विष्णु खरे

Question
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लेखक ने कलाकृति और रस के इसके संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण ने सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?

Solution

लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में रस को श्रेयस्कर माना है। कुछ रसों का किसी एक कलाकृति में साथ-साथ पाया जाना श्रेयस्कर माना जाता है। जीवन में हर्ष और विषाद तो आते रहते हैं। करुण रस का हास्य में बदल जाना एक ऐसे रस की माँग करता है जो भारतीय परंपरा में नहीं मिलता।

ऐसे कई उदाहरण दिए जा सकते हैं जब कई रस एक साथ आ जाते हैं। जंगल में नायक-नायिका प्रेमालाप कर रहे हैं। इसमे कार रस है, पर यदि उसी समय शेर आ जाए तो यही औघर रस भय में बदल जाता है तथा भयानक रस जन्म ले लेता है

वीर रस के प्रयोग स्थल पर रौद्ररस का आ जाना सामान्य सी बात है। भगवान की भक्ति करते समय शांत रस का परिपाक होता है पर हँसी की बात आ जाने पर हास्य रस की सृष्टि हो जाती है।

Question
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जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को। कैसे संपन्न बनाया?

Solution

चार्ली ने जीवन में जद्दोजहद बहुत की थी। उनकी माँ परित्यक्ता और दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री थी। चार्ली को भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना पड़ा। उसे पूँजीपति वर्ग तथा सामंतशाहों ने भी दुत्कारा। वे नानी की तरफ से खानाबदोशों के साथ जुड़े हुए थे। अपने पिता की तरफ से वे यहूदीवंशी थे।

इन जटिल परिस्थितियों से संघर्ष करने की प्रवृत्ति ने उन्हें ‘घुमंतू’ चरित्र बना दिया। इस संघर्ष के दौरान उन्हें जो जीवन-मूल्य मिले, वे उनके धनी होने के बावजूद अंत तक कायम रहे। उनके संघर्ष ने उनके व्यक्तित्व में त्रासदी और हास्योत्पादक तत्त्वों का समावेश कर दिया। उसका व्यक्तित्व इस रूप में ढल गया जो अपने ऊपर हँसता है।

Question
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चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?

Solution

चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में त्रासदी करुणा और हास्य का अनोखा सामंजस्य देखने को मिलता है।

ऐसा सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में नहीं आता। इसका कारण यह है कि भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में करुणा का हास्य में बदल जाना नहीं मिलता। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ में जो हास्य है वह ‘दूसरों’ पर है, अपने पर नहीं। इनमें दर्शाई गई करुणा प्राय: सद्व्यक्तियों के लिए है और कभी-कभार दुष्टों के लिए भी है। संस्कृत नाटकों का विदूषक कुछ बदतमीजियाँ अवश्य करता है किंतु करुणा और हास्य का सामंजस्य उसमें नहीं होता।

Question
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चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हंसता है?

Solution

चार्ली सबसे ज्यादा पर स्वयं तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्नत, आत्मविश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ रूप में दिखाता है। तब यह समझिए कि कुछ ऐसा हुआ ही चाहता है कि यह सारी गरिमा सुई चुभे गुब्बारे जैसी फुस्स हो उठेगी।