शमशेर बहादुर सिंह

Question
CBSEENHN12026239

‘उषा’ कविता में गाँव की सुबह का एक सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया गया है-इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।

Solution

कविता के निम्नलिखित उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का सुंदर शब्द-चित्र है-

राख से लीपा हुआ चौका।

बहुत काली सिल।

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मलना।

किसी की गौर झिलमिल देह का हिलना।

Question
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‘उषा’ कविता के आधार पर उस जादू को स्पष्ट कीजिए जो सूर्योदय के साथ टूट जाता है।

Solution

सूर्योदय से पूर्व उषा का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है। नीले आकाश में फैलती प्रात:कालीन सफेद किरणें जादू के समान प्रतीत होती हैं। उषा काल में आकाश का सौंदर्य क्षण-क्षण परिवर्तित होता है। उस समय प्रकृति के कार्य-व्यापार ही ‘उषा का जादू’ है। निरस नीला आकाश, काले सिर पर पुते केसर-से रंग, प्लेट पर लाल खड़िया चाक, नीले जल में नहाती किसी गोरी नायकिा की झिलमिलाती देह आदि दृश्य उषा के जादू के समान प्रतीत होते हैं। सूर्योदय के होते ही ये सभी दृश्य समाप्त हो जाता है। इसी को उषा का जादू टूटना कहा गया है।

Question
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‘उषा’ कविता के आधार पर सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण कीजिए।

Solution

कवि सूर्योदय से पहले के दृश्य का चित्रण करते हुए बताता है कि सुबह का आकाश ऐसा लगता है माना राख से लीपा हुआ चौका हो तथा वह गीला होता है।। गीला चौका स्वच्छ होता है उसी तरह सुबह का आकाश भी स्वच्छ होता है। उसमें प्रदूषण नहीं होता।

सूर्योदय से पहले आकाश शंख के समान हुआ फिर आकाश राख से लीपे चौक जैसा हो गया, उसके बाद लगा जैसे काले सिल पर लाल केसर से धुलाई हुई हो, उसके बाद स्लेट पर खड़िया चाक मल दिया गया हो अत मे जैसे कोई स्वच्छ नील जल में गौर वर्ण वाली देह झिलमिला रही हो।

Question
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निम्नलिखित काव्याशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कीजिए-
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धूल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने।

1. काव्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
2. भोर के नभ को ‘राख से लीपा हुआ चौका’ क्यो कहा गया है?
3. सूर्योदय से पूर्व के आकाश के बारे में कवि ने क्या कल्पना की है?




Solution

1. इस काव्यांश में प्रात:कालीन नभ के सौंदर्य का प्रभावी चित्रण किया गया है। वह राख से लीपे हुए चौके के समान प्रतीत होता है। उसमें ओस का गीलापन है तो क्षण- कम बदक्षणे रंग भी हैं।
2. भोर के नभ को ‘राख से लीपा हुआ चौका’ इसलिए कहा गया है कि भोर का नभ श्वेत वर्ण और नीलिमा का मिश्रित रंग-रूप लिए हुए है। इसमें ओस की नमी उसके गीलेपन का अहसास करा रही है। चौके की पवित्रता के दर्शन इसमें हो रहे हैं।
3. सूर्योदय से पूर्व के आकाश में कवि ने यह कल्पना की है कि लगता है आकाश में रंगों का कोई जादू हो रहा है। कभी यह नीले शंख के समान प्रतीत होता है तो कभी काली सिल पर लाल केसर की आभा दिखाई देती है। कभी यह स्लेट पर मली लाल खड़िया की तरह लगता है।