दुःख का अधिकार - यशपाल
(क) पाठ-दुःख का अधिकार, लेखक-यशपाल।
(ख) लेखक ने समाज में शव को नया कफ़न ओढ़ाने की कुप्रथा पर व्यंग्य किया है। ऐसा मनुष्य जो जीते-जी अपने लिए कपड़ो का प्रबंध नहीं कर पाता: उसके मरने पर उसे नया कफन दिया जाता है। कफन जुटाने में चाहे परिवार वालों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाए। यह प्रथा वास्तव में गरीबों की विवशता है।
(ग) भगवाना की मृत्यु के बाद उसकी माँ के सामने परिवार का पेट भरने की समस्या आ खड़ी हुई घर में अनाज नहीं था। बहू बुखार से तप रही थी। उसकी दवाई की व्यवस्था करनी थी। उसके अपना छन्नी-ककना बेचकर कफन का कपड़ा खरीदा था। इस प्रकार उस पर एक-के बाद अनेक समस्याएँ आ खड़ी हुई।
(घ) भगवाना की माँ ने बच्चों का पेट भरने के लिए खेत से तोड़े गए खरबूजे उसे खाने को दे दिए। इस प्रकार जैसे-तैसे उनका पेट भर सका।
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