धारा की दिशा C से डी और A से B की ओर है) तो कुंडली चुंबकीय जोड़े के प्रभाव से घूम जाती है (चित्र 1 में CD खंड ऊपर की ओर तथा AB भाग नीचे की ओर घूम जाता है)। और कुंडली वामावर्ती घूमने लगती है। S1 और S2 कुंडली के अर्धचक्र के बाद विद्युत् धारा की दिशा उत्क्रमित करते हैं और इसी प्रकार कुंडली निरंतर घूमती रहती है।